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Exclusive: 'G-20 के घोषणा पत्र पर 15 बार लगा कि नहीं बन सकेगी सहमति', अमिताभ कांत से खास बातचीत

जी-20 शिखर सम्मेलन खत्म हो चुका है।चीन रूस अमेरिका यूरोपीय संघ जैसे एक दूसरे के धुर विरोधी देश भारत की अध्यक्षता में हुई बैठक में साझा घोषणा-पत्र पर सहमति बनाने को ऐतिहासिक करार दे चुके हैं। दैनिक जागरण के नेशनल ब्यूरो टीम से जी-20 के लिए भारत के प्रमुख वार्ताकार अमिताभ कांत ने सहमति बनाने की प्रक्रिया से लेकर घोषणा-पत्र जारी होने के बाद की स्थिति पर लंबी बातचीत की।

By Jagran NewsEdited By: Ashisha Singh RajputUpdated: Wed, 13 Sep 2023 08:57 PM (IST)
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एक-एक देश से दो-दो सौ बार वार्ता का दौर चला: अमिताभ कांत

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। जी-20 शिखर सम्मेलन खत्म हो चुका है। साझा घोषणा-पत्र जारी हो चुका है। चीन, रूस, अमेरिका, यूरोपीय संघ जैसे एक दूसरे के धुर विरोधी देश भारत की अध्यक्षता में हुई बैठक में साझा घोषणा-पत्र पर सहमति बनाने को ऐतिहासिक करार दे चुके हैं। सहमति बनाने के लिए पिछले नौ महीनों से जी-20 के लिए भारत के प्रमुख वार्ताकार (शेरपा) अमिताभ कांत की अगुवाई में भारत के अधिकारियों को वास्तव में रात-रात भर जाग कर काम करना पड़ा है।

दैनिक जागरण के नेशनल ब्यूरो टीम से कांत ने सहमति बनाने की प्रक्रिया से ले कर घोषणा-पत्र जारी होने के बाद की स्थिति पर लंबी बातचीत की। पेश है इस वार्ता के प्रमुख अंश-

प्रश्न: जी-20 को बहुत सफल बताया जा रहा है। यूक्रेन को लेकर जारी तनाव के बावजूद साझा घोषणापत्र जारी करने पर बनी सहमति को ऐतिहासिक माना जा रहा है? इसे ऐतिहासिक क्यों माना जाना चाहिए ?

उत्तर: इसे बताने से पहले मैं आपको यह बताना चाहूंगा कि जी-20 एक ऐसा बहुदेशीय संस्था है, जिसमें आम सहमति के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा जा सकता। यहां हर सदस्य के पास वीटो करने का अधिकार है। किसी भी मुद्दे पर अगर कोई भी देश किसी भी तरह से आपत्ति जता दे तो उससे बात बिगड़ सकती है। आप इस समूह में देखेंगे तो इसमें विकासशील देश भी हैं, विकसित देश भी हैं। इसमें एक दूसरे के धुर-विरोधी देश भी हैं और ऐसे भी हैं जिनमें हाल ही में तनाव काफी बढ़ गया है।

ऐसे में शीर्ष नेताओं की बैठक में जिस घोषणा पत्र पर सहमति बनी है, उसमें कुल 83 पैराग्राफ हैं और इसके साथ 25 प्रपत्र संलग्न हैं। जितने भी मद्दे शामिल हैं उन सभी पर सभी देशों की सहमति है। एक भी देश ने असहमति का नोट नहीं लगाया है। यूक्रेन-रूस से जुड़े आठ पैरा को लेकर भी सभी देशों की सहमति थी। यह बताता है कि भारत के पास दुनिया के ऐसे संगठन का नेतृत्व करने की क्षमता है जिसमें रूस, चीन, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों के साथ कई विकासशील देश हों। और इन सभी देशों ने जिन मुद्दों पर सहमति जताई है वो सीधे तौर पर दुनिया के विकासशील व गरीब देशों के हितों से जुड़े हैं। यह सिर्फ भारत के नेतृत्व की क्षमता है जिसकी वजह संभव हुआ है।

प्रश्न: सहमति बनाने के लिए किस तरह से बातचीत हुई? क्या कभी लगा कि वार्ता टूट जाएगी?

उत्तर: वार्ता का स्वरूप इस बार काफी व्यापक था। एक-एक देश से दो-दो सौ बार वार्ता का दौर चला। पर्यावरण, इनर्जी और भूराजनीतिक तीन ऐसे क्षेत्र थे जिनको लेकर कई तरह की असहमतियां अंत-अंत तक बनी रही थी। पर्यावरण और ऊर्जा क्षेत्र को लेकर सहमति शिखर सम्मेलन के दो दिन पहले बन गई। अब भू-राजनैतिक हालात को लेकर पेंच फंसा हुआ था।

इस पर वार्ता का दौर 03 सितंबर, 2023 को शुरू हुई थी, लगातार चौबीसों घंटे बातचीत की गई। अगर ठीक से देखा जाए तो 15 बार ऐसा लगा कि अब सहमति नहीं बन सकेगी लेकिन फिर नये सिरे से बातचीत शुरु की जाती थी। 15 बार ड्राफ्ट तैयार किया गया। एक देश से मिली सहमति पर बाकी सभी 19 देशों की सहमति लेने का काम हो रहा था।

