Budget 2021-22: खिलखिलाएं नौनिहाल, महिला हो खुशहाल, इन पर हो बजट में विशेष ध्यान, तभी खुलेगी तरक्की की राह
हमें सबसे ज्यादा ध्यान सर्वाधिक प्रभावित महिलाओं और बच्चों पर केंद्रित करना होगा। उनके लिए आवंटन में बिल्कुल भी कमी नहीं की जानी चाहिए। लंबे समय तक इनकी रक्षा करना जरूरी है।आगामी बजट में इन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Mon, 11 Jan 2021 09:02 AM (IST)
श्रुति अंबास्त/सिमोंती चक्रबर्ती। समग्र आर्थिक सुधारों के अलावा, आगामी बजट में विशेष रूप से उन लोगों की जरूरतों को पूरा करना चाहिए जो संकट के कारण प्रभावित हुए हैं। इनमें महिलाएं और बच्चे, प्रवासी श्रमिक, दिव्यांग व्यक्ति, अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय और र्धािमक अल्पसंख्यक शामिल हैं। भारत में महिलाएं पहले से ही कम कार्य सहभागिता दर का सामना कर रही थीं, जो कि कोविड-19 के बाद और गिर गई है। घर से जुड़े कर्तव्य, बच्चों की देखभाल सुविधा में कमी, सुरक्षित और पर्याप्त सार्वजनिक परिवहन साधनों की कमी ऐसे कारक हैं जो महिलाओं के लिए काम पर वापस आना मुश्किल बना रहे हैं।
सरकार को मनरेगा के लिए सहायता बढ़ानी चाहिए, जिसमें संकट के समय महिलाओं की उच्च भागीदारी नजर आई थी। साथ ही योजना का विस्तार शहरी क्षेत्रों में भी किया जाना चाहिए। महिलाओं के लिए अन्य महत्वपूर्ण योजनाओं जैसे कि राष्ट्रीय क्रेश योजना और स्टेप (प्रशिक्षण और रोजगार कार्यक्रम के लिए समर्थन) के लिए आवंटन को बढ़ाया नहीं जाता है तो कम से कम उसे कायम रखा जाना चाहिए। जैसा श्रम मामलों की स्थायी समिति ने सिफारिश की है। सरकार को आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को शामिल करने के लिए ‘कर्मचारी’ की परिभाषा का विस्तार करना चाहिए और उनका पारिश्रमिक बढ़ाना चाहिए।
सहायक आय के स्रोत के रूप में मातृत्व लाभ कोविड-19 के संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पीएमएमवीवाइ) के तहत लाभ की राशि को बढ़ाया जाना चाहिए। योजना के तहत प्रशासनिक आवश्यकताओं और शर्ताें को भी कम किया जाना चाहिए, जिससे ज्यादा से ज्यादा महिलाएं लाभ उठा सकें। पिछले पांच सालों में बच्चों के लिए बजटीय आवंटन कुल केंद्रीय बजट का करीब तीन फीसद पर स्थिर है। 2016 में बच्चों के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना में केंद्रीय बजट के स्तर को कम से कम पांच फीसद करने की मांग की गई थी, जबकि बच्चे महामारी से अपेक्षाकृत अप्रभावित रहे हैं।
ऐसे में आंगनबाड़ी सेवा, मिड डे मील और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसी प्रमुख स्वास्थ्य एवं पोषण योजनाओं के क्रियान्वयन में व्यवधान का प्रभाव बच्चों पर पड़ा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (एनएफएचएस-5) के सर्वे से पता चलता है कि अधिकांश राज्यों में पिछले पांच सालों में आयु के आधार पर कम ऊंचाई और ऊंचाई के हिसाब से बच्चे कम वजनी रहे। आंगनबाड़ियों और स्कूलों के बंद होने से स्थिति के बिगड़ने की आशंका है। इन असफलताओं को उलटने के लिए, केंद्रीय बजट 2021-22 को पोषण सेवाओं को मजबूत करने और विस्तार देने पर ध्यान देना चाहिए।
महिलाओं और बच्चों को सीधे तौर पर लक्षित करने वाली योजनाओं की सुरक्षा के अतिरिक्त बजट 2021-22 को रोजगार गारंटी, प्रत्यक्ष आय सहायता, राशन, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त राशि देने की जरूरत है। कोविड-19 से संबंधित व्यवधानों के कारण सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं के तहत धन का उपयोग 2020-21 में सामान्य से कम हो सकता है। हालांकि, इससे आगामी बजट में कम आवंटन नहीं होना चाहिए, क्योंकि ये योजनाएं कमजोर समूहों की जरूरतों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
(लेखक सेंटर फॉर बजट गवर्नेंस एंड अकाउंटबिलिटी, नई दिल्ली में पॉलिसी एनालिस्ट और सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर हैं)