भयानक! भारत में हर साल प्रदूषण से होती है 24 लाख लोगों की मौत
स्वच्छ वायु सभी जीवों के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसके बिना धरती पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। विकास से निकले अपशिष्ट को ग्रहण करते-करते पर्यावरण विनाश के अंतिम सिरे पर पहुंच गया है।
[शशांक द्विवेदी]। हाल में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों की लिस्ट जारी की है। इनमें कानपुर, दिल्ली और बनारस समेत भारत के 14 शहर शामिल हैं। उत्तर प्रदेश का कानपुर शहर दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक दुनियाभर के 10 में से 9 लोग सांस लेते वक्त हवा के साथ बड़ी मात्र में प्रदूषित पदार्थो को ले रहे हैं। चिंता की बात यह है कि घरेलू और बाहरी प्रदूषण से भारत में हर साल 24 लाख लोगों की मौत होती है, जो दुनियाभर में होने वाली कुल मौतों का 30 प्रतिशत है। दरअसल डब्ल्यूएचओ की ग्लोबल अर्बन एयर पॉल्यूशन ने 108 देशों के 4300 शहरों से पीएम 10 और पीएम 2.5 के महीन कणों का डाटा तैयार किया है। इसके मुताबिक 2016 में पूरी दुनिया में सिर्फ वायु प्रदूषण से 42 लाख लोगों की मौत हुई है। वहीं खाना बनाने, फ्यूल और घरेलू उपकरणों से फैलने वाले प्रदूषण से दुनिया में 38 लाख लोगों की मौत हुई।
वायु प्रदूषण का जानलेवा स्तर
याद करिए इसी साल के आरंभ में राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण जानलेवा स्तर तक पहुंच गया था। हर आम और खास को सांस लेने में परेशानी, आंखों में जलन सहित कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं होने लगी थीं। उस समय हालात इतने बदतर हो गए थे कि वायु प्रदूषण मापने वाला इंडेक्स ही नहीं काम कर रहा था। मतलब वह उच्चतम स्तर तक पहुंच गया था। कुल मिलाकर कथित विकास के पीछे विनाश की आहट धीरे-धीरे दिखाई और सुनाई पड़ने लगी है। एक कड़वी सच्चाई यह है कि अधिकांश राजनीतिक दलों के एजेंडे में पर्यावरण संबंधी मुद्दा है ही नहीं, ना ही उनके चुनावी घोषणापत्र में प्रदूषण कोई मुद्दा रहता है। देश में हर जगह, हर तरफ हर पार्टी विकास की बात करती है, लेकिन ऐसे विकास का क्या फायदा जो लगातार विनाश को आमंत्रित करता है। ऐसे विकास को क्या कहें जिसकी वजह से संपूर्ण मानवता का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है।
सबसे ऊपर पर्यावरण का मुद्दा
सच्चाई तो यह है कि अब समय आ गया है जब पर्यावरण का मुद्दा राजनीतिक पार्टियों के साथ आम आदमी की प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर होना चाहिए, क्योंकि अब भी अगर हमने इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया तो आगे आने वाला समय भयावह होगा। फिलहाल देश के सभी बड़े शहरों में वायु प्रदूषण अपने निर्धारित मानकों से बहुत ज्यादा है। ग्रीनपीस इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति भयावह है। कुल 168 भारतीय शहरों में से एक भी डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुरूप नहीं है। इस संगठन ने भी आरटीआइ समेत कई स्नोतों के हवाले से बताया है कि भारत में हर साल वायु प्रदूषण के चलते लाखों लोगों की जान चली जाती है। मरने वालों की तादाद तंबाकू के सेवन से हर साल काल का ग्रास बनने वालों के अनुपात से बस थोड़ी सी ही कम है। इतना ही नहीं, देश का तीन प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) जहरीली हवा के धुएं में घुल जाता है।
वायु प्रदूषण से लड़ना होगा
