इन केसों में सुप्रीम कोर्ट ने पथ-प्रदर्शक फैसले सुनाए थे, जिससे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा हुई और भारतीय लोकतंत्र को डांवांडोल होने से बचाया। नरीमन नवंबर 1950 में एक वकील के रूप में बॉम्बे बार में शामिल हुए थे। खास बात ये है कि इसी साल सुप्रीम कोर्ट भी अस्तित्व में आया था।
हम इस स्टोरी में आपको उन केसों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनमें फली एस नरीमन एक वकील के रूप में शामिल रहे थे।
गोलकनाथ केस (1967)
गोलकनाथ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि संसद ऐसा कानून नहीं बना सकती जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करे। इस केस में नरीमन मौलिक अधिकारों के संरक्षण की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं की तरफ से एक हस्तक्षेपकर्ता के रूप में पेश हुए थे।
केशवानंद भारती केस
फली एस नरीमन ने प्रसिद्ध वकील नानाभोय पालखीवाला की इस फेमस केस में मदद की थी, जिसके कारण एक क्रांतिकारी फैसला सामने आया था। इस केस ने संविधान के 'बुनियादी ढांचे के सिद्धांत' को निर्धारित किया था, जिससे संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति कम हो गई थी।साल 1973 के इस फैसले ने साथ ही न्यायपालिका को संविधान की मूल संरचना के उल्लंघन के आधार पर किसी भी संवैधानिक संशोधन की समीक्षा करने का अधिकार दे दिया था।
टीएमए पाई फाउंडेशन केस
सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत निजी शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता को मान्यता दी थी। साथ ही उन्हें अत्यधिक सरकारी हस्तक्षेप के बिना संचालित करने की अनुमति दी। नरीमन इस केस के प्रमुख वकीलों में से एक थे।
एसपी गुप्ता या प्रथम न्यायाधीश केस (1981)
एसपी गुप्ता केस में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि न्यायिक नियुक्ति और ट्रांसफर में चीफ जस्टिस की सिफारिश की प्रधानता को सरकार द्वारा ठोस आधार पर खारिज किया जा सकता है।हालांकि, न्यायिक चर्चाओं की वजह से साल 1993 में संवैधानिक अदालतों में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली का निर्माण हुआ। इसमें शीर्ष कोर्ट ने दूसरे जजों के मामले में अपना फैसला सुनाया था।
भोपाल गैस त्रासदी केस (1984)
नरीमन साल 1984 के दर्दनाक भोपाल गैस त्रासदी केस में भी शामिल रहे थे। वह यूनियन कार्बाइड के लिए पेश हुए थे, लेकिन बाद में उन्होंने स्वीकार किया कि यह उनकी एक गलती थी। उन्होंने कोर्ट के बाहर पीड़ितों और कंपनी के बीच एक समझौते को अंतिम रूप देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
एनजेएसी केस (2014)
साल 2015 में एक संविधान पीठ ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को रद्द कर दिया था, जिसे न्यायिक नियुक्तियां करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। नरीमन ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) के खिलाफ दलील दी। उन्होंने एनजेएसी के खिलाफ मजबूत तर्क रखे और कहा कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता करेगा और कार्यपालिका को प्रधानता देगा।
जे जयललिता के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति केस
तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री रहीं जे जयललिता ने अपने खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले में फली एस नरीमन को 2014 में अपना वकील नियुक्त किया। वरिष्ठ वकील नरीमन ने जयललिता की जमानत करवाई थी।
नर्मदा पुनर्वास केस
नर्मदा पुनर्वास केस में नरीमन ने गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व किया था। लेकिन उन्होंने ईसाइयों पर हमलों और बाइबिल की प्रतियां जलाने की खबरें सामने आने के बाद केस को छोड़ दिया था।
कावेरी जल विवाद केस
नरीमन ने कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल के दक्षिणी तटवर्ती राज्यों से जुड़े सबसे जटिल नदी जल बंटवारे विवाद में सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक का प्रतिनिधित्व किया था।30 सितंबर, 2016 को नरीमन ने शीर्ष कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने पर राज्य सरकार के साथ अपने मतभेदों पर कर्नाटक के केस में बहस करने से मना कर दिया था। इससे कर्नाटक को कावेरी नदी से तमिलनाडु के लिए 6,000 क्यूसेक पानी छोड़ने के लिए कहा गया था।
नबाम रेबिया फैसला (2016)
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2016 में फैसला सुनाया कि किसी राज्य का राज्यपाल केवल मंत्रिपरिषद और मुख्यमंत्री की सहायता और सलाह पर काम कर सकता है। नरीमन हाउस व्हिप बमांग फेलिक्स के लिए पेश हुए थे। उन्होंने कहा कि राज्यपाल के पास विधानसभा सत्र को आगे बढ़ाने की शक्ति नहीं है क्योंकि यह केवल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर ही किया जा सकता है।
कोविड-19 केस
फली एस नरीमन ने पारसी जोरास्ट्रियन कोविड-19 पीड़ितों के शवों को संभालने के लिए प्रोटोकॉल और मानक संचालन प्रक्रिया पर विवाद में पारसी समुदाय का प्रतिनिधित्व किया था। इसके तहत 'टॉवर ऑफ साइलेंस' के ऊपर मेटल के जाल लगाए जाने थे ताकि पक्षी शवों को न खा सकें।
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