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Reservation: 'औपचारिक नहीं है समानता का अधिकार', 140 पन्नों के अपने फैसले में CJI चंद्रचूड़ ने और क्या कुछ कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समानता का मौलिक अधिकार औपचारिक समानता नहीं बल्कि तथ्यात्मक समानता की गारंटी देता है।प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अनुच्छेद-14 औपचारिक समानता की नहीं बल्कि तथ्यात्मक समानता की गारंटी देता है।इस प्रकार अगर किसी व्यक्ति की कानून के उद्देश्य के संदर्भ में स्थिति समान नहीं हैं तो वर्गीकरण की अनुमति है। वर्गीकरण का यही तर्क उपवर्गीकरण पर भी समान रूप से लागू होता है।

By Agency Edited By: Sonu Gupta Updated: Fri, 02 Aug 2024 12:02 AM (IST)
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प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ । फाइल फोटो।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि समानता का मौलिक अधिकार औपचारिक समानता नहीं बल्कि तथ्यात्मक समानता की गारंटी देता है और अगर विभिन्न व्यक्तियों की स्थिति समान नहीं है, तो वर्गीकरण स्वीकार्य है।

प्रधान न्यायाधीश ने क्या कहा?

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने बहुमत का अपना 140 पृष्ठों का फैसला लिखते हुए कहा कि संविधान वैध वर्गीकरण की अनुमति देता है, बशर्ते दो शर्तें पूरी हों- पहली यह कि ऐसा स्पष्ट अंतर होना चाहिए जो समूह में शामिल व्यक्तियों को समूह के अन्य व्यक्तियों से अलग करता हो। स्पष्ट अंतर का अर्थ है ऐसा अंतर जिसे समझा जा सके।

दूसरी- उस अंतर का कानून के जरिये हासिल किए जाने वाले उद्देश्य से तर्कसंगत संबंध होना चाहिए, अर्थात वर्गीकरण के आधार का वर्गीकरण के उद्देश्य के साथ संबंध होना चाहिए। फैसले में इस बात पर विचार किया गया कि क्या उप वर्गीकरण का सिद्धांत अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है।  

अनुच्छेद-14 औपचारिक समानता की नहीं, बल्कि तथ्यात्मक समानता की गारंटी देता है। इस प्रकार अगर किसी व्यक्ति की कानून के उद्देश्य के संदर्भ में स्थिति समान नहीं हैं, तो वर्गीकरण की अनुमति है। वर्गीकरण का यही तर्क उपवर्गीकरण पर भी समान रूप से लागू होता है।- डीवाई चंद्रचूड़,  प्रधान न्यायाधीश

सभी व्यक्ति एक या दूसरे पहलू में असमान: सीजेआई

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सभी व्यक्ति एक या दूसरे पहलू में असमान हैं। किसी स्थिति में, एक व्यक्ति को भी अपने आप में एक वर्ग माना जा सकता है। उस मामले में यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि कानून सूक्ष्म वर्गीकरण न करे। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि राज्यों द्वारा अनुसूचित जातियों का उपवर्गीकरण संवैधानिक चुनौती उत्पन्न होने पर न्यायिक समीक्षा के अधीन है।

सीजेआई ने राज्यों को लेकर क्या कहा?

उन्होंने कहा कि जब भी कार्रवाई को चुनौती दी जाएगी, राज्य को अपनी कार्रवाई के आधार को उचित ठहराना होगा। उपवर्गीकरण का आधार और उसके लिए जिस मॉडल का पालन किया गया है, उसे राज्य द्वारा एकत्र किए गए अनुभवजन्य आंकड़ों के आधार पर उचित ठहराना होगा। दूसरे शब्दों में राज्य को उपवर्गीकरण की कवायद आंकड़ों के आधार पर करनी होगी, वह केवल अपनी मर्जी या राजनीतिक सुविधा के हिसाब से काम नहीं कर सकता।

कोटे पर मंडल फैसले का उल्लेख करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उसमें उपवर्गीकरण के क्रियान्वयन को केवल अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) तक सीमित नहीं किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि अनुसूचित जाति के भीतर उपवर्गीकरण अनुच्छेद 341(2) का उल्लंघन नहीं करता क्योंकि जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल या बाहर नहीं किया गया है।

उपवर्गीकरण केवल तभी उक्त प्रविधान का उल्लंघन करेगा जब अनुसूचित जातियों में शामिल कुछ जातियों या समूहों को वर्ग के लिए आरक्षित सभी सीटों पर वरीयता या विशेष लाभ प्रदान किया जाएगा। अनुच्छेद 341(2) कहता है कि संसद किसी भी जाति, नस्ल या जनजाति को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल या बाहर कर सकती है।

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