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ताप बिजली संयंत्रों के बगैर ऊर्जा सुरक्षा संभव नहीं, केंद्र सरकार ने क्यों बदली अपनी नीति?

Thermal Power Plants दुबई में पर्यावरण संरक्षण पर शिखर सम्मेलन काप-28 चल रहा है। इस बीच भारत की तरफ से यह एलान किया गया है कि वह 80 हजार मेगावाट क्षमता के नए ताप बिजली संयंत्र लगाने जा रहा है। यह पिछले दो दशकों में किसी भी देश की तरफ से ताप बिजली क्षमता बढ़ाने का सबसे बड़ा एलान है।

By Jagran NewsEdited By: Mohd FaisalUpdated: Sat, 02 Dec 2023 06:05 PM (IST)
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ताप बिजली संयंत्रों के बगैर ऊर्जा सुरक्षा संभव नहीं, केंद्र सरकार ने क्यों बदली अपनी नीति?

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। देश में तार बिजली संयंत्र यानी कोयला से बिजली बनाने वाले नये प्लांट लगाने की योजना को लेकर केंद्र सरकार के विचार बदल चुके हैं।

जब दुबई में पर्यावरण संरक्षण पर शिखर सम्मेलन काप-28 चल रहा है, तब भारत की तरफ से यह एलान किया गया है कि वह 80 हजार मेगावाट क्षमता के नए ताप बिजली संयंत्र लगाने जा रहा है। यह पिछले दो दशकों में किसी भी देश की तरफ से ताप बिजली क्षमता बढ़ाने का सबसे बड़ा एलान है।

बिजली की मांग 1.4 गुणा बढ़ने की संभावना

दरअसल, अगले ढ़ाई-तीन दशकों तक बहुत ही आर्थिक विकास दर के बेहद तेज रहने, तेजी से शहरीकरण की रफ्तार बढ़ने, आम आदमी की आर्थिक स्थिति में सुधार होना कुछ ऐसे तथ्य हैं, जो देश में बिजली की मांग को काफी तेज करेंगी। वर्ष 2050 तक भारत के औसतन बिजली की मांग 1.4 गुणा बढ़ने की संभावना है। जबकि रिनीवेबल ऊर्जा की तकनीकी सीमाओं को देखते हुए उन पर चौबीसों घंटे बिजली के लिए निर्भर रहा जा सकता।

क्या बोलीं गौरी जौहर?

अंतरराष्ट्रीय एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर (इनर्जी ट्रांसजिशन व क्लीनटेक) गौरी जौहर का कहना है कि, “भारत में जैसे जैसे आर्थिक विकास दर तेज होगी वैसे वैसे ऊर्जा के उपभोग में बदलाव और ऊर्जा सुरक्षा के बीच सामंजस्य बनाने के लिए काफी कोशिश करनी होगी। खास तौर पर चौबीसों घंटे बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करना, बढ़ते शहरीकरण के हिसाब से ऊर्जा की बढ़ती मांग को पुरा करना सरकार के लिए प्राथमिकता रहेगी।''

2034 तक मध्यम आय वाली इकोनॉमी के तौर पर स्थापित होगा भारत

भारत के वर्ष 2034 तक बेहतर मध्यम आय वाली इकोनॉमी के तौर पर स्थापित होगा। इस दौरान बिजली की मांग बढ़ती रहेगी क्योंकि बेहतर जीवन स्तर के साथ ही ज्यादा बिजली की खपत होती है। वर्ष 2050 तक 25 करोड़ से ज्यादा लोग और शहरों में आ जाएंगे। इससे भी बिजली की मांग बढ़ेगी। इस दौरान कुल ऊर्जा मिश्रण में पारंपरिक (फॉसिल आधारित ईंधन) स्त्रोतों का अनुपात कम होगा, लेकिन उनकी अहमियत पहले जैसी ही रहेगी।

बिजली खपत में 8.5 फीसद की वृद्धि हुई

वर्ष 2023-24 के दौरान अगर देश की आर्थिक विकास दर RBI व वित्त मंत्रालय के अनुमानों से बेहतर हो रहा है तो देश में बिजली की खपत भी उम्मीदों से परे है। अगस्त, 2023 के बाद से औद्योगिक मांग तेज हुई है और इसका असर बिजली की खपत पर दिख रहा है। पहली बार अगस्त, 2023 में देश में बिजली की मांग 2.38 लाख मेगावाट तक गई थी। सितंबर और अक्टूबर माह में क्रमश: एक दिन में अधिकतम बिजली की मांग 2.40 लाख मेगावाट और 2.22 लाख मेगावाट गई है। नवंबर, 2023 में बिजली खपत में 8.5 फीसद की वृद्धि देखी गई है।

2030 तक दोगुनी हो जाएगी बिजली की खपत

बिजली मंत्रालय का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक देश में बिजली की खपत दोगुनी हो जाएगी। इस हिसाब से बिजली की खपत वर्ष 2030 में औसतन 4.80 लाख मेगावाट रहेगी। अभी जिस तरह से बिजली की बढ़ी हुई मांग का अधिकांश हिस्सा ताप बिजली संयंत्रों से पूरी की गई है, वैसी ही स्थिति वर्ष 2030 में भी रहे। हालांकि तब तक रिनीवेबल सेक्टर की बिजली उत्पादन क्षमता बढ़ कर पांच लाख मेगावाट क्षमता हो सकती है। सरकार ने यह लक्ष्य रखा है।

कितनी है देश की कुल बिजली उत्पादन क्षमता

अभी देश की कुल बिजली उत्पादन क्षमता 4,25,535 मेगावाट है। इसमें ताप बिजली क्षमता 2,39,073 मेगावाट, परमाणु ऊर्जा 7480 मेगावाट, पनबिजली 46,850 मेगावाट और रिनीवेबल (सौर, पवन, बायोगैस आदि) 1,32,133 मेगावाट है। देखा जाए तो देश में स्थापित बिजली क्षमता में ताप संयंत्रों की हिस्सेदारी सिर्फ 56 फीसद है, लेकिन अप्रैल से अक्टूबर, 2023 के दौरान देश में जितनी बिजली की खपत हुई है, उसमें ताप बिजली घरों की हिस्सेदारी 84 फीसद है।

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क्या कहते है सरकारी आंकड़े

सरकारी आंकड़े गवाह हैं कि अगर इस साल कोयला आधारित बिजली संयंत्रों ने सही तरीके से काम नहीं किया होता तो देश बड़े बिजली संकट में फंस सकता था। वर्ष 2022-23 में ताप बिजली घरों का प्लांट लोड फैक्टर (पीएलएफ- क्षमता के अनुपात में उत्पादन) सिर्फ 55.11 फीसद था। वर्ष 2023-24 के लिए 60.09 फीसद का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन असलियत में (अप्रैल से अक्टूबर तक) पीएलएफ 70.86 फीसद रही है।

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