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कीर्तिमान रचने को तैयार इसरो, भारत का अंतरिक्ष में बढ़ेगा कद; चुनौतियां भी कम नहीं

उम्मीद है भारत भी वर्ष 2023 तक मानव को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता रखने वाले देशों में शामिल हो जाएगा। 5 अगस्त 2018 को PM मोदी ने ‘गगनयान मिशन’ के माध्यम से 2022 में या उससे पहले अंतरिक्ष में भारतीय अंतरिक्ष यात्री को भेज देने की घोषणा की थी

By TilakrajEdited By: Updated: Sat, 16 Jul 2022 12:08 PM (IST)
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अमेरिका के अंतरिक्ष यात्री को एस्ट्रोनाट तथा रूस के अंतरिक्ष यात्री को कास्मोनाट

नई दिल्‍ली, प्रदीप। भारत जल्द ही अपने पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान ‘मिशन गगनयान’ को पूरा कर अंतरिक्ष में कीर्तिमान स्थापित करने वाला है। हाल में केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डा. जितेंद्र सिंह ने कहा कि गगनयान मिशन की तैयारी पूरी हो चुकी है। अगले साल भारत एक या दो लोगों को अंतरिक्ष में भेजेगा। इसके लिए दो परीक्षण किए जाएंगे, जो कि इस साल के अंत तक पूरे कर लिए जाएंगे। पहले परीक्षण में मानव रहित विमान को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। दूसरे परीक्षण में रोबोट ‘व्योममित्र’ को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। इन दोनों परीक्षणों के सफल होने के बाद ही तीसरी बार में मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान की तैयारी की जाएगी।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) आज अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन, जापान जैसे देशों को कड़ी टक्कर दे रहा है। इसरो ने साल-दर-साल नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं, लेकिन स्वयं के अंतरिक्ष यान से किसी भारतीय को अंतरिक्ष में भेजने का सपना अभी तक पूरा नहीं हुआ है। अभी रूस, अमेरिका और चीन ने ही मनुष्य को अंतरिक्ष में भेजने में सफलता पाई है। अगर सबकुछ योजना के मुताबिक हुआ तो भारत भी 2023 तक मानव को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता रखने वाले देशों में शामिल हो जाएगा।

15 अगस्त, 2018 को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने ‘गगनयान मिशन’ के माध्यम से 2022 में या उससे पहले अंतरिक्ष में भारतीय अंतरिक्ष यात्री को भेज देने की घोषणा की थी, पर कोविड-19 के प्रतिकूल प्रभाव के कारण इस मिशन में एक साल की देरी हो गई। इसके तहत दो अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की कक्षा में पांच-सात दिनों के लिए भेजने की योजना है।

गगनयान को अंतरिक्ष में लांच करने के लिए भारी-भरकम सैटेलाइटों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने में सक्षम जीएसएलवी मार्क-3 राकेट का उपयोग किया जाएगा। यह राकेट पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक पर आधारित है। जिस प्रकार अमेरिका के अंतरिक्ष यात्री को एस्ट्रोनाट तथा रूस के अंतरिक्ष यात्री को कास्मोनाट कहा जाता है। उसी तर्ज पर भारतीय अंतरिक्ष यात्री को ‘गगननाट’ नाम दिया गया है। मिशन के लिए भारतीय वायुसेना के चार पायलट रूस में अपनी ट्रेनिंग पूरी कर चुके है। जल्द ही इन्हें बेंगलुरु में गगनयान माड्यूल की ट्रेनिंग दी जाएगी।

अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजना और उन्हें सुरक्षित रूप से धरती पर वापस लाना एक चुनौतीपूर्ण काम है। जाहिर है, अगर इस मिशन में इसरो सफल हो जाता है तो वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी तकनीकी क्षमता का लोहा पूरी दुनिया को मनवा सकता है। मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन की राह में अब हमें ज्यादा मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत अभी काफी बेहतर स्थिति में है।

(लेखक विज्ञान के जानकार हैं)