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मोरारजी देसाई हैं भारत के एकमात्र इंसान जिन्‍हें निशान ए पाकिस्‍तान के साथ मिल चुका है भारत रत्‍न भी

पाकिस्‍तान ने अपने स्‍वतंत्रता दिवस के मौके पर कश्‍मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी को निशाने ए पाकिस्‍तान दिया है। इससे पहले ये अवार्ड मोरारजी देसाई को भी मिल चुका है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sat, 15 Aug 2020 09:04 AM (IST)
मोरारजी देसाई हैं भारत के एकमात्र इंसान जिन्‍हें निशान ए पाकिस्‍तान के साथ मिल चुका है भारत रत्‍न भी
नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। पाकिस्‍तान ने अपने स्‍वतंत्रता दिवस के मौके पर अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी को देश के सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मान निशान-ए-पाकिस्‍तान से नवाजा है। इस तरह से गिलानी दूसरे भारतीय बन गए हैं जिन्‍हें ये अवार्ड दिया गया है। इससे पहले ये पुरस्‍कार पाने वाले भारत के एकमात्र पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई हैं। पाकिस्‍तान ने उन्‍हें ये सम्‍मान दोनों देशों के बीच रिश्‍तों को सुधारने के लिए दिया था। आपको बता दें कि मोरारजी देसाई पहले ऐसे व्‍यक्ति भी हैं जिन्‍हें भारत और पाकिस्‍तान की तरफ से सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मान दिया जा चुका है। 

26 विदेशियों को दिया जा चुका है ये सम्‍मान 

जहां तक निशान-ए-पाकिस्‍तान की बात है तो आपको ये भी बता दें कि 19 मार्च 1957 को स्थापित किए गए इस सम्‍मान को अब तक 26 विदेशियों को दिया जा चुका है। 1960 में पहली बार ये सम्‍मान ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ (द्वितीय) को दिया गया था। 1961 में अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहोवर और 1969 में रिचर्ड निक्सन को यह सम्मान दिया गया। 1990 में मोरारजी देसाई और 1992 में पूर्व दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला को निशान-ए-पाकिस्तान से सम्मानित किया जा चुका है। चीन के शी चिनफिंग, ली कियांग, हू जिंताओ और ली पेंग भी इस सम्‍मान को हासिल कर चुके हैं। आमतौर पर इस सम्‍मान को देने की घोषणा पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर 14 अगस्त को की जाती है और अलंकरण समारोह का आयोजन 23 मार्च को होता है।लेकिन इस बार इसकी घोषणा पहले ही कर दी गई थी।

पाकिस्‍तान से रिश्‍ते किए बेहतर

निशान ए पाकिस्‍तान को पाने वाले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की बात करें तो उन्‍होंने अपने छोटे से कार्यकाल में पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्‍ते काफी हद तक बेहतर कर लिए थे। वे देश के चौथे और पहले गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री भी थे। 29 फरवरी 1896 को बॉम्बे के भदेली गांव में जन्‍मे मोरारजी देसाई 1977 से 1979 तक देश के प्रधानमंत्री रहे थे। इसके अलावा वे बॉम्बे के मुख्यमंत्री भी रह चुके थे। आजादी की लड़ाई में उनका योगदान अतुलनीय रहा है। एक पारंपरिक धार्मिक परिवार से आने वाले मोरारजी देसाई कहा करते थे कि हर आदमी को अपनी जिंदगी में सच्चाई और उसके विश्वास के अनुरूप काम करना चाहिए। ब्रिटिश शासन के दौरान वे करीब 12 वर्षों तक डिप्टी कलेक्टर के पद भी रहे थे। बाद में महात्मा गांधी से प्रेरित होकर वो 1930 में आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। 1931 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली। वे देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की केबिनेट में मंत्री भी बने। इसके बाद इंदिरा गांधी केबिनेट में उन्‍होंने उप प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री का पदभार भी संभाला था।

इंदिरा गांधी से नाराजगी

1969 में इंदिरा गांधी के एक फैसले से नाराज होकर उन्‍होंने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। दरअसल, उस वक्‍त इंदिरा गांधी ने उनसे वित्‍तमंत्री का पद वापस लेकर 14 बैंकों का राष्‍ट्रीयकरण कर दिया था। इससे विमुख होकर उन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस (आर्गेनाइजेशन) की स्थापना की। उन्‍होंने इंदिरा गांधी का आपातकाल जैसे फैसले के लिए भी पुरजोर विरोध किया था। जब आपातकाल के खिलाफ अन्‍य विरोधी पार्टियां लामबंद हुईं तो इनसे बनी जनता पार्टी का मोरारजी देसाई ने ही नेतृत्व किया। 1977 के चुनाव में जनता पार्टी ने जबरदस्‍त सफलता हासिल की और मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाया गया।

जब जिया उल हक को कहा छोटा भाई

जब उन्‍होंने पद संभाला था तब पाकिस्‍तान से भारत के रिश्‍ते बेहद निचले स्‍तर पर थे। बांग्‍लादेश उदय की वजह से दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर था। मोरारजी देसाई ने पाकिस्तान के साथ रिश्‍तों को बेहतर करने की कोशिश की। इसके लिए मोरारजी देसाई और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक के बीच एक मीटिंग हुई। इसमें मोरारजी देसाई ने जिया उल हक से कहा कि लेन-देन चलते रहना चाहिए। अगर हम दोनों देशों के हितों की दिशा में काम करें तो हमारे बीच कोई झगड़ा नहीं रहेगा। हमें एक दूसरे से भाई की तरह व्यवहार करना चाहिए। मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूं। मुझे तुमसे कुछ लेना नहीं है, बस तुम्हें सब कुछ देना है।

मैं एक्‍शन लेना भी जानता हूं

इन सभी के बावजूद मोरारजी देसाई भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को लेकर भी पूरी तरह से चौकस थे। वे अपनी सख्त कार्रवाई के लिए भी जाने जाते थे। जिया उल हक के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने ये भी कहा था कि अगर कुछ भी गलत होता है तो तुम जिम्मेदार होगे। मैं ऐसा शख्स नहीं हूं, जो सिर्फ बातें करता है। मैं एक्शन लेना भी जानता हूं। वो देश की सुरक्षा को खतरे में डालकर रिश्ते सुधारने के पक्षधर नहीं थे। सक्रिय राजनीति से सन्‍यास लेने के बाद 19 मई 1990 को पाकिस्तान ने उन्हें निशान-ए-पाकिस्तान सम्मान से नवाजा था और इसके बाद 1991 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 10 अप्रैल 1995 को उनका निधन हो गया था।

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