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गुजरात फर्जी मुठभेड़: याचिकाकर्ताओं को "चयनात्मक सार्वजनिक हित" के कारण बताने होंगे, सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की दलील

राज्य की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि अन्य राज्यों में भी मुठभेड़ हुई हैं। उन्होंने पीठ से कहा वे कहते हैं कि हम गुजरात में एक विशेष अवधि के दौरान कुछ मुठभेड़ों की जांच चाहते हैं। यह चयनात्मक जनहित क्यों है? उन्हें इसका जवाब देना होगा। मेहता ने कहा याचिकाकर्ताओं को अपने चुनिंदा सार्वजनिक हित के बारे में अदालत को संतुष्ट करना होगा।

By Jagran News Edited By: Siddharth ChaurasiyaUpdated: Thu, 18 Jan 2024 04:27 PM (IST)
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गुजरात सरकार ने पहले याचिकाकर्ताओं के अधिकार क्षेत्र के बारे में आपत्ति जताई थी।
पीटीआई, नई दिल्ली। गुजरात सरकार ने गुरुवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि राज्य में 2002 से 2006 तक हुई कथित फर्जी मुठभेड़ों की जांच की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं को अपने "चयनात्मक सार्वजनिक हित" के कारण बताने की जरूरत है।

न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ 2007 में वरिष्ठ पत्रकार बीजी वर्गीज और प्रसिद्ध गीतकार जावेद अख्तर और शबनम हाशमी द्वारा दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कथित फर्जी मुठभेड़ों की जांच की मांग की गई थी। वर्गीस की 2014 में मृत्यु हो गई।

राज्य की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि अन्य राज्यों में भी मुठभेड़ हुई हैं। उन्होंने पीठ से कहा, "वे (याचिकाकर्ता) कहते हैं कि हम गुजरात राज्य में एक विशेष अवधि के दौरान कुछ मुठभेड़ों की जांच चाहते हैं। यह चयनात्मक जनहित क्यों है? उन्हें इसका जवाब देना होगा।"

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मेहता ने कहा, "याचिकाकर्ताओं को अपने चुनिंदा सार्वजनिक हित के बारे में अदालत को संतुष्ट करना होगा।" शीर्ष अदालत ने पहले शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एचएस बेदी की अध्यक्षता में एक निगरानी प्राधिकरण नियुक्त किया था जिसने 2002 से 2006 तक गुजरात में 17 कथित फर्जी मुठभेड़ मामलों की जांच की थी।

समिति ने जांच किए गए 17 मामलों में से तीन में पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की सिफारिश की थी, जिसने 2019 में सीलबंद कवर में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। शीर्ष अदालत में दायर अपनी अंतिम रिपोर्ट में समिति ने कहा था कि प्रथम दृष्टया तीन लोगों को गुजरात पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ों में मार डाला।

गुरुवार को सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि कमेटी की रिपोर्ट पहले ही कोर्ट के सामने आ चुकी है। उन्होंने कहा, "जो कुछ करने की जरूरत है वह उन लोगों पर मुकदमा चलाना है जिनकी रिपोर्ट में पहचान की गई है।" उन्होंने कहा कि पैनल तीन मामलों में प्रथम दृष्टया निष्कर्ष पर पहुंचा है।

पीठ ने कहा कि मामले की सुनवाई जरूरी है। कोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाई दो सप्ताह बाद तय की है। गुजरात सरकार ने पहले याचिकाकर्ताओं के अधिकार क्षेत्र के बारे में आपत्ति जताई थी। शीर्ष अदालत में दायर अपनी अंतिम रिपोर्ट में न्यायमूर्ति बेदी समिति ने कहा था कि तीन लोग - समीर खान, कासम जाफ़र और हाजी इस्माइल - प्रथम दृष्टया पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ों में मारे गए थे।

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इसमें तीन इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारियों सहित कुल नौ पुलिस अधिकारियों को दोषी ठहराया गया था। हालांकि, इसने किसी भी आईपीएस अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने की सिफारिश नहीं की। 9 जनवरी, 2019 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने समिति की अंतिम रिपोर्ट की गोपनीयता बनाए रखने की गुजरात सरकार की याचिका खारिज कर दी थी और आदेश दिया था कि इसे याचिकाकर्ताओं को दिया जाए।

पैनल ने 14 अन्य मामलों को भी निपटाया था जो मिठू उमर डाफर, अनिल बिपिन मिश्रा, महेश, राजेश्वर, कश्यप हरपालसिंह ढाका, सलीम गगजी मियाना, जाला पोपट देवीपूजक, रफीक्षा, भीमा मांडा मेर, जोगिंद्रसिंह खटानसिंग की कथित फर्जी मुठभेड़ हत्याओं से संबंधित थे।