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कौन हैं भारतीय वायुसेना को दुनिया की ताकतवर फौज बनाने वाले सुब्रतो बनर्जी, जिन्हें कहा गया इंडियन एयरफोर्स का जनक

08 अक्टूबर 1932 में भारतीय वायुसेना अस्तित्व में आई। भारतीय वायुसेना को दुनिया की ताकतवर फौज बनाने वाले सुब्रतो मुखर्जी का नाम आज भी सुनहरे शब्दों में लिखा हुआ है। 01 अप्रैल 1933 को पहली भारतीय वायु सेना स्क्वाड्रन का गठन किया गया तो सुब्रतो को चार अन्य अधिकारियों के साथ पायलट के रूप में शामिल किया गया।1954 में सुब्रतो को भारतीय वायुसेना के कमांडर-इन-चीफ का प्रभारी बनाया गया।

By Shalini Kumari Edited By: Shalini Kumari Updated: Tue, 05 Mar 2024 02:06 PM (IST)
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भारतीय वायुसेना की ताकत बढ़ाने में रहा अहम योगदान
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश के इतिहास के पन्नों में आज कई शूरवीरों का नाम सुनहरे शब्दों में लिखा हुआ है। इन लोगों ने अपनी कड़ी मेहनत और देश के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए अपना पूरा जीवन न्योछावर कर दिया था। उन्हीं में से एक नाम सुब्रतो मुखर्जी का है, जिनका जीवन मजबूत इरादे और पूरी तरह से सेवा के हितों के लिए प्रतिबद्धता का मिसाल था।

दरअसल, सुब्रतो मुखर्जी भारतीय वायु सेना में फ्लाइट और स्क्वाड्रन की कमान संभालने वाले पहले भारतीय थे। स्वतंत्र भारत की वायु सेना के पहले भारतीय वायु सेना प्रमुख बने। 08 अक्टूबर, 1932 में भारतीय वायुसेना अस्तित्व में आई। भारतीय वायुसेना को दुनिया की ताकतवर फौज बनाने वाले 'सुब्रतो मुखर्जी' का नाम आज भी सुनहरे शब्दों में लिखा हुआ है।

सुब्रतो मुखर्जी का शुरुआती जीवन

सुब्रतो मुखर्जी का जन्म 5 मार्च, 1911 को बंगाल के एक परिवार में हुआ था। उनका परिवार उस समय एक प्रसिद्ध परिवार हुआ करता था। दरअसल, सुब्रतो के पिता सतीश चंद्र मुखर्जी आईसीएस ऑफिसर थे और उनकी मां चारुलता मुखर्जी के पिता एक प्रसिद्ध डॉक्टर थे। इतना ही नहीं, सुब्रतो के दादा ब्रह्म समाज से जुड़े थे और समाज सुधार में उनका अहम योगदान रहा था।

1941 में सुब्रतो की शादी शारदा पंडित से हुई, जो एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता थी और बेहद अहम आंदोलन में उनका योगदान रहा है। शारदा पंडित बाद में गुजरात और फिर आंध्र प्रदेश की राज्यपाल बनाई गई थीं।

बचपन से देखा वायु सेना में शामिल होने का सपना

सुब्रतो का शुरुआती जीवन बंगाल के कृष्णानगर और चिनसूरा में गुजरा। उनकी शिक्षा कोलकाता के डायसेशन स्कूल और लॉरेटो कॉन्वेंट से हुई। 1927 में उन्होंने बीरभूम जिले स्कूल से मैट्रिक पास किया। उसके बाद उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज, कलकत्ता में दाखिला लिया और एक साल बाद यूके गए जहां कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में अध्ययन किया। उन्होंने बचपन में ही भारतीय वायुसेना में शामिल होने का सपना देख लिया था।

वायुसेना में करियर की शुरुआत

वर्ष 1929 में सुब्रतो मुखर्जी ने क्रैनवेल एंट्रेंस एग्जामिनेशन और लंदन मैट्रिकुलेशन पास किया। चयन के बाद वह रॉयल एयर फोर्स कॉलेज, क्रैनवेल में ट्रेनिंग के लिए गए। 8 अक्टूबर, 1932 को भारतीय वायुसेना का गठन हुआ, जिसमें उनको पायलट के तौर पर कमीशन किया गया। 01 अप्रैल 1933 को पहली भारतीय वायु सेना स्क्वाड्रन का गठन किया गया, तो सुब्रतो को चार अन्य अधिकारियों के साथ पायलट के रूप में शामिल किया गया।

