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Explainer: दुनिया में रहेगी शांति या दिखेगा युद्ध का तांडव? 2024 में इन देशों पर मंडरा रहा गृह युद्ध का बादल

इस वर्ष की शरुआत में रूस-यूक्रेन युद्ध और अंत आते-आते इजराइल और हमास के बीच संघर्ष वर्ष 2023 वैश्विक मंच पर काफी हिंसा और अशांति भरा रहा। 2021 में म्यांमार में सैन्य तख्तापलट ने आंग सान सू की नेतृत्व वाली लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंका था। इससे व्यापक नागरिक विरोध शुरू हो गया जो सशस्त्र प्रतिरोध में बदल गया।

By Prince Sharma Edited By: Prince Sharma Updated: Sat, 30 Dec 2023 07:36 AM (IST)
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पांच स्थानों को गृह युद्ध के लिए सबसे ज्यादा संवेदनशील माना है...

ऑनलाइन डेस्क, नई दिल्ली।  इस वर्ष की शरुआत में रूस-यूक्रेन युद्ध और अंत आते-आते इजराइल और हमास के बीच संघर्ष, वर्ष 2023 वैश्विक मंच पर काफी हिंसा और अशांति भरा रहा। हालांकि विशेषज्ञों के अनुसार आने वाला वर्ष इस मामले में और भी ज्यादा भयावह हो सकता है। आस्ट्रेलिया में  फ्लिडर्स यूनिवर्सिटी की अध्ययनकर्ता जेसिका गेनायर के अनुसार मौजूदा समय में कई देशों में अशांति बढ़ रही है जो 2024 में गृहयुद्ध का रूप ले सकती है। विशेषज्ञों ने इन पांच स्थानों को गृह युद्ध के लिए सबसे ज्यादा संवेदनशील माना है...

म्यांमार में छिड़ सकता है गृहयुद्ध

2021 में म्यांमार में सैन्य तख्तापलट ने आंग सान सू की नेतृत्व वाली लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंका था। इससे व्यापक नागरिक विरोध शुरू हो गया जो सशस्त्र प्रतिरोध में बदल गया। इसके बाद से ही यहां स्थिति अराजक हो गई। 135 जातीय समूहों का घर इस देश में तख्तापलट से पहले वर्षों तक, सेना और कई अल्पसंख्यक जातीय समूहों के बीच संघर्ष चल रहा था, जो लंबे समय से अपने क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण की मांग कर रहे थे। इन अल्पसंख्यक समूहों के प्रतिरोध की दृढ़ता और सेना का समझौता करने से इन्कार 2024 में देश को गृह युद्ध में धकेल सकता है।

विद्रोही गतिविधियों से जूझ रहा माली

पश्चिम अफ्रीकी देश माली लंबे समय से विद्रोही गतिविधियों से जूझ रहा है। 2012 में, माली की सरकार तख्तापलट में गिर गई और इस्लामी आतंकवादियों द्वारा समर्थित तुआरेग विद्रोहियों ने उत्तर में सत्ता पर कब्जा कर लिया। यहां स्थिरता लाने के लिए 2013 में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन की स्थापना की गई थी। 2020 और 2021 में दो और तख्तापलट के बाद, सैन्य अधिकारियों ने अपनी शक्ति मजबूत की। 2023 में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के वहां से निकल जाने के बाद संयुक्त राष्ट्र के ठिकानों के भविष्य में उपयोग को लेकर सेना और विद्रोही बलों के बीच हिंसा भड़क उठी। नवंबर में, कथित तौर पर रूस के वैगनर समूह द्वारा समर्थित सेना ने रणनीतिक उत्तरी शहर किडाल पर नियंत्रण कर लिया, जिस पर 2012 से तुआरेग बलों का कब्जा था। इसीलिए 2024 में यहां अस्थिरता बढ़ने का अंदेशा है।

आर्थिक-राजनीतिक पतन की ओर बढ़ता लेबनान

2019 में लेबनान में सरकार के खिलाफ व्यापक नागरिक विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ था। 2020 में राजधानी बेरूत में 2,750 टन अमोनियम नाइट्रेट में हुए भीषण विस्फोट के बाद बेरूत बंदरगाह पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो गया था। सरकार के भष्ट्र आचरण की वजह से हुए इस घटना ने स्थिति को और बिगाड़ दिया। सितंबर में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी आर्थिक सुधार की कमी के लिए लेबनान की आलोचना की। लेबनानी सरकार राष्ट्रपति की नियुक्ति पर भी सहमति बनाने में विफल रही है, यह पद एक वर्ष से अधिक समय से खाली है। हाल ही में, इजराइल और हमास के बीच युद्ध ने लेबनान तक फैलने की धमकी दी है। यह लेबनान की आर्थिक सुधार की प्रमुख आशा बने पर्यटन उद्योग को खतरे में डाल रहा है। ये कारक 2024 में अधिक गंभीर आर्थिक और राजनीतिक पतन का कारण बन सकते हैं।

अशांत हो सकता है पाकिस्तान

1947 में आजादी के बाद से ही पाकिस्तान की राजनीति में सेना ने हस्तक्षेपकारी भूमिका निभाई है। सैन्य अधिकारियों ने कई बार लोकप्रिय रूप से चुने गए सरकार को सत्ता से हटाया है। 2022 में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को संसद के मतदान में सत्ता से बेदखल कर दिया गया और बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ्तारी के बाद देश भर में सेना के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए। पाकिस्तान को पड़ोसी देश अफगानिस्तान में अस्थिरता और बढ़ते आतंकवादी हमलों का भी सामना करना पड़ रहा है।

पाकिस्तान में फरवरी, 2024 में संसदीय चुनाव हो सकते हैं, जिसमें वर्तमान सैन्य कार्यवाहक सरकार द्वारा नागरिक शासन को सत्ता हस्तांतरित करने की उम्मीद है। यदि सत्ता का यह हस्तांतरण नहीं होता है, या देरी होती है, तो नागरिक अशांति हो सकती है।

श्रीलंका में राजनीतिक असंतोष

श्रीलंका को 2022 में गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था। नागरिक विरोध के कारण तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को देश से भागना पड़ा। उनकी जगह वर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रम¨सह ने ले ली। 2024 के अंत तक श्रीलंका में भी चुनाव होने हैं। इसमें विक्रम सिंह के दूसरे कार्यकाल के लिए खड़े होने की संभावना है, लेकिन जनता के बीच उनका भरोसा कम है। यह असंतोष नए सिरे से विरोध प्रदर्शन को जन्म दे सकता है। खासकर अगर अर्थव्यवस्था फिर से लड़खड़ाती है।

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