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जब तक जनता प्रदूषण के प्रति जागरूक नहीं होगी, तब तक पर्यावरण संरक्षण नहीं बनेगा चुनावी मुद्दा

जब तक आम जनता प्रदूषण के प्रति जागरूक नहीं होगी तब तक प्रदूषण चुनावी मुद्दा नहीं बन सकता। उम्मीद की जानी चाहिए कि देर-सबेर मतदाताओं के साथ ही राजनीतिक दल भी पर्यावरण संरक्षण को लेकर अधिक गंभीर होंगे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Thu, 10 Feb 2022 01:32 PM (IST)
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आम आदमी को भी प्रदूषण को लेकर सरकारों से सवाल करने होंगे।

रवि शंकर। आज से देश में चुनावों के एक नए दौर का सिलसिला शुरू होने जा रहा है। इस दौरान तमाम राजनीतिक दल जनता से किस्म-किस्म के लुभावने वादे कर रहे हैं, लेकिन इसमें एक बेहद जरूरी मुद्दा अनदेखा रह गया है। यह मुद्दा पर्यावरण के उस पहलू से जुड़ा है जो सीधे हमारी सेहत को प्रभावित करता है। विभिन्न दलों के चुनावी घोषणा पत्रों में इसी पर्यावरण की अनदेखी होती है और यदि उल्लेख हो भी तो वह महज रस्म अदायगी जैसा होता है। यह स्थिति तब है जब दुनिया के शीर्ष दस प्रदूषित शहरों में से नौ भारत के हैं। समग्र प्रदूषण की स्थिति को लेकर हम दुनिया में नौवें नंबर पर हैं। बेहद डरावने ये आंकड़े यही संकेत करते हैं कि यदि समय से सुध नहीं ली गई तो भविष्य बेहद अंधियारा होगा।

साल 2019 में वायु प्रदूषण की वजह से भारत में 16.7 लाख लोगों की मौत हुई। साथ ही देश को 2,60,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ। यह जानकारी केंद्र सरकार की संस्था आइसीएमआर की एक रिपोर्ट में सामने आई है। वर्षा काल को छोड़ दिया जाए तो हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और बिहार जैसे राज्यों में लोग साल भर प्रदूषण की मार ङोलते हैं। ऐसी विकट स्थिति में किसी दल से यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि वह पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के साथ विकास की अनिवार्यता के संतुलन की बात करे।

भारत आज अभूतपूर्व किस्म के पर्यावरणीय संकट का सामना कर रहा है। फिर भी पर्यावरण देश में एक बड़ा मुद्दा इसलिए नहीं है, क्योंकि पर्यावरण के प्रति हमारा दृष्टिकोण ही सही नहीं है। जब हम पर्यावरण की बात करते हैं तो हमें आर्थिक नीतियों के बारे में सबसे पहले बात करनी होगी। अगर हमारी आर्थिक नीतियां ऐसी हैं जो पर्यावरण को क्षति पहुंचाती हैं तो फिर बिना उन्हें बदले पर्यावरण संरक्षण की बात का कोई खास मतलब नहीं रह जाता है। ऐसे में हमें ऐसी नीतियों की दरकार है जो लोगों को उनके संसाधनों पर हक प्रदान करती हों। यानी कोई न कोई बीच की राह निकालनी होगी। हमें ऐसी पर्यावरण नीति को अपनाना होगा, जो प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के बजाय बढ़ाने वाली हो।

हम जब पर्यावरण के बारे में सोचें तो केवल पर्यावरण के बारे में न सोचें, बल्कि उन लोगों के बारे में भी सोचें जो पर्यावरण स्नेतों पर निर्भर हैं। अपनी इतनी महत्ता के बावजूद पर्यावरण चुनाव में मुद्दा नहीं बन पाता। ऐसे में यह अत्यंत आवश्यक है कि जनता को जागरूक किया जाए। इससे राजनीतिक दलों को विवश किया जा सकता है। आम आदमी को भी प्रदूषण को लेकर सरकारों से सवाल करने होंगे।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)