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गोवा में 1867 से लागू है Uniform Civil Code, नहीं चलता शरीयत कानून; शादी को लेकर इस समुदाय को मिलता है फायदा

Uniform Civil Code in Goa गोवा में हिंदू मुस्लिम और ईसाई समुदाय के लोगों के लिए कानून एक है। हालांकि शादी और तलाक के मामले में हिंदू समुदाय के लोगों के लिए कानून भिन्न हैं। राज्य में ईसाई समुदाय के लोगों को दूसरे धर्म को मानने वाले लोगों की तुलना में शादी करने में थोड़ी आसानी होती है। आइए समझें की गोवा में यूनिफॉर्म सिविल कोड का इतिहास क्या है।

By Piyush KumarEdited By: Piyush KumarUpdated: Thu, 17 Aug 2023 02:30 PM (IST)
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गोवा में 1867 से ही यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है।(फोटो सोर्स: जागरण)
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिनों पहले यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) की वकालत की थी। उन्होंने कहा कि हमारे देश में आईपीसी एक है, सीआरपीसी एक है, एविडेंस एक्ट एक है तो देश के सभी नागरिकों के लिए एक तरह का कानून क्यों नहीं?

पीएम मोदी के इस बयान के बाद इस बात की अटकलें भी तेज हो गई थी कि जल्द ही देश के संसद में मोदी सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल का प्रस्ताव भी पेश कर सकती है। वहीं, देश के विपक्षी नेताओं सहित कई लोगों का मानना है कि यह कानून इस देश के लिए सही नहीं है।

गोवा सिविल कोड का क्या है इतिहास?

यूसीसी को लेकर देश में हो रहे जुबानी जंग के बीच आपको यह बता दें कि इस देश में एक ऐसा भी राज्य है, जहां 1867 से ही यूनिफॉर्म सिविल कोड (गोवा सिविल कोड) लागू है।

इतिहास के पन्नों पर जरा नजर डालें तो 1510 से पुर्तगालियों ने गोवा पर कब्जा करने की शुरुआत कर दी। इस राज्य में 451 सालों तक पुर्तगालियों का शासन रहा। इस दौरान पुर्तगाली शासन ने गोवा में कई कानूनों को लागू किए, जिनमें एक कानून, पुर्तगाल सिविल कोड (Portuguese Civil Code) भी है। इस कानून की रूपरेखा गोवा में नहीं, बल्कि पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन के अजूडा नेशनल पैलेस (Ajuda National Palace) में तैयार की गई थी।

पुर्तगाली चले गए, लेकिन कानून रह गया...

647 पन्नों में दर्ज पुर्तगाल सिविल कोड को बनाने की शुरुआत 1 जुलाई 1867 को हुई। इस कानून में सबसे पहले लिखा गया, "डोम लुइज बाई द ग्रेस ऑफ द गॉज एंड किंग ऑफ द पुर्तगाल", जिसका हिंदी में अर्थ है, ईश्वर की और पुर्तगाल के राजा की कृपा से...। प्रोटो के हाई कोर्ट के जज डॉ एनटोनियो लुइस जा सियाबरा ने नौ साल में इस कानून को तैयार किया। पुर्तगाल में बनाए गए इस कानून को राजशाही फैसले के बाद गोवा में लागू कर दिया गया।

19 दिसंबर, 1961 को गोवा के तत्कालीन पुर्तगाली गवर्नर वासलो डे सिल्वा ने भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और गोवा भारत का हिस्सा बन गया। हालांकि, गोवा में पुर्तगाली शासन तो खत्म हो गया, लेकिन, पुर्तगाली शासन के कानून खत्म नहीं हुए। राज्य में अभी भी पुर्तगाली शासन के समय से चला आ रहा पुर्तगाली सिविल कोड (गोवा सिविल कोड) लागू है।

आइए अब समझते हैं कि गोवा सिविल कोड है क्या?

इस कोड के तहत गोवा में शादी के बाद दंपती एक-दूसरे की संपत्ति के बराबर के अधिकारी हैं। तलाक की स्थिति आने पर आधी संपत्ति पर पत्नी का अधिकार होगा।

  • मां-बाप को अपनी आधी संपत्ति अपने बच्चों के साथ बांटना होगा, जिसमें बेटियां बराबर की हकदार होती हैं।
  • राज्य में कोई भी व्यक्ति एक से ज्यादा शादी नहीं कर सकते।
  • गोवा में इनकम टैक्स के नियम दूसरे राज्यों से अलग है। वहीं अगर पति-पत्नी, दोनों कमाते हैं तो दोनों की कमाई को जोड़कर यानी कुल कमाई पर टैक्स लगाया जाता है।
  • पति को अपने घर बेचने के लिए पत्नी की इजाजत लेनी पड़ती है।

हिंदू समुदाय को लेकर शादी के नियम

गोवा के नागरिक एक से ज्यादा शादी नहीं कर सकते, लेकिन अगर किसी हिंदू पुरुष की पत्नी बच्चे को जन्म नहीं दे पाती या 30 साल की उम्र तक वह बेटे को जन्म नहीं दे पाती, तो ऐसी स्थिति में हिंदू पुरुष दूसरी शादी कर सकता है। गौरतलब है कि यह नियम सिर्फ हिंदू समुदाय के लिए है।

हालांकि, गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा था कि यह प्रावधान अब अप्रासंगिक हो चुके हैं। 1910 से इसका फायदा किसी को नहीं दिया गया है।

शादी और तलाक से जुड़े कानून को लेकर क्या है विवाद?

गोवा सिविल कोड के मुताबिक, गोवा के लोगों को आधिकारिक तौर पर शादी करने के लिए 2 चरणों से गुजरना पड़ता है गुजरना पड़ता है। पहले चरण में मां-बाप की मौजूदगी में लड़का-लड़की की शादी होती है, जिसमें दूल्हा-दुल्हन को बर्थ सर्टिफिकेट, डोमिसाइल और रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता होती है। वहीं, दूसरे चरण में शादी का पंजीकरण होता है। पंजीकरण करने के लिए दूल्हा-दुल्हन के अलावा 2 गवाह का होना अनिवार्य है।

हालांकि, ईसाई समुदाय के लोगों के लिए शादी के कानून अलग हैं। राज्य में कैथोलिक धर्म के लोगों को सिर्फ रजिस्ट्रार के सामने पेश होना पड़ता है। दूसरे चरण के लिए चर्च में की गई शादी को मान्यता दी जाती है। गैर ईसाई धर्म के लोगों को तलाक के लिए सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है, लेकिन ईसाई धर्म में चर्च के सामने दिए गए तलाक को मान्यता दे दी जाती है।