लाभ के पद से जुड़ी सांसदों की अयोग्यता पर 65 साल पुराना कानून होगा खत्म, नया अधिनियम बनाएगी केंद्र सरकार
केंद्र की मोदी सरकार 65 साल पुराना कानून निरस्त करने की तैयारी में है। यह कानून लाभ के पद पर रहने के कारण सांसदों को अयोग्य ठहराने का आधार बनता है। मगर वर्तमान जरूरतों के लिहाज से सरकार एक नया कानून इसकी जगह पर लाने की तैयारी में है। मोदी सरकार संसद (अयोग्यता निवारण) विधेयक 2024 का मसौदा पेश करेगी।
पीटीआई, नई दिल्ली। सरकार 65 वर्ष पुराने उस कानून को खत्म करने की योजना बना रही है, जो लाभ का पद धारण करने की वजह से सांसदों को सदन की सदस्यता के अयोग्य बनाता है। उसकी जगह सरकार एक नया कानून लाने की योजना बना रही है जो वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप होगा। केंद्रीय कानून मंत्रालय के विधि विभाग ने 16वीं लोकसभा में कलराज मिश्रा की अध्यक्षता वाली लाभ के पद पर संयुक्त समिति की सिफारिशों के अनुसार 'संसद (अयोग्यता की रोकथाम) विधेयक, 2024' का मसौदा पेश किया है।
प्रस्तावित विधेयक में वर्तमान 'संसद (अयोग्यता की रोकथाम) विधेयक, 1959' की धारा-तीन को युक्तिसंगत बनाने और अनुसूची में दिए गए ऐस पदों की नकारात्मक सूची को खत्म करने का प्रविधान है जिसके धारक सदस्यता के अयोग्य हो जाएंगे। इसमें मौजूदा कानून और कुछ अन्य कानूनों के बीच टकराव को दूर करने का भी प्रस्ताव है, जिनमें अयोग्यता नहीं होने का स्पष्ट प्रविधान हैं।
धारा चार को हटाने का प्रस्ताव
मसौदा विधेयक में कुछ मामलों में अयोग्यता के ''अस्थायी निलंबन'' से संबंधित मौजूदा कानून की धारा-चार को हटाने का भी प्रस्ताव है। इसके स्थान पर केंद्र सरकार को अधिसूचना जारी करके अनुसूची में संशोधन करने का अधिकार दिया गया है। मसौदा विधेयक पर जनता की राय मांगते हुए विभाग ने याद दिलाया कि 'संसद (अयोग्यता की रोकथाम) अधिनियम, 1959' यह घोषणा करने के लिए बनाया गया था कि सरकार में लाभ के कुछ पद धारण करने वाले संसद की सदस्यता के अयोग्य नहीं होंगे। हालांकि, अधिनियम में उन पदों की सूची शामिल है, जिनके धारक अयोग्य नहीं ठहराए जाएंगे और उन पदों का भी जिक्र है, जिनके धारक अयोग्य करार दिए जाएंगे।समिति ने पेश की थी रिपोर्ट
संसद ने समय-समय पर इस अधिनियम में संशोधन किए हैं। 16वीं लोकसभा के दौरान की संयुक्त संसदीय समिति ने इस कानून की व्यापक समीक्षा करने के बाद एक रिपोर्ट पेश की। समिति ने विधि मंत्रालय के वर्तमान कानून की अप्रचलित प्रविष्टियों को ध्यान में रखने की आवश्यकता पर बल दिया। इसकी एक प्रमुख सिफारिश यह थी कि 'लाभ के पद' शब्द को व्यापक तरीके से परिभाषित किया जाए।