इसके बाद जुलाई 1938 में, उन्हें फ्लाइंग ऑफिसर के पद पर नंबर 1 IAF स्क्वाड्रन की 'B' फ्लाइट की कमान सौंपी गई। 16 मार्च, 1939 को नंबर 1 पर कार्यभार संभालने के बाद वह स्क्वाड्रन की कमान संभालने वाले पहले भारतीय अधिकारी बन गए।

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान निभाई अहम भूमिका

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान वह सबसे सीनियर ऑफिसर थे और स्क्वॉड्रन लीडर बनाया गया। 1945 में युद्ध समाप्त होने पर उनको विशिष्ट सेवा के लिए 'ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश अंपायर' से सम्मानित किया गया था। स्वतंत्रता के समय, मुखर्जी भारतीय वायुसेना के सबसे वरिष्ठ एयर कमोडोर थे।

15 अगस्त 1947 को, जब भारत को आजादी मिली, तो सशस्त्र बल भी स्वतंत्र बल बन गए। हालांकि, वरिष्ठ अधिकारियों की कमी के कारण, सेवारत ब्रिटिश अधिकारियों को कमांडर के रूप में रखने का निर्णय लिया गया। उस दौरान एयर मार्शल सर थॉमस एल्महर्स्ट वायु सेना प्रमुख बने और एयर कमोडोर मुखर्जी को एयर वाइस मार्शल के रूप में पदोन्नत किया गया। इसके बाद उन्हें वायु सेना मुख्यालय में वायु सेना के उप प्रमुख के रूप में तैनात किया गया, जहां उन्होंने साढ़े छह साल से अधिक समय तक यह जिम्मेदारी संभाली।

उनके कार्यकाल में बढ़ी भारतीय वायुसेना की ताकत

01 अप्रैल, 1954 में सुब्रतो को भारतीय वायुसेना के कमांडर-इन-चीफ का प्रभारी बनाया गया और उनको एयर मार्शल की रैंक प्रदान की गई। बाद में कमांडर-इन-चीफ पद भारतीय वायुसेना में चीफ ऑफ द एयर स्टाफ पद हो गया।  उनके कार्यकाल में नए विमानों और उपकरणों के साथ वायु सेना को फिर से सुसज्जित और पुनर्गठित करना एक सबसे बड़ी चुनौती थी। उनके कार्यकाल के दौरान वायुसेना में कई तरह के अत्याधुनिक विमान शामिल किए गए।

टोक्यो में हुआ आकस्मिक निधन

नवंबर 1960 में, एयर इंडिया इंटरनेशनल एयरलाइंस ने जापान के टोक्यो शहर के लिए अपनी पहली उद्घाटन उड़ान भरी थी। मुखर्जी के साथ अन्य वायु सेना अधिकारी भी इस उड़ान में शामिल हुए थे। अधिकारी कुछ दिनों तक टोक्यो में ही रुके रहे।

08 नवंबर 1960 को, मुखर्जी आईएन के अपने एक मित्र के साथ टोक्यो रेस्तरां में डिनर के लिए गए थे। उस दौरान खाते समय उनका खाना गले में अटक गया, जिससे उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई और मौके पर ही उनकी मौत हो गई।

सैन्य सम्मान के साथ हुआ अंतिम संस्कार

सुब्रतो मुखर्जी की मौत से उस समय पूरे देश में शोक की लहर फैल गई थी। जिस समय मुखर्जी की मौत हुई, वह महज 49 वर्ष के थे। उनके निधन के बाद उनका शव दिल्ली लाया गया और पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।

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वायु सेना ने उनके सम्मान में 49 विमानों का फ्लाई पास्ट उड़ाया। उस समय हर वायुसेना कर्मी के दिल में सुब्रतो मुखर्जी के लिए एक बहुत ही खास जगह थी। उनके निधन पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू समेत प्रमुख भारतीयों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया था।

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