आयातित कोयले वाले बिजली संयंत्रों की हो सख्त निगरानी, भारत सरकार का रिन्यूएबल ऊर्जा पर जोर
पावर ट्रेडिंग कॉरपोरेशन (पीटीसी) के सीएमडी राजीब कुमार मिश्रा का कहना है कि किसी न किसी स्तर पर आयातित कोयले पर आधारित ताप बिजली संयंत्रों की चौबीस घंटे निगरानी की व्यवस्था होनी चाहिए। उनका मानना यह भी है कि अगले कुछ वर्षों में देश में 30 से 35 हजार मेगावाट क्षमता के नए ताप बिजली संयंत्र स्थापित करने की जरूरत है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। साल 2021 में देश ने एक बड़ी बिजली समस्या का सामना किया था। इसकी प्रमुख वजह आयातित कोयला पर आधारित बिजली संयंत्रों में कम उत्पादन होना था। कम उत्पादन के लिए विदेशी बाजारों में कोयला महंगा होने की बात कही गई थी। यह समस्या आगे भी पैदा हो सकती है।
ताप बिजली संयंत्रों पर हो निगरानी: राजीब कुमार मिश्रा
इस बारे में पावर ट्रेडिंग कॉरपोरेशन (पीटीसी) के सीएमडी राजीब कुमार मिश्रा का कहना है कि किसी न किसी स्तर पर आयातित कोयले पर आधारित ताप बिजली संयंत्रों की चौबीस घंटे निगरानी की व्यवस्था होनी चाहिए। इन संयंत्रों की क्षमता ठीक ठाक है और जब भी देश में इतनी बड़ी मात्रा में बिजली आपूर्ति बाधित होगी तो इसका असर पूरे बिजली सेक्टर पर होगा।
दैनिक जागरण के साथ विशेष बातचीत में पीटीसी के सीएमडी बताते हैं कि रिन्यूएबल ऊर्जा पर जोर के बावजूद भारत के लिए ताप बिजली संयंत्रों का महत्व काफी लंबे समय तक बना रहेगा।
अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित हो नए संयंत्र: राजीब कुमार मिश्रा
उनका मानना है कि अगले कुछ वर्षों में देश में 30 से 35 हजार मेगावाट क्षमता के नए ताप बिजली संयंत्र स्थापित करने की जरूरत है। हां, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ये संयंत्र अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित हो ताकि पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो। ताप बिजली संयंत्रों की जरूरत वह इसलिए भी बताते हैं कि सौर ऊर्जा प्लांट एक निर्धारित अवधि (सुबह 09 बजे से शाम 04 बजे) तक ही पूरी तरह से काम करते हैं।
जबकि भारत में बिजली की मांग शाम 06 बजे से रात्रि 11 बजे तक सबसे ज्यादा रहती है। इस अवधि में बिजली की मांग ताप बिजली संयंत्र ही बखूबी पूरी तरह सकते हैं। नए संयंत्रों के सुझाव के साथ ही पीटीसी सीएमडी मानते हैं कि पुराने पड़ चुके ताप संयंत्रों को बंद कर देना चाहिए।
कोयला महंगा होने पर उत्पादन घटा देते हैं संयंत्र
आयातित कोयला से बिजली बनाने वाले संयंत्रों की क्षमता तकरीबन 18 हजार मेगावाट है। वैश्विक बाजार में कोयला जब महंगा होता है तो यह संयंत्र आयात कम कर देते हैं और बिजली उत्पादन घटा देते हैं।
मिश्रा का कहना है कि इसका कई तरह से विपरीत असर बिजली सेक्टर पर होता है। इससे पावर एक्सचेंज में बिजली की दरें बढ़ जाती हैं और राज्यों को महंगी बिजली खरीदनी पड़ती है जिससे उनकी वित्तीय सेहत पर असर होता है। कोयले की कीमत बढ़ने का खामियाजा दूसरे संयंत्रों को भी उठाना पड़ता है। इनकी निगरानी होने से यह पता चल जाएगा कि वह पर्याप्त कोयला खरीद रहे हैं या नहीं।
अभी 4.17 लाख मेगावाट बिजली का उत्पादन
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत की स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता अभी 4.17 लाख मेगावाट है। इसमें 2.05 लाख मेगावाट क्षमता कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की है जबकि 1.80 लाख मेगावाट क्षमता रिन्यूएबल (हाइड्रो, सौर, पवन, बायोगैस आदि) सेक्टर की है।
शेष गैस आधारित व कुछ दूसरे ऊर्जा स्त्रोतों पर आधारित हैं। सरकार का जोर अब रिन्यूएबल सेक्टर पर है। वर्ष 2030 तक रिन्यूएबल ऊर्जा उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर पांच लाख मेगावाट करने की तैयारी है।