Analysis: अमेरिका, चीन से कम नहीं अब भारत, इंटरसेप्टिंग मिसाइल का किया टेस्ट
भविष्य में यदि भारत पर रॉकेट हमला होता है तो स्वदेश निर्मित बैलिस्टिक मिसाइल उन हमलों से निपटने में बेहद कारगर साबित होगी।
नई दिल्ली, शशांक द्विवेदी। रक्षा क्षेत्र में एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए भारत ने किसी भी बैलेस्टिक मिसाइल हमले को बीच में ही नाकाम करने में सक्षम इंटरसेप्टर मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया है। मल्टी लेयर बैलेस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम विकसित करने के प्रयासों के अंतर्गत भारत ने ओडिशा के एक परीक्षण केंद्र से स्वदेश निर्मित सुपरसोनिक इंटरसेप्टर मिसाइल का परीक्षण किया। यह मिसाइल धरती के वातावरण के 30 किलोमीटर की ऊंचाई के दायरे में आने वाली किसी भी बैलिस्टिक मिसाइल को बीच में ही मार गिराने में सक्षम है। इस वर्ष किया गया यह तीसरा सुपरसोनिक इंटरसेप्टर परीक्षण है।
एएडी के नाम से भी जानी जाती है ये मिसाइल
इससे पहले 11 फरवरी और 1 मार्च 2017 को दो परीक्षण किए जा चुके हैं। यह बहुस्तरीय बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली का हिस्सा है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ द्वारा निर्मित इस मिसाइल को एडवांस्ड एयर डिफेंस मिसाइल (एएडी) के नाम से भी जाना जाता है। परीक्षण के दौरान एक इलेक्ट्रॉनिक लक्ष्य तय किया गया था। ट्रैकिंग राडारों से सिग्नल मिलते ही इंटरसेप्टर ने अब्दुल कलाम आइलैंड (वीलर आइलैंड) से उड़ान भरी और तय रास्ते पर आने वाली हमलावर मिसाइल को हवा में ही ध्वस्त कर दिया। यह परीक्षण स्वदेश विकसित उच्च गति की इंटरसेप्टर मिसाइल के प्रभावशीलता के निरीक्षण करने के लिए किया गया। साढ़े सात मीटर लंबी एएडी इंटरसेप्टर मिसाइल एक एकल चरण ठोस रॉकेट चालित मिसाइल है जोकि इनीर्सियल नेविगेशन प्रणाली से लैस है। इसे एक हाईटेक कंप्यूटर, एक इलेक्ट्रो-मैकेनिकल एक्टीवेटर से लैस किया गया है। इसका अपना अलग मोबाइल लांचर, इंटरसेप्सन के लिए सिक्योर डेटा लिंक, स्वतंत्र ट्रेकिंग क्षमता और अत्याधुनिक राडार भी है।
एंटी मिसाइल सिस्टम इस तरह करता है काम
एंटी मिसाइल सिस्टम में संवेदनशील राडार की सबसे ज्यादा अहमियत है। ऐसे राडार बहुत पहले ही वायुमंडल में आए बदलाव को भांप कर आ रही मिसाइलों की पोजिशन ट्रेस कर लेते हैं। पोजिशन लोकेट होते ही गाइडेंस सिस्टम एक्टिव हो जाता है और आ रही मिसाइल की तरफ इंटरसेप्टिव मिसाइल दाग दी जाती है। इस मिसाइल का काम दुश्मन की मिसाइल को सुरक्षित ऊंचाई पर ही हवा में नष्ट करना होता है। इसे ट्रेस कर, पलटवार करने की प्रक्रिया में महज कुछ सेकंड का ही अंतर होता है।
मिसाइल कवच का रोनाल्ड रीगन ने किया था जिक्र
मिसाइल कवच के बारे में पहली बार अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के समय में जिक्र हुआ। रीगन ने शीतयुद्ध के समय में स्ट्रेटेजिक डिफेंस इनिशियेटिव (एसडीआइ) प्रस्तावित किया। यह एक अंतरिक्ष आधारित हथियार प्रणाली थी, जिसके सहारे इंटरकांटीनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (आइसीबीएम) को अंतरिक्ष में मार गिराने की बात की गई थी। लेजर लाइट से लैस इस हथियार को मीडिया ने स्टार वार का नाम दिया था। भारत के लिए यह मिसाइल रक्षा कवच बहुत जरूरी हो गया था क्योंकि चीन और पाकिस्तान लगातार अपने मिसाइल कार्यक्रमों को बढ़ावा दे रहें है। चीन के पास बैलेस्टिक मिसाइलों का अंबार लगा हुआ है। ऐसे में अपनी सुरक्षा के लिए यह जरूरी हो गया था कि दुश्मन की मिसाइल को हवा में ही नष्ट करने का सिस्टम विकसित किया जाए।
