सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के बराबर होगा CEC और EC का भी दर्जा, राज्यसभा से हुआ पारित
मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति और सेवा शर्तों से जुड़ा विधेयक राज्यसभा से नए बदलावों के साथ पारित हो गया है। इससे पहले विधेयक में इनके पद को कैबिनेट सचिव के समकक्ष रखा गया था जिसका विपक्षी पार्टियों सहित पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने भी विरोध किया था। इसके बाद राज्यसभा में सरकार की ओर से संशोधित विधेयक पेश किया गया।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति और सेवा शर्तों से जुड़ा विधेयक मंगलवार को नए बदलावों के साथ राज्यसभा से पारित हो गया है। जिसके तहत सीईसी व ईसी का दर्जा अब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के बराबर होगा।
इससे पहले विधेयक में इनके पद को कैबिनेट सचिव के समकक्ष रखा गया था, जिसका विपक्षी पार्टियों सहित पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने भी विरोध किया था। इसके बाद राज्यसभा में सरकार की ओर से संशोधित विधेयक पेश किया गया। बावजूद इसके विपक्षी दलों ने इनकी नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल खड़ा किया और विधेयक पारित होने के दौरान सदन से वाकआउट किया।
70 सालों से कोई व्यवस्था नहीं
इससे पहले केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा में मुख्य चुनाव आयुक्तों और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति और सेवा शर्तों से जुड़ा विधेयक नए स्वरूप में सदन के पटल पर पारित होने के लिए रखा। साथ बताया कि देश में पिछले 70 सालों से मुख्य चुनाव आयुक्तों और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की कोई व्यवस्था नहीं थी। प्रधानमंत्री इसे लेकर फैसला करते थे।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय करेगी कमेटी
सुप्रीम कोर्ट द्वारा इससे जुड़ी एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकार से इसे लेकर कानून बनाने की सुझाव दिया था। इसके बाद यह विधेयक लाया गया है। इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय कमेटी करेगी। जिसमें प्रधानमंत्री के अतिरिक्त लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता व प्रधानमंत्री की ओर से नामित कोई भी एक केंद्रीय मंत्री शामिल होगा।
मुख्य चुनाव आयुक्त व चुनाव आयुक्तों के चयन के लिए इससे पहले एक सर्च कमेटी भी गठित होगी, जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय कानून मंत्री करेंगे। जो इस पद के उपयुक्त नामों को चयन करने चयन कमेटी के सामने प्रस्तावित करेंगे। इससे पहले राज्यसभा में विधेयक को लेकर लंबी चर्चा हुई। विपक्षी दलों ने यहां इसे लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करने वाला कदम बताया, वहीं सत्ता पक्ष ने पिछले 70 सालों से बगैर किसी कानून से हो रही इस नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने वाला कदम बताया।
विधेयक पर चर्चा रणदीप सिंह सुरजेवाला ने की
राज्यसभा में विधेयक पर चर्चा की शुरूआत कांग्रेस सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला ने की। उन्होंने कहा कि निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चार शब्द चुनाव आयोग के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। निष्पक्षता, निर्भीकता, स्वायत्तता और सुचिता। लेकिन सरकार जो कानून लेकर आयी है, वह इन चारों शब्द को बुलडोजर की तरह रौंद दे रहे है। इस दौरान इस पद के सिर्फ वर्किंग सचिव और रिटायर्ड सचिव को ही पात्र किए जाने पर भी सवाल खड़े किया और कहा कि ये ऐसे लोग है जिन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा। ऐसे में वह नियुक्ति के बाद सिर्फ चुनाव मैनेजमेंट ही देखेंगे। उन्होंने सरकार पर चुनाव आयोग को जेबी चुनाव आयोग बनाने का आरोप लगाया।
इस दौरान भाजपा सांसद घनश्याम तिवाड़ी ने कहा कि जो लोग चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर सवाल खड़े कर रहे है, वह शायद यह भूल गए है कि कांग्रेस ने नवीन चावला को कैसे नियुक्ति दी थी। उन्होंने आज यदि लोकतंत्र के सामने कोई चुनौती है तो वह परिवारवाद है। वहीं आप सांसद राघव चड्ढा ने सरकार की ओर से लाए गए विधेयक को असंवैधानिक बताया और कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मूल भावना के खिलाफ है।
विधेयक पर चर्चा के लिए कौन-कौन रहा शामिल
कोर्ट ने सीईसी व ईसी के चयन के लिए जो तीन सदस्यीय कमेटी गठित की थी, उनमें प्रधानमंत्री के साथ मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष दल के नेता शामिल थे। जबकि सरकार ने जो विधेयक लाया है, उसमें मुख्य न्यायाधीश को बाहर कर दिया है। विधेयक पर चर्चा पर टीएमसी के जवाहर सरकार, सपा के रामगोपाल यादव आदि ने हिस्सा लिया।
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