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सुप्रीम कोर्ट ने पलटा बंबई हाई कोर्ट का फैसला, कहा- सरकार जनकार्य के लिए जमीन का कुछ हिस्सा मांग सकती है मुफ्त

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सरकार ने एक ऐसी स्थिति खड़ी की है कि भूमि मालिक को जन उपयोग के लिए अपनी जमीन का कुछ हिस्सा मुफ्त में देना चाहिए। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एसवीएन भाटी की खंडपीठ ने अपने 22 सितंबर के फैसले में कहा कि इसीलिए हमने अपील को स्वीकारते हुए 4 जुलाई 2019 के साझा फैसले को दरकिनार कर दिया।

By AgencyEdited By: Anurag GuptaUpdated: Thu, 28 Sep 2023 09:04 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने पलटा बंबई हाई कोर्ट का फैसला
नई दिल्ली, एएनआइ। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सरकार ने एक ऐसी स्थिति खड़ी की है कि भूमि मालिक को जन उपयोग के लिए अपनी जमीन का कुछ हिस्सा मुफ्त में देना चाहिए। ताकि उसके बदले में जमीन के उपयोग की बदली गई प्रकृति को अवैध नहीं घोषित किया जाए।

सर्वोच्च अदालत ने बांबे हाई कोर्ट के आदेश को दरकिनार करके कहा कि नारायणराव जगोबाजी गोवांडे पब्लिक ट्रस्ट बनाम महाराष्ट्र सरकार व सात अन्य के मामले में यह तय किया गया था कि अगर सरकार भूमि के विकास के लाभ के लिए उसके एक हिस्से को विभाजित करके भू मालिक से उसका एक छोटा हिस्सा मुफ्त में मांगती है तो ऐसे किसी नियम को अवैध नहीं कहा जा सकता है।

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सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ का कहना है कि वह इस मामले में रिट याचिका पर हाई कोर्ट के फैसले को गलत मानती है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एसवीएन भाटी की खंडपीठ ने अपने 22 सितंबर के फैसले में कहा कि इसीलिए हमने अपील को स्वीकारते हुए 4 जुलाई, 2019 के साझा फैसले को दरकिनार कर दिया। इन दोनों ही मामलों में अपीलकर्ता शिरडी नगर पंचायत ही थी।

क्या है पूरा मामला?

उल्लेखनीय है कि 15 दिसंबर, 1992 को नगरपालिका ने एक विकास कार्ययोजना को मंजूरी दी। इसके जरिये 30 सितंबर, 2000 को एक प्रस्ताव के जरिये जमीन के उपयोग की प्रकृति को नो डेवलेपमेंट जोन से बदलकर आवासीय जोन में बदल दिया।

18 अगस्त, 2004 को सरकार ने कुछ जमीनों के उपयोग की प्रकृति बदले जाने के एवज में दस प्रतिशत खुले स्थान को निशुल्क नगरपालिका को वापस देने का निर्देश दिया। भू मालिकों ने प्लाट के विकास के लिए नगर योजना प्राधिकरण से अनुमति मांगी तो उसे सशर्त मंजूर कर दिया गया।

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इस संबंध में 27 मार्च, 2006 को भू मालिकों ने नगर पालिका के साथ एक समझौता भी किया। इसके अनुसार कुल भूमि का कुछ हिस्सा खुला स्थान छोड़ा जाए जिसे बाद में नगरपालिका को वापस कर दिया जाए, लेकिन 2012 में जब नगरपालिका ने वह जमीन वापस मांगी तो भू मालिको ने एक दीवानी केस कर दिया।