ड्रैगन के प्रति अतिरिक्त सतर्कता, चीन सीमा तक पहुंच आसान बनाने में सक्रिय भारत सरकार; एक्सपर्ट व्यू
चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग का कार्यकाल फिर बढ़ गया है। यह भी आशंका जताई जा रही है कि उनका कार्यकाल जीवन भर के लिए हो सकता है लिहाजा चीन के प्रति अधिक सतर्क रहना होगा भारत को।
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Wed, 02 Nov 2022 12:40 PM (IST)
डा. लक्ष्मी शंकर यादव। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग को अगले पांच वर्षों के कार्यकाल के लिए तीसरी बार कम्युनिस्ट पार्टी आफ चाइना (सीपीसी) का महासचिव चुन लिया गया है। यह एक विशेष उपलब्धि है, क्योंकि शी चिनफिंग सीपीसी के संस्थापक माओत्से तुंग के बाद सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के ऐसे पहले नेता हैं जिन्हें राष्ट्रपति पद का लगातार तीसरा कार्यकाल प्राप्त हुआ है। उनकी इस सफलता के बाद यह आशंका भी जताई जा रही है कि चिनफिंग अब जीवन भर चीन की सत्ता पर काबिज रहेंगे। यह स्थिति भारत के लिए चिंतनीय बनी रहेगी, क्योंकि उनकी नीतियां भारत के लिए ठीक नहीं रही हैं। उनके ही कार्यकाल में मई 2020 से भारत चीन सीमा पर तनाव कायम है।
वर्ष 1962 की लड़ाई के छह दशक पूरे हो गए हैं। इस अवधि में चीन से लगने वाली सीमा पर सामरिक चुनौतियां बढ़ गई हैं। तिब्बत में उसके सैन्य तंत्र में बढ़ोतरी हुई है। इस इलाके में लड़ाकू विमानों और मिसाइलों के अड्डों की संख्या काफी बढ़ाई जा चुकी है। इन सभी अड्डों पर सेना की समस्त जरूरतों वाली लाजिस्टिक क्षमताएं स्थापित की जा चुकी हैं। चीन तिब्बत में दुनिया के सबसे ऊंचे स्थान पर हवाई अड्डे का निर्माण कर चुका है जो रणनीतिक दृष्टि से महत्वूपर्ण है।
सैनिक अभ्यास
देखा जाए तो वर्ष 1962 के युद्ध के बाद से दुनिया बहुत बदल चुकी है, परंतु चीन जिस तरह की कूटनीतिक चालें चलता है उससे भारत को अपनी सुरक्षा के लिए सतर्क रहना होगा। दूसरा आपसी संबंध बेहतर बनाने व विवादित मुद्दों को हल करने के लिए चीन कितना गंभीर है, इसे भी समझना होगा। इसलिए बीते 60 वर्षों के भारत-चीन संबंधों पर चिंतन-मनन करने की आवश्यकता है। वर्ष 1965 तक चीन के रुख में कोई बदलाव नहीं आया। उस वर्ष जब भारत ने पाकिस्तान को लड़ाई में शिकस्त दी तो चीन की समझ में आ गया कि भारत के साथ सीधी लड़ाई में फायदा नहीं होगा और संबंध सामान्य बनाने की प्रक्रिया शुरू की, परंतु 1967 में चीन ने नाथूला पोस्ट पर गोलीबारी करके अतिक्रमण करने का प्रयास किया जिसका मुंहतोड़ जवाब देने पर चीन को कड़ा संदेश मिला।
वर्ष 1971 में संबंध सुधारने के प्रयासों के तहत भारत ने संयुक्त राष्ट्र में चीन का समर्थन किया। जुलाई 1976 में दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध बहाल हुए। वर्ष 1992 में तत्कालीन रक्षा मंत्री शरद पवार और राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन द्वारा चीन की यात्राएं की गईं जिनमें सीमा विवाद पर वार्ता हुई। सितंबर 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहराव की चीन यात्रा हुई और सात सितंबर को दोनों देशों के बीच सीमा विवाद हल होने तक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति बनाए रखे जाने, एक दूसरे के साथ बल प्रयोग नहीं करने, अपने-अपने सैनिक अभ्यासों की पूर्व सूचना देने, वायु सीमा का उल्लंघन न करने, पर्यावरण संरक्षण तथा रेडियो व टीवी के मुद्दों पर समझौता हुआ।