सांप्रदायिक हिंसा की आग में सबसे पहले जला था भारत का यह शहर, एक पोस्टर की वजह से बरपा था हंगामा
हरियाणा के नूंह में दो समुदायों के बीच हिंसक झड़प में 6 लोगों की मौत हो गई। इस हिंसा पर लगाम लगाने के लिए प्रशासन को काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है। नूंह हिंसा की आग गुरुग्राम से लेकर फरीदाबाद तक फैल गई। आइए जानते हैं कि आखिर इस हिंसा के पीछे की क्या कहानी है और इससे पहले देश में कब-कब भीषण सांप्रदायिक हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया गया।
By Piyush KumarEdited By: Piyush KumarUpdated: Wed, 02 Aug 2023 06:17 PM (IST)
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। देश की राजधानी से सिर्फ 85 किलोमीटर दूर हरियाणा का नूंह जिला सांप्रदायिक हिंसा की आग में जल रहा है। विश्व हिंदू परिषद की धार्मिक यात्रा के दौरान हुई हिंसा और बवाल के बाद अब तक 6 लोगों की जान जा चुकी है। वहीं, 60 लोग घायल हो चुके हैं।
हिंसा को अंजाम देने वाले लगभग 116 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। जिले में धारा 144 लागू कर दी गई है। इंटरनेट सेवा बंद है। अब तक हिंसा के खिलाफ 41 एफआईआर दर्ज किए जा चुके हैं। इस हिंसा पर लगाम लगाने के लिए प्रशासन को काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है। नूंह हिंसा की आग गुरुग्राम से लेकर फरीदाबाद तक फैल गई।
अफवाह की वजह से फैली हिंसा
सोशल मीडिया पर फैले अफवाहों की वजह से नूह में हिंसा भड़क उठी। दरअसल, सोशल मीडिया पर यह खबर चलाई गई कि विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित इस रैली में मोहित यादव उर्फ मोनू मानेसर भी हिस्सा लेगा। मोनू पर इस साल फरवरी में नासिर और जुनैद की मौत मामले में एफआईआर दर्ज किया गया है।एक वीडियो में देखा गया कि मोनू ने कहा था कि वो यात्रा में शामिल होने वाला है। इसके बाद यह खबर सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गई कि मोनू इस यात्रा में शामिल होगा। विहिप ने मोनू मानेसर को यात्रा में शामिल होने से मना कर दिया। लेकिन, तब तक काफी देर हो चुकी थी।
देश की पहली सांप्रदायिक हिंसा कब हुई?
First Communal violence in India: देश के रिकॉर्ड में दर्ज पहली सांप्रदायिक हिंसा 17 अक्टूबर, 1851 को भड़की थी। दरअसल, पारसी समुदाय और मुस्लिम समुदाय आपस में भिड़ गए थे। यह हिंसा एक अखबार 'चित्र ज्ञान दर्पण' (Chitra Dynan Darpan) की वजह से भड़क उठी थी। अखबार में मोहम्मद साहब की एक तस्वीर छापी गई थी। वहीं, अखबार का पन्ना मुंबई की जामा मस्जिद की दीवार पर चिपकाया गया था।
जब मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज पढ़कर बाहर आए तो लोगों ने दीवार पर तस्वीर देखी। तस्वीर देखकर लोग भड़क उठे क्योंकि इस्लाम धर्म में मोहम्मद साहब का चित्र किसी भी रूप में दिखाने पर पाबंदी है। गौरतलब है कि अखबार के संपादक बायरामजी कर्सेटजी, पारसी थे। अखबार के मालिक ने जब माफी मांगी तो मुस्लिम समुदाय के लोगों का गुस्सा शांत हुआ।