दूरसंचार कंपनियों-ओटीटी का विवाद सुलझाने के लिए सक्रिय हुई सरकार, 6G आवंटन से पहले हो जाएगा अंतिम फैसला
मोटे तौर पर देश की दूरसंचार कंपनियों ने पिछले दो वर्षों में देश में 5जी सेवाओं के लिए आवश्यक इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में 1.50 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश किया है लेकिन इस नेटवर्क का फायदा उन्हें नहीं मिल रहा है। सीओएआइ के महानिदेशक ले. जनरल डा. एसपी कोचर का कहना है कि अभी जो हो रहा है वह प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है।
By Jagran NewsEdited By: Anurag GuptaUpdated: Sun, 17 Sep 2023 08:20 PM (IST)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। मोटे तौर पर देश की दूरसंचार कंपनियों ने पिछले दो वर्षों में देश में 5जी सेवाओं के लिए आवश्यक इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में 1.50 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश किया है, लेकिन इस नेटवर्क का फायदा उन्हें नहीं मिल रहा है। आम जनता को अब धीरे-धीरे 5जी सेवाएं मिलने लगी हैं, लेकिन सबसे ज्यादा फायदा ओटीटी (इंटरनेट पर सेवाएं वाली कंपनियां) उठा रही हैं।
यह भी पढ़ें: Jio ने TRAI को लिखा पत्र, सैटेलाइट और मोबाइल सर्विस के लिए स्पेक्ट्रम के लचीला उपयोग के लिए मांगी अनुमति
संचार मंत्रालय ने लिया संज्ञान
दूरसंचार कंपनियों के बनाए नेटवर्क पर नेटफ्लिक्स और दूसरी कंपनियां ना सिर्फ आम ग्राहकों से सब्सक्रिप्शन के तौर पर कमाई कर रही हैं, बल्कि विज्ञापनदाताओं से भी उन्हें बड़ी कमाई हो रही है।वहीं, दूरसंचार कंपनियों को इसका अमूमन कोई हिस्सा नहीं मिलता है और कुछ मामलों में मिलता है तो वह बहुत ही कम होता है। इस बारे में दूरसंचार कंपनियों की तरफ से बार-बार आग्रह आने के बाद केंद्र सरकार ने मामले का संज्ञान लिया है।
संचार मंत्रालय की तरफ से इस बारे में जल्द ही आगे के रोडमैप पर फैसला होना संभव है। कोशिश यह है कि अगले वर्ष जब 6जी स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया शुरू हो, उसके पहले सभी संबंधित पक्षों को लेकर किसी सहमति पर पहुंचा जाए।
हो सकता है समिति का गठन
संचार मंत्रालय के उच्चपदस्थ सूत्रों का कहना है कि यह समस्या प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल में तेजी से बदलाव होने की वजह से सामने आई है। ओटीटी में दूरसंचार कंपनियों के नेटवर्क के इस्तेमाल का मामला केंद्र सरकार के पास भी आया है और पूर्व में दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने भी इस पर विचार किया है।
असलियत में दुनिया के कई देशों में इस बारे में विचार किया जा रहा है, क्योंकि इस तरह की स्थिति के बारे में पूर्व में किसी ने विचार नहीं किया था। कुछ देशों में बीच का रास्ता निकाला जा रहा है कि ओटीटी के राजस्व का एक हिस्सा उस कंपनी को मिले, जिसके नेटवर्क या बैंड-विड्थ का इस्तेमाल हो रहा है। अगर संभव होगा तो समिति का गठन भी हो सकता है। हालांकि, सरकार नहीं चाहती कि यह मामला ज्यादा लंबा खिचे। खास तौर पर तब जब दूरसंचार कंपनियों की तरफ से लगातार नए निवेश किए जाने हैं।
यह भी पढ़ें: Jio यूजर्स के लिए बुरी खबर, अब नहीं मिलेगा ये सस्ता रिचार्ज, मोमोज से भी कम कीमत में मिलता था 14 दिनों का डेटा
मौजूदा व्यवस्था प्राकृतिक न्याय के खिलाफ
दूरसंचार कंपनियों के संगठन सेल्यूलर आपरेटर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (COAI) के महानिदेशक ले. जनरल डा. एसपी कोचर का कहना है,उनका कहना है कि हम यह स्पष्ट कर दें कि दूरसंचार कंपनियों की मंशा स्टार्टअप या छोटे ओटीटी के राजस्व में सेंध लगाने की नहीं है, लेकिन कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां हमारे नेटवर्क से ज्यादा कमाई कर रही हैं, उनके लिए कोई व्यवस्था होनी चाहिए। आखिकार इन कंपनियों की तरफ से हमारे नेटवर्क का इस्तेमाल होने से हमें इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ज्यादा खर्च करना पड़ता है। इसलिए इस व्यय एक हिस्से का बोझ इन कंपनियों पर डालना चाहिए।अभी जो हो रहा है वह प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है। ग्राहकों को बेहतर सेवा मिल सके, इसके लिए एक तफर जहां दूरसंचार कंपनियां भारी-भरकम निवेश कर रही हैं। वहीं, हमारे नेटवर्क का एकदम फ्री इस्तेमाल ओटीटी कर रही हैं।