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संवेदनशीलता को देखते हुए हम वार्ता के दौरान किसी को भी मोबाइल फोन लाने की इजाजत नहीं देते थे। हमने कई बातें जी-7 देशों की नहीं मानी और रूस की भी कई बातों को अस्वीकार किया। अंतिम सहमति 09 सितंबर को शिखर सम्मेलन की शुरुआत से कुछ घंटे पहले बनी। पीएम मोदी का निर्देश व सुझाव काफी काम आया।

प्रश्न- सहमति में शामिल होने वाला आखिरी देश कौन था?

उत्तर- मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहूंगा। आखिरकार सब राजी हुए यह बड़ी बात थी।

प्रश्न: एक सवाल पूछा जा रहा है कि भारत ने इस बैठक को कुछ ज्यादा ही तवज्जो दे दिया। बहुत ज्यादा खर्च होने की भी बात की जा रही है? आपकी प्रतिक्रिया?

उत्तर: सबसे पहले तो हमने ज्यादा खर्च नहीं किया है जो बजट था उससे कम ही खर्च किया है। दूसरी बात जी-20 की बैठक दूसरे देशों में एक या दो शहरों में होता है जबकि भारत सरकार ने इसे आम जनता तक ले जाने का फैसला किया था। यही वजह है कि हमने 60 शहरों में इसका आयोजन किया। दो सौ से ज्यादा बैठकों में एक लाख से ज्यादा विदेशी मेहमान आये।

इससे इन शहरों में कुछ सुधार का मौका मिला। वहां ढांचागत सुधार का काम हुआ। हमने इस बात पर खास जोर दिया कि भारत के इन सभी शहरों की कला व संस्कृति को विश्व पटल पर प्रसिद्धि मिले। हर बैठक में एक जिला, एक उत्पाद योजना को प्रोत्साहित किया गया। होटलों व स्थानीय कारोबारियों को काफी फायदा हुआ। हर राज्य को अपनी ब्रां¨डग करने का मौका दिया गया। इसका असर पर्यटन पर देखने को मिलेगा।

प्रश्न: नई दिल्ली घोषणापत्र की सबसे बड़ी उपलब्धि आप किसे मानते हैं?

उत्तर: सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि दुनिया के सामने आज विकास को लेकर जो बड़ी चुनौतियां हैं उनसे किस तरह से निपटा जा सकता है, इसका एक मार्ग भारत ने दिखाता है। चाहे सतत विकास को किस तरह से तेज किया जाए, इसका लक्ष्य क्या हो। हरित विकास की राह किस तरह से तैयार की जाए। तकनीक और डिजिटल ढांचा तैयार करने के लिए क्या रास्ता हो? इसमें भारत की क्या भूमिका होगी? पहली बार किसी बहुदेशीय संगठन के एजेंडे में महिला केंद्रित विकास की अवधारणा को प्रमुखता से शामिल किया गया है।

स्वच्छ ऊर्जा क्रांति में विकासशील देशों को किस तरह से शामिल किया जाए और इसके लिए फंड की व्यवस्था किस तरह से हो? भारत ने इन सभी सवालों का जवाब खोजने का रोडमैप दिया है।

प्रश्न: जिस तरह से विश्व की समाधान खोजने का मंच देने की कोशिश की है उसे देखते हुए क्या जी-20 संयुक्त राष्ट्र का काम नहीं करने लगा है?

उत्तर: इसमें कोई दो राय नहीं कि नई दिल्ली घोषणापत्र जैसा प्रपत्र पहले कभी जी-20 या किसी दूसरे बहुदेशी संस्थान में नहीं निकला। यह बताता है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जी-20 ने जिस तरह से आज के युग के समक्ष बड़ी बड़ी समस्याओं के समाधान को लेकर आम सहमति बनाई है उससे साफ है कि इस संगठन में संयुक्त राष्ट्र या संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से कई गुणा ज्यादा निर्णय लेने की क्षमता है।

संयुक्त राष्ट्र में सिर्फ बातें होती हैं। सुरक्षा परिषद में तो कोई भी काम नहीं कर रहा है। दूसरी तरफ, जी-20 ने बड़े मुद्दे पर विमर्श करता है और अगर भारत जैसा नेतृत्व हो तो सभी को मिला कर फैसले भी हो सकते हैं। मैं यहां बता दूं कि नई दिल्ली में जो फैसले हुए हैं हम उसका क्रियान्यवन सुनिश्चित करने में भी सहयोग करेंगे।

प्रश्न- मोदी सरकार में कई योग्य ब्यूरोक्रेट चेहरे हैं। क्या आपकी भी राजनीति में रुचि है?

उत्तर- नहीं मेरी कोई व्यक्तिगत रुचि नहीं है। मेरी रुचि सिर्फ इसमें होती है कि मुझे जो काम दिया गया है उसे जी जान से करूं।

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