महाराष्ट्र में गणेशोत्सव बना राज्य महोत्सव, पंडालों में छाई रहेगी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की थीम
महाराष्ट्र सरकार ने गणेशोत्सव को राज्य महोत्सव का दर्जा दिया है और मंडलों को ऑपरेशन सिंदूर की थीम पर उत्सव मनाने की सलाह दी है। लोकमान्य तिलक ने 1893 में सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत की थी जिसका उद्देश्य युवाओं को संगठित करना था। मुंबई में 12000 से अधिक पंडालों में गणेशोत्सव मनाया जाता है।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। महाराष्ट्र में सुप्रसिद्ध सार्वजनिक गणेशोत्सव को इस वर्ष महाराष्ट्र सरकार ने न सिर्फ राज्य महोत्सव (स्टेट फेस्टिवल) का दर्जा दे दिया है, बल्कि गणेश मंडलों को यह सलाह भी दी है इस बार वे गणेशोत्सव की थीम कुछ माह पहले भारतीय सेना द्वारा पड़ोसी देश पाकिस्तान के विरुद्ध चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की थीम पर रखें।
महाराष्ट्र के साथ-साथ देश के अनेक हिस्सों में मनाया जानेवाला 10 दिन का गणेशोत्सव 27 अगस्त से शुरू हो रहा है। महाराष्ट्र में सार्वजनिक गणेशोत्सव 132 वर्ष पुराना है। 1893 में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने गणेश चतुर्थी के दिन महाराष्ट्र के घरों में मनाए जानेवाले गणेशोत्सव को सार्वजनिक और संगठित रूप से मनाने की पहल की थी।
गणेश उत्सव से समाज में जागरुकता फैलाने का संदेश
उनका उद्देश्य था कि इसी बहाने देश के युवा एक लक्ष्य को लेकर संगठित हों, तो उन्हें देश को स्वतंत्र कराने की मुहिम में शामिल किया जा सके। आजादी के बाद भी गणेशोत्सव में राष्ट्रीय महत्त्व से जुड़े मुद्दों को उभारकर समाज में जागरूकता फैलाई जाती रही है।
बृहन्मुंबई सार्वजनिक गणेशोत्सव समन्वय समिति के अध्यक्ष नरेश दहिबावकर के अनुसार इसी दृष्टि से राज्य सरकार ने गणेशोत्सव समितियों को आपरेशन सिंदूर की थीम पर अपनी झांकियां सजाने का सुझाव दिया है।
कितनी जगहों पर मनाया जाता है गणेशोत्सव?
दहिबावकर के अनुसार, सिर्फ मुंबई एवं मुंबई उपनगर में 12000 से अधिक सार्वजनिक पंडालों में गणेशोत्सव मनाया जाता है। इनमें लालबाग का राजा जैसे बड़े गणेश पंडालों की संख्या भी 3200 से अधिक है।
इस वर्ष राज्य सरकार ने गणेशोत्सव मंडलों के लिए 11 करोड़ रुपयों का अनुदान भी घोषित किया है। इस राशि में से 1800 भजन मंडलियों को 25-25 हजार रुपए दिए जाएंगे। लेकिन सरकार द्वारा अनुदान के रूप में घोषित इस राशि को लेकर भी असंतोष है।
उत्सव को राज्य महोत्सव का दर्जा दिए जाने के बाद सिर्फ 11 करोड़ की राशि अनुदान के रूप में घोषित किया जाना गणेशोत्सव मंडलों को ऊंट के मुंह में जीरा जैसा लग रहा है। उनका मानना है कि राज्य सरकार को इस संबंध में कोई निर्णय करने से पहले कुछ पुराने गणेशोत्सव मंडलों से मशविरा करना चाहिए था।
सरकारी सहयता की मांग की
दहिबावकर का कहना है कि जिस प्रकार पश्चिम पंगाल में दुर्गा पूजा मंडलों को सरकार द्वारा कुछ न कुछ आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है, उसी प्रकार यहां भी गणेशोत्सव मंडलों को सरकारी सहायता मिलनी चाहिए। क्योंकि ये मंडल सिर्फ 10 दिन का गणेशोत्सव ही संपन्न नहीं कराते। बल्कि बाढ़-भूकंप जैसी किसी भी प्राकृतिक आपदा के समय भी ये मदद करने में सबसे आगे रहते हैं।
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