अगर देश का विकास जरूरी है तो सबसे पहले वायु प्रदूषण से लड़ना होगा। साथ ही एक अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण भारत में मौत का पांचवां बड़ा कारण है। हवा में मौजूद पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे छोटे कण मनुष्य के फेफड़े में पहुंच जाते हैं, जिससे सांस व हृदय संबंधित बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। इससे फेफड़ा का कैंसर भी हो सकता है। दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ने का मुख्य कारण वाहनों की बढ़ती संख्या है। इसके साथ ही थर्मल पावर स्टेशन, पड़ोसी राज्यों में स्थित फैक्टरियों आदि से भी दिल्ली में प्रदूषण बढ़ रहा है। खास बात यह है कि यह समस्या देश के लगभग सभी शहरों की हो गई है। अगर हालात नहीं सुधरे तो वह दिन दूर नहीं जब शहर रहने के लायक नहीं रहेंगे। जो लोग विकास, तरक्की और रोजगार की वजह से गांवों से शहरों की तरफ आ गए हैं उन्हें फिर से गावों की तरफ रुख करना पड़ेगा।
स्वच्छ वायु सभी के लिए आवश्यक
स्वच्छ वायु सभी मनुष्यों, जीवों एवं वनस्पतियों के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसके महत्व का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि मनुष्य भोजन के बिना हफ्तों तक, जल के बिना कुछ दिनों तक जीवित रह सकता है, किंतु वायु के बिना उसका एक पल भी जीवित रहना असंभव है। मनुष्य दिन भर में जो कुछ लेता है उसका 80 प्रतिशत भाग वायु है। प्रतिदिन मनुष्य 22000 बार सांस लेता है। इस प्रकार प्रत्येक दिन में वह 16 किलोग्राम या 35 गैलन वायु ग्रहण करता है। वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण होती है जिसमें नाइट्रोजन की मात्र सर्वाधिक 78 प्रतिशत होती है, जबकि 21 प्रतिशत ऑक्सीजन और 0.03 प्रतिशत कार्बन डाईऑक्साइड होता है तथा शेष 0.97 प्रतिशत में हाइड्रोजन, हीलियम, ऑर्गन, निऑन, क्रिप्टन, जेनान, ओजोन और जल वाष्प होती है। वायु में विभिन्न गैसों की उपरोक्त मात्र उसे संतुलित बनाए रखती है। इसमें जरा-सा भी अंतर आने पर वह असंतुलित हो जाती है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होती है। श्वसन के लिए ऑक्सीजन जरूरी है। जब कभी वायु में कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइडों की वृद्धि हो जाती है तो यह खतरनाक हो जाती है।
पर्यावरण की दृष्टि से खतरनाक देश
भारत को विश्व में सातवें सबसे अधिक पर्यावरण की दृष्टि से खतरनाक देश के रूप में स्थान दिया गया है। वायु शुद्धता का स्तर भारत के मेट्रो शहरों में पिछले 20 वर्षो में बहुत ही खराब रहा है। इस दौरान आर्थिक स्थिति ढाई गुना बढ़ी है और औद्योगिक प्रदूषण में चार गुना बढ़ोतरी हुई है। वास्तविकता तो यह है कि पिछले 18 वर्ष में जैविक ईंधन के जलने की वजह से कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन 40 प्रतिशत तक बढ़ चुका है और पृथ्वी का तापमान 0.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा है। अगर यही स्थिति रही तो 2030 तक पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्र 90 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी। इसे रोकने के लिए सरकार को अब जवाबदेही के साथ एक निश्चित समयसीमा के भीतर ठोस प्रयास करना पड़ेगा नहीं तो प्राकृतिक आपदाओं के लिए हमें तैयार रहना होगा। सरकार के साथ-साथ समाज और व्यक्तिगत स्तर पर भी काम करना होगा तभी इस प्रदूषण से छुटकारा मिल पाएगा।
[लेखक राजस्थान की मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डिप्टी डायरेक्टर हैं]
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