1962 के युद्ध में हम चीन से हार चुके हैं और पाकिस्तान से तो दो बार सीधी जंग हो चुकी है, लेकिन अब यदि जंग की आशंका बनती है तो युद्ध पहले की अपेक्षा बिल्कुल दूसरे ढंग से लड़ा जाएगा। इसमें परमाणु बमों से लैस मिसाइलों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। जिस परमाणु हथियारों और मिसाइलों के आतंकवादियों के हाथों में पड़ने की आशंका जतायी जा रही है, उससे भी चिंतित होना स्वाभाविक है।
भारत के लिए जरूरी थी ये मिसाइल
अमेरिका, रूस, इजरायल जैसे देशों के पास ये तकनीक है, लेकिन यदि भारत पर इस तरह के हमले होते हैं तो ऐसी स्थिति में हमारे पास बचने का उपाय नहीं रहता। नतीजतन, इन सभी पहलुओं को देखते हुए भी भारत का एंटी मिसाइल सिस्टम से लैस होना बहुत जरूरी था। आज महानगरों की घनी आबादी को देखते हुए इस तरह का एंटी मिसाइल सिस्टम हमारी सख्त जरूरत बन चुका है। इस मिसाइल कवच के विकसित होने से हमारे ऊर्जा स्नोतों मसलन, तेल के कुएं और परमाणु प्रतिष्ठानों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी। कोई मिसाइल या रॉकेट अपने लक्ष्य को निशाना बनाए, उसके पहले ही उसे मार गिराने का विचार सबसे पहले द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आया। जर्मन वी-1 और जर्मन वी-2 प्रोग्राम इसी तरह के थे।
हालांकि, ब्रिटिश सैनिकों के पास भी यह क्षमता थी और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उन्होंने दुश्मन देशों के कई ऐसे मिशन को नाकाम किया। बैलिस्टिक मिसाइल के इतिहास में जर्मन वी-2 को पहला वास्तविक बैलिस्टिक मिसाइल माना जाता है। इसे एयरक्राफ्ट या अन्य किसी युद्धक सामग्री से नष्ट करना असंभव था। इसे देखकर द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिकी सेना ने जर्मन तकनीक की मदद से एंटी मिसाइल तकनीक पर काम करना शुरू किया। मगर व्यापक सफलता 1957 में सोवियत संघ द्वारा इंटर कांटीनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल विकसित करने के बाद ही मिली।
इजराइल ने की है भारत की मदद
कई देशों द्वारा मिसाइल परीक्षण करने के कारण इनसे बचाव की जरूरत सभी को महसूस होने लगी है। यही कारण है कि विकसित देश अब मिसाइल सुरक्षा कवच विकसित करने पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। भारत के एंटी मिसाइल विकास कार्यक्रम में इजरायल का अहम योगदान है जिसके ग्रीनपाइन राडार की बदौलत एडवांस्ड एयर डिफेंस (एएडी) मिसाइल प्रणाली के अब तक कई परीक्षण किए गए हैं। चीन और पाकिस्तान के मिसाइल हमलों के खतरों को देखते हुए मिसाइल रोधी प्रणाली की जरूरत पैदा हुई है।
हमास और इजरायल के बीच लड़ाई के दौरान इजरायल की ऐसी ही रक्षा प्रणाली ऑयरन डोम काफी कारगर साबित हुई थी। ऑयरन डोम ने गाजा पट्टी से इजरायल पर दागे गए 300 से अधिक रॉकेटों को हवा में ही नष्ट कर दिया। भविष्य में यदि भारत पर इस तरह का कोई मिसाइल हमला होता है तो हमारी अपनी बनाई हुई यह प्रणाली बहुत अहम साबित होगी।
(लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डिप्टी डायरेक्टर हैं)
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