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शादी करने के वादे से मुकर जाना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं, केरल HC का बड़ा फैसला

अदालत ने मृतका द्वारा लिखी गई डायरी की भी जांच की जिसमें उसने आरोपी के आचरण पर अपनी हताशा दिल टूटने और निराशा व्यक्त की थी लेकिन पाया कि वे आरोपी द्वारा उकसावे के विशिष्ट कृत्यों को नहीं बल्कि विश्वासघात की उसकी व्यक्तिगत भावनाओं को दर्शाती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि मृतका का आरोपी के कथित आचरण से दिल टूट गया था।

By Jagran News Edited By: Narender Sanwariya Updated: Wed, 30 Oct 2024 10:10 PM (IST)
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केरल उच्च न्यायालय ( File Photo )
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केरल उच्च न्यायालय ने माना है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के अर्थ में बिना किसी और चीज के शादी करने के वादे से मुकर जाना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जाएगा। न्यायालय ने आरोपी द्वारा दायर डिस्चार्ज आवेदन को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया।

मृतक की बहन ने दायर किया था मामला

न्यूज 18 की खबर के अनुसार, न्यायमूर्ति सीएस सुधा की एकल पीठ ने एक रिश्ते के टूटने के बाद आत्महत्या के लिए कथित रूप से उकसाने से संबंधित मामले की सुनवाई की थी। यह मामला मृतक महिला अंजू की बहन ने दायर किया था, जिसने कथित तौर पर सरकारी नौकरी मिलने के बाद आरोपी/याचिकाकर्ता बिजू कुमार के साथ अपने रिश्ते खराब होने के बाद आत्महत्या कर ली थी और कथित तौर पर मृतक महिला के परिवार से 101 सोने के सिक्के दहेज में मांगे थे।

अंजू से दूरी बनानी शुरू कर दी

मांग पूरी न कर पाने के कारण अंजू के परिवार को कुमार के साथ तनाव का सामना करना पड़ा, जिसने कथित तौर पर अंजू से दूरी बनानी शुरू कर दी। जब उसकी शादी किसी दूसरी महिला से तय हो गई, तो अंजू परेशान हो गई और बाद में 3 अक्टूबर 2013 को उसने आत्महत्या कर ली। उसकी मौत के बाद मृतक के परिवार ने बीजू पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया।

आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप

अप्राकृतिक मौत के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 174 के तहत एक प्रारंभिक रिपोर्ट दर्ज की गई थी। हालांकि, बाद में जांच ने कुमार को धारा 306 आईपीसी के तहत फंसाया, जिसमें अंजू की डायरी के आधार पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया, जिसमें कुमार के कारण विश्वासघात, क्रोध और दिल टूटने की भावनाएं व्यक्त की गई थीं।

इसे उकसाना नहीं कहा जा सकता

आईपीसी की धारा 107 की परिभाषा का विश्लेषण करते हुए अदालत ने कहा कि किसी कार्रवाई को उकसाने के लिए स्पष्ट रूप से उकसाना या जानबूझकर होनी चाहिए जो पीड़ित को अपनी जान लेने के लिए मजबूर करे। अदालत ने कहा कि बिना किसी इरादे के क्रोध या भावना में बोले गए शब्द को उकसाना नहीं कहा जा सकता है।

दिया दिल्ली कोर्ट का संदर्भ

न्यायालय ने चित्रेश कुमार चोपड़ा बनाम राज्य (दिल्ली सरकार) (2009) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का संदर्भ दिया, जिसमें कहा गया था कि आरोपी की ओर से आत्महत्या करने के लिए उकसाने के लिए जब तक ठोस सबूत न हो तब तक उसे दोषी नहीं कहा जा सकता।