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21 की उम्र में भारत आए थे गौरीशंकर, 75 के होने पर भी नहीं मिली पहचान; पढ़िए नागरिकता की मांग की दर्दभरी कहानी

पूर्वी पाकिस्तान में लंबे समय से रह रहे भारतीय नागरिक गौरी शंकर मलिक ने अपनी पत्नी के लिए नागरिकता पाने की उम्मीद में सीएए के तहत नागरिकता के लिए आवेदन किया है। पिछले 50 सालों से वे सरकारी स्कूल में शिक्षक के तौर पर काम कर रहे हैं और सरकार द्वारा दी गई जमीन पर रह रहे हैं। जानिए अब गौरी शंकर को क्यों पड़ी CAA की जरूरत।

By Jagran News Edited By: Babli Kumari Updated: Thu, 27 Jun 2024 09:52 AM (IST)
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50 साल पहले रखा था हिंदुस्तान की जमीन पर पैर (फोटो-ऑनलाइन)

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हम जब किसी घर में सालों तक रह ले तो अपनेपन का भाव आ ही जाता है। उस घर से इतना लगाव हो जाता है कि रेंट देने के बावजूद वह अपना सा लगता है उसकी साज-सज्जा भी हम अपने घर की तरह ही करते हैं। पर यह सबको नसीब नहीं होता कि जिस घर में वो सालों से रहें वो उसको अपना मान भी पाए। ऐसा ही कुछ हुआ 50 साल पहले पाकिस्तान से भारत आए गौरी शंकर मल्लिक के साथ।

पूर्वी पाकिस्तान से भारत आने वाले गौरी शंकर मल्लिक 21 साल के थे जब वे सांप्रदायिक दंगों से बचने के लिए भारत आ गए थे। वह भारत तब आए जब बांग्लादेश बनने का बस एक ही साल हुआ था। पिछले 50 सालों से सरकारी स्कूल में शिक्षक के तौर पर काम कर रहे और गोंदिया में सरकार द्वारा दी गई ज़मीन पर रह रहे मल्लिक के पास यह मानने का कोई कारण नहीं था कि वे भारतीय नागरिक नहीं हैं। साल 2019 में, जब उन्होंने पासपोर्ट के लिए आवेदन किया तो उन्हें झटका लगा और उनसे कहा गया कि उन्हें पहले भारतीय नागरिकता हासिल करनी होगी तभी उनका पासपोर्ट बन पाएगा।

75 साल के हो चुके हैं गौरी शंकर 

वे कहते हैं कि यह नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) 2019 पारित होने से कुछ महीने पहले की बात है। पहले असफल प्रयास के बाद, अब 75 वर्षीय मलिक को अंततः सीएए के तहत कानूनी रूप से भारतीय नागरिक बनने की उम्मीद है। पाकिस्तान के सिंध प्रांत के विदर्भ से 100 से अधिक हिंदू सीएए के तहत राष्ट्रीयता की मांग कर रहे हैं। मलिक की पहचान अब भारत की नागरिकता मांगने वाले एक अनोखे शख्स के रूप में हो रही है।

महाराष्ट्र के चंद्रपुर में रहते हैं गौरी शंकर

मल्लिक इन दिनों महाराष्ट्र के चंद्रपुर में रहते हैं। उन्होंने अपना ज़्यादातर जीवन गोंदिया में बिताया है, जहां उन्हें सरकार द्वारा अन्य प्रवासियों की तरह ज़मीन देने की पेशकश की गई थी। उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान से आए प्रवासियों के लिए बंगाली माध्यम के जिला परिषद स्कूल में शिक्षक की नौकरी की। साल 2019 में, मलिक ने अपने जन्म स्थान (बांग्लादेश के खुलना जिले के बयारबंगा गांव) जाने की योजना बनाई और भारतीय पासपोर्ट के लिए आवेदन किया। पासपोर्ट कार्यालय में, मलिक को बताया गया कि उसे पहले भारतीय नागरिक बनना होगा।

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