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आपस में जुड़ाव बढ़ाएं हिंद महासागर के देश, विदेश मंत्री जयशंकर ने पर्थ में सातवें हिंद महासागर सम्मेलन में जताई चिंता

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को संप्रभुता की रक्षा समुद्री कानूनों की अवहेलना के मामलों से निपटने और लंबे समय से चली आ रहीं संधियों के उल्लंघन जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के बीच जुड़ाव बढ़ाने का आह्वान किया। उनकी टिप्पणियों को चीन की सैन्य आक्रामकता के संदर्भ में देखा जा रहा है।

By Jagran News Edited By: Abhinav AtreyUpdated: Sat, 10 Feb 2024 06:47 AM (IST)
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आपस में जुड़ाव बढ़ाएं हिंद महासागर के देश- जयशंकर (फोटो, एक्स)

पीटीआई, नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को संप्रभुता की रक्षा, समुद्री कानूनों की अवहेलना के मामलों से निपटने और लंबे समय से चली आ रहीं संधियों के उल्लंघन जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के बीच जुड़ाव बढ़ाने का आह्वान किया। उनकी टिप्पणियों को चीन की सैन्य आक्रामकता के संदर्भ में देखा जा रहा है।

आस्ट्रेलिया के शहर पर्थ में सातवें हिंद महासागर सम्मेलन को संबोधित करते हुए जयशंकर ने कई देशों के चीनी कर्ज के जाल में फंसने की चिंताओं के बीच अपनी टिप्पणियों में अस्थिर कर्ज, कर्ज के अपारदर्शी चलन, अव्यवहारिक परियोजनाओं और विवेकहीन विकल्पों पर भी चिंता व्यक्त की।

क्वॉड बड़े आर्किटेक्चर का समर्थन करता है

विदेश मंत्री ने कहा कि क्वॉड दुनिया के इस हिस्से में बड़े आर्किटेक्चर का समर्थन करता है और जो लोग शरारतपूर्ण तरीके से कहते हैं कि चार देशों का यह संगठन आसियान की केंद्रीय भूमिका पर सवाल उठाता है, तो वे अपनी चाल चल रहे हैं।

दुनिया के सामने मौजूद चुनौतियां दिखाई देती हैं

उन्होंने कहा, 'जब हम हिंद महासागर पर नजर डालते हैं तो वहां दुनिया के समक्ष मौजूद चुनौतियां पूरी तरह दिखाई देती है। एक छोर पर हम संघर्ष, समुद्री यातायात पर खतरा, डकैती और आतंकवाद देखते हैं। तो दूसरे छोर पर अंतरराष्ट्रीय कानून को चुनौतियां, नौवहन की आजादी और संप्रभुता व स्वतंत्रता की सुरक्षा के प्रति चिंताएं हैं। कठिन वार्ता के बाद बनी यूएनसीएलओएस, 1982 जैसी व्यवस्था की कोई भी उपेक्षा स्वाभाविक रूप से परेशान करने वाली है।'

ऐसे में अस्थिरता बढ़ती है

विदेश मंत्री ने कहा, 'इस बीच अंतरराष्ट्रीय एवं गैर-पारंपरिक खतरों की एक श्रृंखला है जो आपस में जुड़ी गैरकानूनी गतिविधियों के स्पेक्ट्रम में दिखाई देती है। जब रुख में बदलाव का औचित्य साबित करने के लिए कोई विश्वसनीय तर्क नहीं दिया जाता और लंबे समय से चले आ रहे समझौतों का पालन नहीं किया जाता तो अस्थिरता बढ़ जाती है।'

हिंद महासागर के देशों के बीच अधिक विचार-विमर्श हो

जयशंकर ने आगे कहा, 'ये सभी अलग-अलग और एक साथ यह अनिवार्य बनाते हैं कि हिंद महासागर के देशों के बीच अधिक विचार-विमर्श और सहयोग हो।' उल्लेखनीय है कि भारत और आसियान सदस्यों समेत कई अन्य देश यूएनसीएलओएस के क्रियान्वयन की मांग कर रहे हैं, खासकर दक्षिण चीन सागर में। दक्षिण चीन सागर में चीन की सैन्य आक्रामकता पर विश्व की चिंताएं लगातार बढ़ रही हैं।

उत्पादन को अधिक भौगोलिक क्षेत्रों में फैलाना आज की जरूरत

वैश्विक स्तर पर आपूर्ति के जोखिमों के संदर्भ में विदेश मंत्री ने विश्वसनीय और लचीली आपूर्ति श्रृंखला बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हिंद महासागर के देशों के पास दो विकल्प हैं- या तो वे अपना अधिक सामूहिक गठबंधन अपनाएं या अतीत की तरह असुरक्षित बने रहें।

विदेश मंत्री ने कहा, 'विनिर्माण एवं तकनीक का अत्याधिक संकेंद्रण आपूर्ति के जोखिमों के साथ-साथ लाभ उठाने की संभावना भी पैदा कर रहा है। आज की जरूरत उत्पादन को अधिक से अधिक भौगोलिक क्षेत्रों में फैलाना और विश्वसनीय व लचीली आपूर्ति श्रृंखला बनाना है। डिजिटल युग और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के उद्भव ने विश्वास और पारदर्शिता को बढ़ा दिया है।'

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