भारत की अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक नए अध्याय की शुरुआत, एक्सपर्ट व्यू
भारत आपदा प्रबंधन में अपनी अंतरिक्ष तकनीक के जरिये पड़ोसी देशों की सहयता भी कर रहा है। इसमें काई संदेह नहीं कि इसरो की अंतरिक्ष में आत्मनिर्भरता बहुआयामी है और यह देश को भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अभिनव अवसर हासिल करा रही है।
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Sat, 26 Nov 2022 03:55 PM (IST)
प्रमोद भार्गव। भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक नए अध्याय की शुरुआत कर दी है। पिछले दिनों एक निजी स्टार्टअप कंपनी स्काईरूट एयरोस्पेस द्वारा विकसित राकेट विक्रम-एस के जरिये तीन उपग्रहों को कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया गया। नई शुरुआत के प्रतीक रूप में इस मिशन को प्रारंभ नाम दिया गया। इसी के साथ देश की अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी क्षेत्र का प्रवेश भी हो गया है।
अभी तक सरकारी क्षेत्र के भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का ही इस क्षेत्र में एकाधिकार था। स्काईरूट ने 2020 में केंद्र सरकार द्वारा अंतरिक्ष उद्योग को निजी क्षेत्र के लिए खोले जाने के बाद भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में कदम रखा है। इसका मतलब है कि अगर कोई कंपनी अंतरिक्ष संबंधी किसी भी प्रकार का शोध करना चाहे या अंतरिक्ष में अपना कोई उपकरण स्थापित करना चाहे तो भारत की निजी कंपनी यह सेवा उपलब्ध करा सकती है। वैसे भी यह दौर छोटे उपग्रहों का है, जिनके जरिये कंपनियां अपने ग्राहकों तक पहुंच सकती हैं। जैसे यदि भारत का कोई शिक्षा संस्थान अपनी आनलाइन पढ़ाई को विकसित करने के लिए अलग से उपग्रह का प्रक्षेपण कराना चाहता है तो यह संभव है। जिस तरह से दुनिया में अलग-अलग क्षेत्रों में डिजिटल सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं, उसके लिए भविष्य में अलग-अलग उपग्रहों की जरूरत पड़ेगी।
वर्ष 2020 में भारत ने जब अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में निजी कंपनियों के लिए द्वार खोलकर छूट का प्रस्ताव लागू किया था, तब अनेक प्रकार के संदेह प्रकट किए गए थे। कुछ लोगों की दलील थी कि इससे इसरो की गोपनीयता भंग होगी और तकनीक चोरी होने का खतरा बढ़ जाएगा, लेकिन स्काईरूट ने इसरो से बेहतर ढंग से तकनीक हासिल की और अपने राकेट का प्रक्षेपण कर उन सभी आशंकाओं को दूर कर दिया, जो संदेह पैदा करने वाली थीं।
वर्तमान में अंतरिक्ष खगोल विज्ञान का ऐसा क्षेत्र है, जिसमें अनेक अछूते पहलू अनुसंधान का आधार बन सकते हैं। दरअसल डिजिटल तकनीक पर निर्भरता बढ़ने और उसके विश्वव्यापी हो जाने से उपग्रहों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है, क्योंकि संचार की तमाम सुविधाएं इन्हीं उपग्रहों से संचालित होती हैं। इसलिए अनेक उदीयमान विज्ञानी सरकारी क्षेत्र में बाधाओं के चलते अपनी परिकल्पनाओं को साकार रूप में बदलने में कठिनाई अनुभव करते हैं। ऐसे में यदि उनको कम बाधाओं वाला निजी क्षेत्र अनुसंधान के लिए मिलता है तो अंतरिक्ष को खंगालने में उन्हें आसानी होगी।
अत: स्काईरूट की सफलता से यह अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि अंतरिक्ष अनुसंधान की दिशा में नई उपलब्धियां भारत भविष्य में हासिल करेगा। सूचना तकनीक का जो भूमंडलीय विस्तार हुआ है, उसका माध्यम अंतरिक्ष में छोड़े उपग्रह ही हैं। टीवी चैनलों पर कार्यक्रमों का प्रसारण भी उपग्रहों के जरिये होता है। इंटरनेट पर वेबसाइट, फेसबुक, ट्विटर, ब्लाग और वाट्सएप की रंगीन दुनिया एवं संवाद संप्रेषण बनाए रखने की पृष्ठभूमि में यही उपग्रह हैं। मोबाइल और वाई-फाई जैसी संचार सुविधाएं और बैंकिंग प्रणाली इन्हीं से संचालित होती हैं। अब तो शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, मौसम, आपदा प्रबंधन और प्रतिरक्षा क्षेत्रों में भी उपग्रहों की मदद जरूरी हो गई है।
भारत आपदा प्रबंधन में अपनी अंतरिक्ष तकनीक के जरिये पड़ोसी देशों की सहयता भी कर रहा है। इसमें काई संदेह नहीं कि इसरो की अंतरिक्ष में आत्मनिर्भरता बहुआयामी है और यह देश को भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अभिनव अवसर हासिल करा रही है। हमारी उपग्रह प्रक्षेपित करने की दरें अन्य देशों की तुलना में 60 से 65 प्रतिशत सस्ती हैं, लेकिन इसरो की साख को कभी चुनौती नहीं मिली।[वरिष्ठ पत्रकार]