लैंगिक असमानता की बढ़ती खाई, ग्लोबल जेंडर गैप की रिपोर्ट में 140वें स्थान पर भारत
रिपोर्ट में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और अवसर में भी गिरावट दर्ज की गई है। इस क्षेत्र में लैंगिक भेद अनुपात तीन प्रतिशत और बढ़कर 32.6 प्रतिशत पर पहुंच गया है। इसमें कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा कमी राजनीतिक सशक्तीकरण क्षेत्र में आई है।
By Manish PandeyEdited By: Updated: Sat, 03 Apr 2021 10:46 AM (IST)
नई दिल्ली, नरपत दान चारण। वैश्विक आर्थिक मंच द्वारा जारी ताजा ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट-2021 में 156 देशों की सूची में भारत 140वें स्थान पर है। 2020 में भारत 153 देशों की सूची में 112वें स्थान पर था। इस ताजा रिपोर्ट में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और अवसर में भी गिरावट दर्ज की गई है। इस क्षेत्र में लैंगिक भेद अनुपात तीन प्रतिशत और बढ़कर 32.6 प्रतिशत पर पहुंच गया है। इसमें कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा कमी राजनीतिक सशक्तीकरण क्षेत्र में आई है। जहां महिला मंत्रियों की संख्या वर्ष 2019 में 23.1 प्रतिशत थी, वहीं 2021 में घट कर 9.1 प्रतिशत रह गई है।
महिला श्रम बल भागीदारी दर 24.8 प्रतिशत से गिर कर 22.3 प्रतिशत रह गई। इसके साथ ही पेशेवर और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका घटकर 29.2 प्रतिशत हो गई है। वरिष्ठ और प्रबंधक पदों पर महिलाओं की भागीदारी भी कम ही रही है। इन पदों पर केवल 14.6 प्रतिशत महिलाएं ही हैं। केवल 8.9 फीसद कंपनियां हैं जहां शीर्ष प्रबंधक पदों पर महिलाएं हैं। रिपोर्ट के अनुसार, यह अंतर महिलाओं के वेतन और शिक्षण दर में भी दिखाई देता है। कोरोना की वजह से भी असमानता में बढ़ोतरी हुई है। अगर समानता की प्रगति इसी तरह चलती रही तो महिला-पुरुषों में समानता आने में 135.6 साल लग जाएंगे, जो पिछले साल तक 99.5 साल थे। यानी साल भर में इस अंतर में 36 साल का इजाफा हुआ है।
बांग्लादेश इस सूची में 65वें, नेपाल 106वें, पाकिस्तान 153वें, अफगानिस्तान 156वें, श्रीलंका 116वें स्थान पर हैं। वहीं महिला पुरुष समानता मामले में आइसलैंड लगातार एक दशक से अधिक समय से पहले पायदान पर कायम है, जहां समानता का स्तर करीब 90 फीसद है। सबसे बड़ी बात यह है कि नामीबिया, रवांडा, लिथुआनिया जैसे देश भी इस मामले में शीर्ष 10 देशों में शामिल हैं। गौरतलब है कि ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट को तैयार करने में चार प्रमुख आयामों-आíथक भागीदारी तथा अवसर, शैक्षिक उपलब्धि, स्वास्थ्य तथा जीवन रक्षा और राजनीतिक सशक्तीकरण को लेकर लिंग आधारित अंतर की सीमा को माप जाता है और इसकी प्रगति को ट्रैक किया जाता है।
बहरहाल यह विचारणीय प्रश्न है कि आज हम विश्व स्तर पर सतत विकास में लैंगिक भेदभाव को दूर करने की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ लैंगिक भेदभाव की जड़ें सामाजिक और राजनीतिक कारणों से मजबूती पकड़ रही हैं। ऐसे में हमें सोचना होगा कि कैसे हम लैंगिक समानता की मंजिल तक पहुंचकर विश्व में सतत विकास का सपना पूरा कर पाएंगे? या फिर एकबार लैंगिक असमानता हमारे लिए एक बड़ी चुनौती साबित होगी। एक शांतिपूर्ण और सुंदर विश्व की कल्पना बिना लैंगिक समानता के नहीं की जा सकती। जब तक लैंगिक समानता नहीं होगी, तब तक हम विकास के पैमाने को पूरा नहीं कर सकते।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)