क्या देश में संभव है One Nation One Election? दो पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त व एक पूर्व सचिव ने बताए फायदे-नुकसान
एक राष्ट्र एक चुनाव (One Nation One Election) को लेकर देश में सुगबुगाहट काफी तेज हो गई है। केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है जो इसकी संभावनाओं की पड़ताल करेगा। हालांकि पूर्व अधिकारियों ने इस पर मिली-जुली प्रतिक्रिया दी है। उनका मानना है कि एक पहलू पर यह बेहतर साबित होगा तो दूसरे में इसमें कुछ चुनौतियां आ सकती हैं।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। देश में एक राष्ट्र, एक चुनाव (One Nation One Election) को लेकर चर्चा काफी तेज हो गई है। शुक्रवार यानी 1 सितंबर को केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है, जो इस प्रक्रिया की संभावनाओं का पता लगाएगी।
जहां केंद्र सरकार पूरी तरह से इसके पक्ष में है, वहीं विपक्षी दल जमकर इसका विरोध कर रही है। इस पर सभी अपना अलग-अलग पक्ष रख रहे हैं, लेकिन इसी बीच पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने भी वन नेशन, वन इलेक्शन पर अपना पक्ष रखा है और इसके फायदे-नुकसान के बारे में बताया है।
उनके मुताबिक, वर्तमान स्थिति में वन नेशन, वन इलेक्शन में एक कठिनाई है, जो संविधान और कानून में संशोधन करना है। संसद के माध्यम से उन संशोधनों को करना सरकार की जिम्मेदारी है।
संविधान बनने के बाद लगातार इसी तर्ज पर हुआ चुनाव
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा, "हमारे संविधान निर्माताओं ने पहले ही वन नेशन, वन इलेक्शन का प्रावधान कानून और संविधान में रखा था। 1952, 1957, 1962 और 1967 में वन नेशन, वन इलेक्शन के तर्ज पर चुनाव हुए हैं। वहीं, 1967 के बाद यह धीरे-धीरे हटने लगा और फिर पूरे साल चुनाव होते रहे।"
उन्होंने कहा, "चुनाव आयुक्त ने 1982-83 में भारत सरकार को सुझाव दिया था कि इसमें सुधार करना चाहिए और इससे एक बार फिर वन नेशन, वन इलेक्शन कर सकते हैं, लेकिन उस दौरान आयोग के सुझाव पर कार्रवाई नहीं हुई।"
इसके बाद साल 2015 में भारत सरकार ने चुनाव आयोग से सुझाव मांगा था कि क्या अब वन नेशन, वन इलेक्शन संभव है, तो आयोग ने बताया था कि यह संभव है, लेकिन इसके लिए संविधान में कुछ संशोधन करने होंगे।
#WATCH | 'One Nation, One Election', Former Chief Election Commissioner OP Rawat says, "...There is one difficulty in the present situation & that is to make amendment in the constitution & law. It is the government's responsibility to make those amendments through the… pic.twitter.com/H8TzafCGQN— ANI (@ANI) September 1, 2023
किन अधिनियम में करने होंगे संशोधन?
ओपी रावत ने बताया कि चुनाव आयोग ने भारत सरकार को कई अधिनियम में संशोधन करने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा, "लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1981 में संशोधन हो, ईवीएम की पर्याप्त संख्या खरीदने के लिए पैसे और पर्याप्त संख्या में पैरा मिलिट्री फोर्स मिल जाए, तो यह संभव है।"
वर्तमान स्थिति में इसे लागू करने में आएंगी चुनौतियां
पूर्व मुख्य आयुक्त से पूछा गया कि क्या अभी की स्थिति में वन नेशन, वन इलेक्शन संभव है, तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि ऐसा संभव है। हालांकि, इसके लिए संविधान और कानून में बदलाव करना एक चुनौती भरा काम होगा। इन संशोधनों को कराना सरकार की जिम्मेदारी होती है, इसके लिए सभी पार्टियों की सहमति होनी चाहिए।"
उन्होंने कहा कि जब तक सर्वसम्मति से इन अधिनियम और कानूनों में बदलाव नहीं हो जाते, तब तक चुनाव आयोग बाध्य है और वह विधानसभा चुनाव में इसे लागू नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा, "यदि संशोधन हो जाते हैं, तो इसके बाद आयोग से चर्चा करें और जितने ईवीएम की कमी है, उसे दूर करें और इसके लिए पैसे दें।"
पूर्व मुख्य आयुक्त ने कहा कि सब चीजें योजना के मुताबिक होने के बाद भी इसमें समय लगेगा, क्योंकि यह अपने आप में एक लंबी प्रक्रिया है।
कई आयोग इस पर कर रहे विचार
मीडिया ने सवाल पूछा कि जिन राज्यों में हाल ही में चुनाव हुए हैं, उनका समाधान कैसे होगा, तो इसके जवाब देते हुए ओपी रावत ने कहा, "इसके लिए चुनाव आयोग, विधि आयोग और नीति आयोग ने सुझाव दिए हैं। जो भी राजनीतिक दलों की सर्वसम्मति से संभव हो, वो करा सकते हैं।"
इसमें कोई खास जांच नहीं की गई है कि क्या फायदे होंगे, लेकिन कहा जा सकता है कि एक पहलू से इसका फायदा है। जैसे पूरे साल चुनाव होते रहने के कारण सरकार और नेता जनता के मुद्दों पर ध्यान नहीं दे पाती है और सुरक्षा में तैनाती के कारण प्रशासन को भी तितर-बितर रहना पड़ता है। वहीं, यदि वन नेशन, वन इलेक्शन शुरू होता है, तो इससे नेताओं को जनता के मुद्दे पर काम करने और ध्यान देने का समय मिलेगा।
