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इंटरनेट पर सूचना या डाटा लीक करने पर पकड़े जाएंगे विदेशी, ISRO ने शुरू की बड़ी तैयारी

रक्षा क्षेत्र से लेकर अन्य रणनीतिक क्षेत्र को दुश्मनों से पूरी तरह सुरक्षित करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) बड़ी तैयारी में जुट गया है। नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित इंडिया मोबाइल कांग्रेस में इसरो ने अपने इस ट्रायल की प्रदर्शनी लगाई है।

By Jagran NewsEdited By: Devshanker ChovdharyUpdated: Sat, 28 Oct 2023 10:26 PM (IST)
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इंटरनेट पर सूचना या डाटा लीक करने पर पकड़े जाएंगे विदेशी। (फाइल फोटो)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। रक्षा क्षेत्र से लेकर अन्य रणनीतिक क्षेत्र को दुश्मनों से पूरी तरह सुरक्षित करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) बड़ी तैयारी में जुट गया है। नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित इंडिया मोबाइल कांग्रेस में इसरो ने अपने इस ट्रायल की प्रदर्शनी लगाई है।

डाटा या सूचना लीक करना अब आसान नहीं

इस काम में जुटे इसरो के वैज्ञानिकों ने बताया कि अभी कई देश अपने बड़े सर्वर की मदद से हमारे डाटा को शेयर कर लेते हैं और इंटरनेट आधारित हमारी बातचीत को भी डिकोड कर सकते हैं जो हमारी रणनीतिक क्षेत्र के लिए खतरनाक है। इसरो के वैज्ञानिकों ने इस प्रकार की चोरी से बचने के लिए क्वानटम कम्युनिके की मदद ली है और कोडिंग के जरिए ऐसी की (चाबी) जेनरेट की है, जिसके इस्तेमाल से डाटा चोरी करना संभव नहीं हो सकेगा।

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अगर कोई डाटा या सूचना को लीक करने की कोशिश भी करेगा तो यह पता लग जाएगा कि कोई इसकी चोरी करने की कोशिश कर रहा है। इसरो के वैज्ञानिकों ने बताया कि यह मॉडल तैयार कर लिया गया है और इस पर ट्रायल भी जारी है। अगले दो-तीन सालों में इसे लांच किया जा सकता है।

बिना खून निकाले सिर्फ 30 सेकेंड में हीमोग्लोबिन की जांच

अभी हीमोग्लोबिन की जांच के लिए पहले आपका खून लिया जाता है और फिर उसे जांच के लिए लैब में भेजा जाता है। इसके परिणाम में कुछ घंटे लगते हैं। लेकिन अब मात्र 30 सेकेंड में बिना खून निकाले हीमोग्लोबिन की जांच संभव हो सकेगी। आईटीआई भिलाई के प्रोफेसर गगन राज गुप्ता की नेतृत्व में बी-टेक के छात्र वरत शिंदे ने एक ऐसी ही टेक्नोलॉजी विकसित की है।

इंडिया मोबाइल कांग्रेस में शिंदे ने अपनी इस टेक्नोलॉजी की प्रदर्शनी लगाई है जिसकी मदद से वहां आने-जाने वाले लोगों के हीमोग्लोबिन की जांच भी वह कर रहे हैं। शिंदे का दावा है कि रायपुर स्थित एम्स ने उनकी टेक्नोलॉजी को सही ठहराया है।

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जांच के दौरान एक छोटे से डिवाइस में लगे कैमरे पर उंगली रखनी होती है। वह कैमरा फोटो लेकर उसके डाटा को प्रोसेसिंग के लिए कंप्यूटर में भेजता है। कंप्यूटर में पहले से इससे संबंधित प्रोग्रामिंग है। जांच के काम में सेंसर का भी इस्तेमाल होता है।

शिंदे ने बताया कि इस डिवाइस को बनाने में अधिकतम पांच हजार रुपए का खर्च आएगा। अभी जो इस डेवाइस से परिणाम प्राप्त हो रहे हैं वह प्रमाणित लैब के परिणाम के 0.5 आगे या पीछे पाए जा रहे हैं।