हजारों अहमदिया समुदाय के लोगों पर लटकी डिपोर्ट की तलवार, ये वापस नहीं जाना चाहते पाकिस्तान
जर्मनी में शरणार्थी के तौर पर रह रहे अहमदिया समुदाय के लोगों को डर है कि उन्हें सरकार कभी भी वापस पाकिस्तान भेज सकती है जबकि ये लोग किसी भी सूरत में वहां पर वापस नहीं जाना चाहते हैं।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Thu, 18 Mar 2021 02:52 PM (IST)
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। दुनिया के 200 से अधिक देशों में रह रहे अहमदी या कादियानी समुदाय के लोगों का मूल निवास भारत है। देश के बंटवारे के बाद कई पाकिस्तान चले गए, लेकिन पाकिस्तान ने इन्हें कभी नहीं अपनाया। ये खुद को मुस्लिम बताते हैं लेकिन पाकिस्तान इन्हें मुस्लिम नहीं मानता है। इतना ही नहीं पाकिस्तान ने इन्हें मुस्लिम कहने वाला हक भी कानूनी तौर पर छीन लिया है। पाकिस्तान में अहमदी गैर-मुस्लिम समुदाय में आते हैं। वहां पर इनकी हालत बेहद दयनीय है। कट्टरपंथियों के हाथों इन्हें तरह-तरह की जुल्म सहने पड़ते हैं। पाकिस्तान में इस समुदाय के लोगों अस-सलाम-वालेकुम कहने का भी हक हासिल नहीं है। ऐसा करना वहां पर ईश निंदा कानून के तहत अपराध है, जिसके लिए मौत की सजा तय है।
यही वजह है कि हजारों की संख्या में अहमदिया पाकिस्तान से बाहर चले गए और वहां पर उन्होंने शरण ले रखी हैं। ऐसे कई सारे देशों में से एक जर्मनी भी है जहां पर करीब 40 हजार अहमदी रह रहे हैं। लेकिन अब यहां पर रहने वाले इन लोगों को डिपोर्ट कर दोबारा पाकिस्तान भेजने की कवायद शुरू होने की आहट ने परेशान कर रखा है। जर्मनी में रहने वाले ऐसे कई लोग हैं जिनके पास में वहां पर रहने का परमिट नहीं है और कानूनी रूप से ये शरणार्थी हैं। ऐसे लोगों को जर्मनी में काम करने की भी इजाजत नहीं है। डॉयचे वेले के मुताबिक, ये लोग पाकिस्तान में दोयम दर्जे के नागरिक माने जाते हैं। शरणार्थी के तौर पर रहने वाले ये लोग किसी भी सूरत में पाकिस्तान वापस नहीं जाना चाहते हैं। इन्हें अपने बच्चों के भविष्य को लेकर भी चिंता सता रही है।
आपको बता दें कि अहमदी खुद को मुस्लिम जरूर मानते हैं लेकिन वो इस्लाम के पैगंबर के तौर पर मोहम्मद साहब को नहीं मानते हैं। यही वजह है कि पाकिस्तान इन्हें गैर मुस्लिम कहता है। वर्ष 1974 में पाकिस्तान की संसद ने एक कानून पास कर इन्हें गैर मुस्लिम घोषित किया और फिर एक दशक बाद नए कानून के साथ इन्हें अलग से मस्जिद बनाने से भी रोक दिया गया। इसी दौर में इस समुदाय के काफी लोगों ने देश छोड़कर जर्मनी का रुख किया था। हालांकि जर्मनी में इनका वजूद इससे काफी पहले से था। 20वीं सदी में पहली बार इस समुदाय के लोग यहां पर रहने के लिए आए थे। 1920 में इन्होंने यहां पर अपने धार्मिक स्थलों का निर्माण किया।
इस समुदाय की स्थापना मिर्जा गुलाम अहमद ने की थी। उनका जन्म पंजाब के कादियान में वर्ष 1835 में हुआ था। इन्हें ही ये अपना पैगंबार भी मानते हैं। आपको बता दें कि ये समुदाय ज्यादातर देशों में अल्पसंख्यक ही है। इनकी संख्या सबसे अधिक अफ्रीकी देशों में है। इसके बाद दक्षिण एशियाई और कैरेबियाई देशों में भी ये लोग रह रहे हैं। वर्ल्ड एटलसडॉटकॉम की मानें तो सबसे अधिक अहमदिया नाइजीरिया में रहते हैं। इसके बाद तंजानिया में और फिर भारत में इनकी संख्या सबसे अधिक है।
भारत में पहली बार वर्ष 1889 में अहमदिया मुस्लिम जमात (एएमजे) नाम से एक संस्था की स्थापना हुई थी। फिलहाल इसका हेडक्वार्टर लंदन में है। भारत में इस समुदाय के लोगों की संख्या करीब दस लाख तक है। अहमदिया मूवमेंट की बेवसाइट की मानें तो पूरी दुनिया में इस समुदाय के लोगों की संख्या करीब 10 करोड़ है। इसके बाद नाइजर और फिर घाना का आता है। छठे नंबर पर पाकिस्तान आता है।
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