सत्तर साल से हरिद्वार में अटकी 'हिन्दी की जमीन'
सुप्रीमकोर्ट ने प्रचारिणी सभा ट्रस्ट के खिलाफ मुकदमा दाखिल करने की दी इजाजत..
By Gunateet OjhaEdited By: Updated: Mon, 27 Feb 2017 06:18 AM (IST)
माला दीक्षित, नई दिल्ली। हिन्दी प्रेमी स्वामी सत्य देव ने 77 साल पहले हरिद्वार में अपनी जमीन और इमारत हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए दान दी थी। जिस काम के लिए संपत्ति दी जा रही है उसी उद्देश्य में उसका उपयोग हो इसके लिए दान के साथ शर्त लगाई थी कि इस संपत्ति को न तो बेचा जा सकता है और न ही गिरवीं रखा जा सकता है। हिन्दी के उत्थान के लिए इतने इंतजामों के बावजूद हिन्दी आगे नहीं बढ़ी और हरिद्वार में ही अटक कर रह गयी। जिस प्रचारिणी सभा संस्था पर इसकी जिम्मेदारी डाली गयी उस पर कुछ न करने की उंगलियां उठ रही हैं। सुप्रीमकोर्ट ने ये पता लगाने के लिए कि जमीन मिलने की शर्त के मुताबिक हिन्दी का प्रचार प्रसार किया गया या नहीं, प्रसारणी सभा के खिलाफ दीवानी अदालत में अर्जी दाखिल करने की इजाजत दे दी है।
ये मामला हरिद्वार ज्वालापुर स्थिति सत्य ज्ञान निकेतन का है जिसे काशी नागरी प्रचारिणी सभा को हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए दान में दिया गया था। प्रचारिणी सभा का मुख्यालय बनारस में है। न्यायमूर्ति पीसी घोष व न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने उत्तराखंड हाईकोर्ट का फैसला रद करते हुए याचिकाकर्ता स्वामी शिवशंकरगिरि को दीवानी अदालत में कानून के मुताबिक अर्जी और मुकदमा दाखिल करने की छूट दी है। कोर्ट ने कहा कि मामले के रिकार्ड देखने से पता चलता है कि प्रचारिणी सभा जिसे संपत्ति दान में मिली है एक ट्रस्टी की हैसियत से जमीन पर मालिकाना हक से काबिज है। कोर्ट ने 30 दिन के भीतर अर्जी दाखिल करने की छूट दी है।स्वामी शिवशंकर गिरि ने वकील प्रतीका द्विवेदी के जरिये याचिका दाखिल कर हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने काशी नागरी प्रचारिणी सभा के खिलाफ अदालत में मुकदमा दाखिल करने की इजाजत देने वाला दीवानी न्यायालय का आदेश रद कर दिया था। याचिकाकर्ता के मुताबिक स्वामी सत्यदेव ने 1936 में हरिद्वार ज्वालापुर मे कुछ जमीन खरीदी और उस पर निर्माण कराया। 1940 में उन्होंने नागरी प्रचारिणी प्रसारिणी सभा को वह संपत्ति इस शर्त के साथ दान दी कि सभा न तो उसे बेचेगी और न ही गिरवी रखेगी।
यह भी शर्त लगाई कि संपत्ति का इस्तेमाल हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार, विशेषतौर पर पश्चिमी भारत में हिन्दी के प्रचार के लिए किया जायेगा। यहां हिन्दी का पुस्तकालय स्थापित होगा और ब्याख्यान माला शुरू की जाएगी। प्रचारिणी सभा ने एक उपसमिति गठित की जो कि संपत्ति का प्रबंधन देखने लगी। याचिकाकर्ता का आरोप है कि संपत्ति हिन्दी के प्रचार प्रसार के उद्देश्य से दान की गई थी। लेकिन प्रचारिणी सभा ने इस उद्देश्य को पूरा करने में रुचि नहीं ली इसलिए पब्लिक ट्रस्ट नागरी प्रचारिणी सभा के खिलाफ उसे मुकदमा दाखिल करने की इजाजत दी जाए और ट्रस्ट का प्रबंधन किसी और को सौंपा जाए।याचिकाकर्ता का कहना था कि वह हरिद्वार का रहने वाला है और हिन्दी का प्रचार प्रसार करना चाहता है। यह भी कहा था कि हिन्दी के विद्वानों की बहुत पुरानी किताबें जो वहां रखी थीं ट्रस्ट की लापरवाही से नष्ट हो गई हैं। संपत्ति पर पौध शाला चल रही है। दूसरी ओर नागरी प्रचारिणी सभा की दलील थी कि वह एक पंजीकृत सोसाइटी है। वह पब्लिक ट्रस्ट नहीं है और संपत्ति की पूरी मालिक है इसलिए पब्लिक ट्रस्ट के खिलाफ मुकदमा करने का नियम उस पर लागू नहीं होगा।
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