Move to Jagran APP

पढ़ें बिजली सचिव का Exclusive Interview, दूर हो जाएगी इलेक्‍ट्रि‍सिटी के नए विधेयक से जुड़ी सभी शंकाएं

आपको याद होगा जब पहली बार निजी क्षेत्र के लिए दूरसंचार क्षेत्र को खोला गया तो पहले की कंपनियों ने सरकार की तरफ से स्थापित इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल किया। लेकिन इसके बदले सरकारी कंपनियों को फीस अदा की गई।

By Arun Kumar SinghEdited By: Updated: Tue, 16 Aug 2022 11:16 PM (IST)
Hero Image
बिजली सचिव आलोक कुमार से बात की
 जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पिछले दिनों लोकसभा में पेश बिजली संशोधन विधेयक, 2022 का तकरीबन सभी विपक्षी पार्टियां विरोध कर रही हैं। बिजली क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों व इंजीनियरों की तरफ से भी इसका विरोध हो रहा है। विधेयक में प्रस्तावित जिन प्राविधानों को लेकर विरोध हो रहा है, उसके बारे में दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता जयप्रकाश रंजन ने बिजली सचिव आलोक कुमार से बात की।

पेश है साक्षात्कार का एक अंशप्रश्न

प्रश्‍न: प्रस्तावित बिजली संशोधन विधेयक, 2022 का हो रहे विरोध पर सरकार का क्या कहना है?

उत्तर: विरोध करना किसी भी मजबूत लोकतंत्र का एक हिस्सा है और खास तौर पर जब कानून बनाने का प्रस्ताव है तो उस पर सभी पक्षों की राय सामने आनी चाहिए। मेरा यह कहना है कि जिस आधार पर विरोध किया जा रहा है वो आधारहीन है। यह आधारहीन कैसे है यह मैं आगे समझाने की कोशिश करूंगा।

मसलन, कुछ राजनीतिक दलों ने कहा है कि हमने किसी से इस पर विमर्श नहीं किया है जो सरासर गलत है। हमने हर राज्य सरकारों से इस पर संयुक्त तौर पर या अलग-अलग विमर्श किया है। सभी संबंधित मंत्रालयों से विमर्श किया है। उपभोक्ता फोरम से बात हुई है। दो महीने राज्यों के साथ गहन विमर्श सभी तरह के मसलों पर हुआ है। दूसरी बात यह फैलाई जा रही है कि इससे निजीकरण होगा। जबकि पूरे विधेयक में बिजली क्षेत्र का निजीकरण करने संबंधी कोई बात ही नहीं है।

प्रश्न: यह कहा जा रहा है कि मुफ्त बिजली या यूं कहें कि सब्सिडी देना बंद हो जाएगा।

उत्तर: यह भी कहीं नहीं लिखा है विधेयक में। प्रस्तावित विधेयक की धारा 65 में साफ लिखा है कि राज्य सरकारें अपनी मर्जी से बिजली की सब्सिडी देती रहेंगी। जिस तरह से अभी बिजली सब्सिडी दी जाती है वैसी ही दी जाती रहेगी। इसी तरह से कुछ लोगों ने लिखा है कि किसानों को मुफ्त बिजली नहीं दी जा सकेगी। यह भी आधारहीन है। किसान हो या आम जनता या समाज का कोई वर्ग, राज्य सरकारें उन्हें बिजली जिस दर पर देना चाहे वह दे सकती हैं। कुछ समाचार पत्रों ने लिख दिया कि न्यूनतम टैरिफ तय होगी, इसमें भी सच्चाई नहीं है।

टैरिफ तय करना राज्यों के बिजली नियामक आयोगों का काम है और हमने उन्हें पहले से ज्यादा शक्तिशाली बनाने का प्रस्ताव किया है। यह विधेयक को पूरे बिजली वितरण क्षेत्र में ज्यादा प्रतिस्पर्धा लाने का काम करेगी तो हम बिजली की न्यूनतम कीमत कैसे तय कर सकते हैं। इसी तरह से यह कहा जा रहा है कि इसके बाद हर तरह की बिजली सब्सिडी सिर्फ बैंक खाते में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के जरिए देने की व्यवस्था होगी तो यह भी सही नहीं है। प्रस्तावित विधेयक में ऐसा कुछ नहीं है।

प्रश्न: एक विरोध यह है कि जिस ढांचे को सरकारी डिस्काम (बिजली वितरण कंपनियों) ने बनाया है उसका इस्तेमाल मुफ्त में निजी कंपनियों को करने का अधिकार मिलेगा।

उत्तर: इस सवाल का जवाब मैं दूरसंचार क्षेत्र के साथ तुलना करके देना चाहूंगा। आपको याद होगा जब पहली बार निजी क्षेत्र के लिए दूरसंचार क्षेत्र को खोला गया तो पहले की कंपनियों ने सरकार की तरफ से स्थापित इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल किया। लेकिन इसके बदले सरकारी कंपनियों को फीस अदा की गई। इस तरह की व्यवस्था सड़क, एयरपोर्ट जैसे क्षेत्र में भी है।

प्रस्तावित विधेयक की धारा 62 में यह प्रस्तावित है कि पहले से मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल करने पर नई डिस्काम को शुल्क देना होगा। उनकी तरफ से तय बिजली की दर में इस अतिरिक्त शुल्क को जोड़ा जाएगा। मौजूदा डिस्काम के बिजली खरीद समझौते के प्रावधानों का नई डिस्काम को भी पालन करना होगा। वैसे भी हमने देखा है कि जब भी किसी क्षेत्र में एक से ज्यादा कंपनियां आती हैं तो ग्राहकों को सबसे ज्यादा फायदा होता है। यहां भी होगा।

प्रश्न: ग्राहकों के हितों की सुरक्षा के लिए इसमें क्या प्रावधान किये गये हैं

उत्तर: कई प्रावधान हैं।

  • पहला, धारा 43 में प्रस्तावित है कि नई डिस्काम के लिए भी यूनिवर्सल सर्विस आब्लाइजेशन होगी यानी हर तरह के ग्राहकों को कनेक्शन देना होगा। जिस क्षेत्र के लिए लाइसेंस हैं वहां के हर ग्राहक को लाइसेंस देना होगा।
  • दूसरा, ग्राहकों की हितों की बेहतर सुरक्षा के लिए हम राज्यों के नियामक आयोग को मजबूत कर रहे हैं।
  • तीसरा, धारा 65(ए) के तहत हमने बिजली क्षेत्र में क्रास सब्सिडी की व्यवस्था में बदलाव करने की बात कही है और इससे नई कंपनियों के लिए अधिक वसूले गये बिजली शुल्क का इस्तेमाल उन क्षेत्रों में करने की बाध्यता होगी, जहां बिजली की पहुंच व खपत कम है। इससे गरीब जनता को फायदा होगा क्योंकि उद्योग आदि से वसूली गई बिजली बिल को दूसरे इलाकों में खर्च करना होगा।