रक्षा विभाग में प्रशासनिक अधिकारी थीं, गरीब श्रमिकों के बच्चों का भविष्य गढ़ने में जुटीं भारती
नर्मदा की गोद में रहकर यहां के बच्चों की बेहतरी के लिए जीवन समर्पित कर दिया है। न कुछ लेकर आई थी न लेकर जाना चाहती हूं। -भारती ठाकुर
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 13 Mar 2020 02:10 PM (IST)
जितेंद्र यादव, इंदौर। नर्मदा किनारे के गांवों में गरीब नाविकोंश्रमिकों के बच्चों की जिंदगी संवारने को भारती ठाकुर ने जीवन समर्पित कर दिया है। महाराष्ट्र की रहने वाली हैं, लेकिन सबकुछ छोड़कर पिछले 10 साल से वह स्थायी तौर पर यहां निवासरत हैं। रक्षा विभाग में कार्यरत थीं। नर्मदा परिक्रमा के दौरान गांवों में अशिक्षा और पिछड़ापन देखा तो तय किया कि यहां रहकर सेवा करेंगी। मुफ्त स्कूली शिक्षा के साथ ही बच्चों को कौशल विकास का प्रशिक्षण देकर उन्हें हुनरमंद भी बना रही हैं। इस महायज्ञ में धीरे-धीरे उनके साथ आसपास के कई और लोग भी जुड़ गए हैं। मंडलेश्वर, मध्यप्रदेश के नजदीक लेपा गांव ही अब उनका स्थाई ठिकाना है।
भारत सरकार के रक्षा विभाग में प्रशासनिक अधिकारी के पद पर काम करने वाली भारती ने वर्ष 2005- 06 में अमरकंटक से वापस अमरकंटक तक 3200 किलोमीटर की पैदल नर्मदा परिक्रमा संपन्न की थी। इस दौरान उन्होंने पाया कि ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा का बहुत बुरा हाल है। आठवीं-दसवीं के बच्चों को अपना नाम भी ठीक से लिखते नहीं आता। डिप्टी कलेक्टर पिता की बेटी को ग्रामीण शिक्षा की बदतर हालत ने इतना द्रवित किया कि 10 साल पहले ही सरकारी नौकरी छोड़कर मंडलेश्वर के नजदीक नर्मदा किनारे के लेपा गांव को अपनी कर्मस्थली बना लिया।
लेपा में स्कूल शुरू किया : नाविकों और मजदूरों के बच्चों को 10वीं तक मुफ्त शिक्षा देना आरंभ किया। आज लेपा के अलावा भट्याण और छोटी खरगोन में ऐसे तीन निश्शुल्क स्कूल चला रही हैं। बच्चों को बुनियादी शिक्षा के साथ ही कौशल विकास का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। भारती के इस अभियान की बदौलत 1700 बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं। हर दिन 400 बच्चों को नि:शुल्क भोजन भी दिया जाता है। नर्मदा के किनारे होने से शिक्षा का यह मंच अब नर्मदालय बन चुका है। भारती बताती हैं, हम बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ रोजगार विषयक प्रशिक्षण भी देते हैं। फर्नीचर इत्यादि बनाना इसमें शामिल है।
स्कूल के लिए जरूरी फर्नीचर वे खुद ही बना लेते हैं। जिस तरह मां अपने किसी बेटे की खूबियों को बताते हुए गर्वित होती है, ठीक उसी तरह भारती बताती हैं, हमारे स्कूल का विद्यार्थी शंकर केवट भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के ग्रामीण टेक्नोलॉजी सेंटर के जरिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोलर ड्रायर प्रोजेक्ट का प्रेजेंटेशन देकर आया है। यहां गो संवर्धन पर भी काम हो रहा है। देसी नस्ल की 27 गायें हैं, जिनका दूध, दही और घी यहां के बच्चों के काम आता है। भोजन बनाने वाली महिलाएं और ड्राइवर आसपास के गांवों से ही हैं
सरकार नहीं समाज के भरोसे : बच्चों की शिक्षा, भोजन, परिवहन इत्यादि आवश्यकताओं का इंतजाम सरकार के भरोसे नहीं किया जाता। इसके लिए समाज ही आगे आता है। व्यवस्थाओं का खर्च जुटाने के लिए यहां दत्तक योजना चलाई जा रही है। महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के दानदाता 12-15 हजार रुपये देकर एक साल के लिए एक बच्चे को दत्तक लेते हैं। इस तरह यहां का खर्च जुटाया जाता है। जीवन बीमा निगम और जनरल इंश्यारेंस कंपनी ने स्कूल भवन बनाया तो हिंदुस्तान पेट्रोलियम और जनरल इंश्योरेंस ने मिलकर बच्चों के लिए बसों का इंतजाम किया
नर्मदा की गोद में रहकर यहां के बच्चों की बेहतरी के लिए जीवन समर्पित कर दिया है। न कुछ लेकर आई थी, न लेकर जाना चाहती हूं। यहां के बच्चे पढ़-लिखकर बेहतर नागरिक और स्वावलंबी बनें, यही इच्छा है।-भारती ठाकुर