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'पीएम से बात हो गई है, जैसा ठीक लगे वैसा करो', गलवान पर जब चीन से बढ़ी थी तकरार तब राजनाथ ने किया था आर्मी चीफ को फोन

रिटायर्ड आर्मी चीफ जनरल एमएम नरवणे अपनी आत्मकथा फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी में 31 अगस्त 2020 की रात का जिक्र किया है जिस दौरान गलवान में चीनी सेना के साथ तनाव बढ़ गया था। उस दौरान रक्षा मंत्री ने पूरे स्थिति का जायजा लेने के बाद आर्मी चीफ को आदेश दिया था कि उनकी प्रधानमंत्री से बात हो गई है जो उचित है वो कर लिया जाए।

By Jagran NewsEdited By: Shalini KumariUpdated: Tue, 19 Dec 2023 12:07 PM (IST)
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गलवान घाटी में तनाव बढ़ने के बाद भारतीय सेना को मिल गई थी स्पेशल पावर

ऑनलाइन डेस्क, नई दिल्ली। जून 2020 में भारत और चीन के बीच हिमालय की ऊंचाई पर गलवान घाटी में हुई झड़प को 40 सालों में हुई सबसे घातक झड़प माना गया है। उस झड़प को लेकर तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल एमएम नरवणे ने एक दिलचस्प खुलासा किया है।

दरअसल, पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर चीनी सेना टैंक लेकर आगे बढ़ने लगी थी। गलवान घाटी के इस हालात से निपटने के लिए सरकार ने भारतीय सेना को फ्री हैंड कर दिया था और आदेश दे दिया था कि जो उचित है वो करो। इस स्थिति का जनरल एमएम नरवणे ने किस तरह सामना किया था, उसका जिक्र उन्होंने अपनी किताब में किया है।

आत्मकथा में किया दिलचस्प खुलासा

रिटायर्ड आर्मी चीफ जनरल एमएम नरवणे अपनी आत्मकथा 'फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी' में 31 अगस्त, 2020 की रात का जिक्र किया है। वो रात नरवणे के लिए आसान नहीं थी, उनके पास उस रात रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और रक्षा कर्मचारियों के प्रमुख के लगातार फोन आने लगे, जिसने उनकी मुश्किलों को थोड़ा और बढ़ा रही थी।

नरवणे ने अपनी किताब में लिखा, "मैंने उस रात सबसे पहले रक्षा मंत्री को फोन किया और उन्हें पूरी स्थिति से अवगत कराया। इसके बाद उन्होंने कहा कि वो मुझसे संपर्क करेंगे और फिर मुझे लगभग रात 10.30 बजे फोन आया। रक्षा मंत्री ने मुझे फोन पर बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री से बात की है और उन्होंने कहा कि जो उचित समझो वो करो। यह एक सैन्य फैसला था।"

भारी असमंजस में फंस गए थे पूर्व आर्मी चीफ

पूर्व आर्मी चीफ ने अपनी स्थिति का जिक्र करते हुए अपनी किताब में बताया, "मुझे एक बहुत ही नाजुक स्थिति में डाल दिया गया था, जिम्मेदारी पूरी तरह से मुझ पर थी। कमरे में बस घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे रही थी और मैं कुछ देर तक चुपचाप बैठा रहा। इसके बाद मैंने एक लंबी और गहरी सांस ली और खुद को शांत कर लिया।"

उन्होंने लिखा, "यह कोई वॉर गेम नहीं था, बल्कि जीवन और मृत्यु की स्थिति थी। मेरे समर्थन में कौन है और चीन-पाकिस्तान क्या करेगा, कौन-कहां कैसी कार्रवाई करेगा, यह सब सवाल मेरे दिमाग में गूंज रहे थे।" उन्होंने किताब में बताया कि सभी सवालों पर पूर्णविराम लगाकर उन्होंने उत्तरी सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी को फोन किया।

उन्होंने लिखा, "मैंने उन्हें फोन किया और हमारी ओर से पहली फायरिंग नहीं हो सकती, क्योंकि इससे चीनी सेना को बहाना मिल जाएगा और वह पहले से अधिक आक्रामक हो जाएंगे।"

