India Water Week: आपूर्ति नहीं, मांग के तार्किक प्रबंधन से भारत बनेगा पानीदार, पढ़ें एक्सक्लूसिव इंटरव्यू
देश में पानी की कहानी सबको पता है लेकिन कोई न उसे सुनना चाहता है। इस मुद्दे को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर जल विशेषज्ञ स्टाकहोम वाटर प्राइज पुरस्कार से सुशोभित प्रो असित के विस्वास से दैनिक जागरण के अरविंद चतुर्वेदी ने विस्तृत बातचीत की। (फोटो सौ-इंडिया वाटर वीक)
By Devshanker ChovdharyEdited By: Updated: Mon, 31 Oct 2022 08:52 PM (IST)
नई दिल्ली, अरविंद चतुर्वेदी। देश में पानी की कहानी सबको पता है, लेकिन कोई न उसे सुनना चाहता है और न ही सुनाना। कारण कि किसी न किसी तरीके से अभी उसका गला तर हो रहा है। उसकी गाड़ी धुली जा रही है। उसके रोजाना के काम पूरे हो रहे हैं। लेकिन पानी की समस्या को नजरअंदाज करके हम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। प्रति व्यक्ति गुणात्मक रूप से बढ़ती मांग, विलुप्त होते जल निकाय और प्रदूषण होता पानी इस समस्या को और विकराल बना रहे हैं।
पानी के लिए तीसरा विश्व युद्ध होगा कि नहीं, यह तो अभी ठोस रूप से नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना तय मानिए अगले कुछ दशक में गला तर करने के लिए हम सबको मशक्कत करनी पड़ सकती है। विवशता यह होगी कि दुनिया को कोई भी तरल इसका प्रभावी विकल्प नहीं बन पाएगा। देश में पानी की इसी विकराल होती समस्या से निपटने के लिए नोएडा में इंडिया वाटर वीक के तहत दुनिया भर से जाने-माने जल विशेषज्ञों को बुलाया गया है।
एक से सात नवंबर तक चलने वाला यह आयोजन इन विशेषज्ञों की राय के बूते भारत को पानीदार बनाने के करीब ले जाएगा। इसी क्रम में भारत में जल समस्या की वजहें, समाधान, व्यवधान आदि को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर जल विशेषज्ञ और जल क्षेत्र के नोबल कहे जाने वाले स्टाकहोम वाटर प्राइज पुरस्कार से सुशोभित प्रो असित के विस्वास से दैनिक जागरण के अरविंद चतुर्वेदी ने विस्तृत बातचीत की। पेश है प्रमुख अंश:-
कभी भारत नदियों, झरनों, तालाबों और जल निकायों का देश हुआ करता था, कहां विलुप्त हो गईं ये जल संरचनाएं?
सदियों से भारत का जल प्रबंधन गैर टिकाऊ रास्ते पर चल रहा है। करीब सात दशक पहले यहां सबका गला हर समय तर करने लायक पानी था। जैसे-जैसे आबादी बढ़ी, शहरीकरण और उद्योगीकरण बढ़ा, भारत की पानीदार होने की तस्वीर बेहतर से बदतर होती गई। जल से जुड़ी खराब समझ ने स्थिति को और बिगाड़ा। जमीन की आसमान छूती कीमतों ने ताल-तलैयों सहित जल निकायों को अतिक्रमण के आगोश में लेकर नई संरचनाओं में बदल दी।
भारतीय कानून प्रणाली ने सभी भूस्वामियों को मनमर्जी के हिसाब से अपनी जमीन से पानी खींचने का अधिकार देता है। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में हरित क्रांति के सफल होने की कहानी जमीन से पानी खींचने के इसी अधिकार पर टिकी रही। किसानों के बिजली मुफ्त दी जाती है। इससे खाद्यान्न उत्पादन तो बढ़ा लेकिन पानी की स्थिति बदतर होती गई। देश के कई हिस्सों में भूजल स्तर सालाना एक मीटर के हिसाब से नीचे खिसक रहा है।
भारत के सामने इस भयावह जल समस्या का समाधान क्या है?
पानी को लेकर भारत का इतिहास रहा है कि जैसे-जैसे यहां मांग बढ़ी है, आपूर्ति भी उसी अनुपात में बढ़ती गई। इस पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया कि अपनी जरूरत को कैसे सीमित या प्रबंधित किया जाए। अभी भी, इस बात के प्रयास चल रहे हैं कि कैसे एक से अधिक बेसिन को जोड़कर पानी की आपूर्ति को बढ़ाई जाए। यदि भारत भविष्य में पानीदार बनना चाहता है तो तो उसे अनिवार्य रूप से पानी की मांग का तार्किक रूप से प्रबंधन करना ही होगा। और दूसरा कोई विकल्प उसके सामने नहीं है।
दो अन्य समस्याएं जल की किल्लत को और भयावह कर रही है। पहला, भारत की जल गुणवत्ता प्रबंधन बहुत ही अधकचरा है। हमारा अनुमान बताता है कि सिर्फ 10-12 प्रतिशत भारतीय ही वेस्ट वाटर मैनेजमेंट प्रैक्टिस को अपना पा रहे हैं। औद्योगिक क्षेत्र की स्थिति भी ठीक नहीं है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि किसी शहरी क्षेत्र के आसपास के सभी जलनिकाय गंभीर रूप से प्रदूषित हैं।दूसरी समस्या जलवायु परिवर्तन से जुड़ी है। भारत के सामने जल प्रबंधन से जुड़ी बड़ी समस्या खड़ी है। सूखा और बाढ़ की समस्या विकराल और दीर्घकालिक हो रही है। लिहाजा पानी के प्रति देश को सुरक्षित करने के लिए देश को योजनाएं बनानी होंगी। बाढ़ और सूखे की समस्या से निजात पानी होगी। हालांकि जल से जुड़े देश के बुनियादी ढ़ाचे का इतना विकास नहीं हो पाया है कि वह सूखे से लड़ने में सक्षम हो।