वन नेशन-वन इलेक्शन पर पहले भी हुई है चर्चा
पूर्व कानून सचिव पीके मल्होत्रा ने वन नेशन, वन इलेक्शन (One Nation, One Election) मुद्दे पर बात करते हुए कहा कि ऐसा पहली बार नहीं है, जब इस मुद्दे पर विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा, "संविधान बनने के बाद लगातार चार चुनाव वन नेशन, वन इलेक्शन के तर्ज पर हुए और किसी तरह की परेशानी नहीं हुई थी। हमारे प्रधानमंत्री ने भी समय-समय पर कहा है कि अब समय आ गया , जब हमें इस मुद्दे की फिर से जांच करनी चाहिए और देखना चाहिए कि देश में वन नेशन, वन इलेक्शन हो। पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाएगा और समाधान निकाला जाएगा।"
#WATCH | On a panel led by former President Ram Nath Kovind to study 'One Nation, One Election', Former Law Secretary PK Malhotra says, "One Nation, One Election is not being raised for the first time. It has been debated earlier also...Our PM has also from time to time said that… pic.twitter.com/BU33Ct3rac— ANI (@ANI) September 1, 2023
उन्होंने कहा, "अलग-अलग समय पर चुनाव कराने से अधिक खर्च और समय लगता है। जैसे अभी साल के अंत में पांच राज्यों में चुनाव कराए जाएंगे और इसके बाद मई में लोकसभा चुनाव होंगे, तो उस समय तक नेता और प्रशासन पर असर पड़ेगा।"
बार-बार चुनाव कराने की वजह से लोगों को बार-बार पोलिंग बूथ के चक्कर काटने पड़ते हैं। अगर वन इलेक्शन होगा, तो लोगों के लिए आसानी होगी। साथ ही, इससे प्रशासन और सरकार अपनी जनता और शासन पर ध्यान दे सकेगी।
संभावनाओं पर विचार और जांच करना अच्छा
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति ने शुक्रवार को कहा कि लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक करने से कई फायदे होंगे। उन्होंने बताया कि इससे चुनाव खर्च कम होगा, लेकिन इसे लागू करना थोड़ा मुश्किल होगा। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति ने कहा, "संभावना पर विचार करना, जांच करना अच्छा है।"
उनके मुताबिक, एक साथ चुनाव कराने के फायदे और नुकसान दोनों हैं।
एक साथ चुनाव कराने के कई फायदे हैं। इससे आप प्रचार और अन्य चीजों में होने वाले खर्च को कम कर सकते हैं और इसमें ज्यादा समय भी बर्बाद नहीं होगा।
संवैधानिक मुद्दा सबसे बड़ी चुनौती
टीएस कृष्णमूर्ति ने कहा, "एक साथ चुनाव कराना प्रशासनिक मुद्दा है। चुनाव कराने के लिए बहुत अधिक वित्तीय व्यय, पर्याप्त सशस्त्र बल और जनशक्ति की जरूरत होगी, लेकिन ये ऐसे मुद्दे हैं, जिन्हें पूरा किया जा सकता है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती संवैधानिक मुद्दा है। जब तक इस पर ध्यान नहीं दिया जाता और इसे लागू नहीं किया जाता, तब तक एक साथ चुनाव कराने में काफी समय लगेगा।"
पूर्व में भी एक राष्ट्र-एक चुनाव पर होती रही है चर्चा
अर्थशास्त्री डॉक्टर सुरजीत सिंह गांधी द्वारा जागरण में प्रकाशित एक लेख में ये बताया गया है कि पहले चुनाव से लेकर अब तक चुनाव खर्च कितना बढ़ चुका है। इस लेख के महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार है:
- 1952 के चुनाव में 10.45 करोड़ रुपये का व्यय हुआ था, जो 2014 में बढ़कर 30,000 करोड़ रुपये हो गया।
- 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में करीब 10 हजार करोड़ रुपये ही व्यय हुए।
- 17वीं लोकसभा के चुनाव पर 60 हजार करोड़ रुपये से अधिक व्यय हुआ।
- 2015 में बिहार चुनाव पर लगभग 300 करोड़ रुपये व्यय हुए थे, जो 2020 के चुनाव में बढ़कर 625 करोड़ रुपये हो गए।
- 2016 में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल एवं पुडुचेरी के चुनावों पर कुल 573 करोड़ रुपये व्यय किए गए थे।
- प्रति वर्ष होने वाले चुनावों पर लगभग 1000 करोड़ रुपये व्यय करता है चुनाव आयोग
- देश में कुल 4121 विधायक एवं 543 सांसद प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं।
- वर्ष 1952 से लेकर 1967 तक होने वाले चार लगातार चुनाव वन नेशन वन इलेक्शन पर आधारित थे।
- 1968-69 में कई राज्यों की विधानसभाएं अलग-अलग कारणों से निश्चित समय सीमा से पहले ही भंग होने के कारण एवं 1971 में लोकसभा के चुनाव तय समय से पूर्व होने से राज्यों एवं केंद्र के एक साथ होने वाले चुनावों की कदमता बिगड़ गई। जब पहले ऐसा हो सकता था तो अब क्यों नहीं हो सकता।
यहां पढ़ें पूर्व प्रकाशित लेख- एक देश-एक चुनाव की है आवश्यकता, अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा बोझ हैं ये बार-बार होने वाले चुनाव
(समाचार एजेंसी पीटीआई और एएनआई के साथ ही जागरण में प्रकाशित पूर्व स्तंभ पर आधारित ये खबर बनाई गई है)