चीनी सेना को दिया था चकमा

पूर्व आर्मी चीफ ने लिखा, "कुछ समय पहले मुखपारी में कैलाश रेंज पर पीएलए (चीनी सेना) ने पहली गोलीबारी करते हुए दो राउंड फायरिंग की, जिसके जवाबी कार्रवाई में भारतीय सेना ने तीन राउंड फायरिंग की। सेना को यह रुख बरकरार रखना चाहिए था, लेकिन हमने दूसरा फैसला किया।"

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उन्होंने लिखा, "हमने फायरिंग बरकरार रखने की बजाय हमारे टैंकों की टुकड़ी को दर्रे के आगे ले गए और टैंकों की बंदूकें दबा दी, ताकि पीएलए की नजर हमारी बंदूकों की नली पर रहे।" उन्होंने बताया, "हमने तुरंत इस प्लान को पूरा किया, जिसके बाद 100 मीटर तक अंदर आ चुकी पीएलए सेना रास्ते में ही रुक गई। उन्हें मालूम था कि उनके हल्के टैंक हमारे मीडियम टैंक से मुकाबला नहीं कर सकती हैं।"

कैलाश रेंज पर खुद को मजबूती से किया था स्थापित

नरवणे ने अपनी किताब में लिखा कि चीनी सेना 29-30 अगस्त की रात को मोल्दो से पैंगोंग त्सो पर चुंटी चांगला के क्षेत्र में अपने सैनिक भेज चुका था। हालांकि, 30 तारीख की सुबह तक भारतीय सेना भी खुद कैलाश रेंज पर काफी मजबूत स्थिति में थी।

उन्होंने लिखा कि पीएलए का स्थान काफी कम ऊंचाई पर था, जिसके कारण हम उनपर नजर रख पा रहे थे। उन्होंने लिखा, "फिलहाल, वो लोग हमारे लिए किसी तरह का खतरा नहीं थे, लेकिन अगर वो भारी सैन्य क्षमता के साथ आते, तो हमारे लिए एक नई चुनौती खड़ी हो सकती थी।" उन्होंने बताया कि 31 अगस्त को पीएलए की ओर से काफी हलचल देखी गई, लेकिन भारतीय सेना ने अपनी स्थिति को काफी मजबूत कर लिया था।"

आर्मी चीफ के पास लग गई फोन की झड़ी

नरवणे ने लिखा, "31 अगस्त की रात लगभग 8 बजे जोशी का फोन आया और वह काफी परेशान थे। उन्होंने कहा था कि पैदल सेना चार टैंकों के साथ धीरे-धीरे रेचिन ला की ओर बढ़ने लगी है। हमने गोला फायर भी किया था, लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ है। हालांकि, उस समय तक मुझे आदेश दिया गया था कि जब तक कहा न जाए, तब तक फायरिंग नहीं होगी। इस फोन कॉल के आधे घंटे बाद ही मेरे पास फोन की झड़ी लग गई थी, रक्षा मंत्री, एनएसए, विदेश मंत्री और कई रक्षा अधिकारियों के लगातार फोन आने लगे।"

लगातार रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री के फोन

पूर्व आर्मी चीफ ने लिखा, "एक बार फिर उत्तरी कमान के आर्मी चीफ का फोन आया। उन्होंने बताया कि चीनी टैंक आगे बढ़ रहे हैं और शीर्ष से मात्र एक किलोमीटर दूर हैं। मैंने फिर रक्षा मंत्री को फोन किया और उनसे पूछा कि क्या जाए। "

नरवणे ने कहा कि उन्होंने एक बार फिर रक्षा मंत्री और एनएसए अजीत डोभाल को रात 10 बजे फोन किया और इस फोन के कटने के बाद तुरंत मुझे कमांडर जोशी का कॉल आ गया। उन्होंने बताया कि टैंक और आगे बढ़ चुका है और अब मात्र 500 मीटर की दूरी बची है। इसके बाद नरवणे को जोशी ने बताया की पीएलए को रोकने का एकमात्र रास्ता बचा है कि मध्यम तोपखाने को खोल जाए, जिसके लिए बस आदेश का इंतजार था।

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अपने किताब में आगे पूर्व आर्मी चीफ ने बताया कि आखिर पीएलए को रोकने के लिए भारतीय सेना की ओर से क्या-क्या कदम उठाया गया था और किस तरह कार्रवाई की थी।