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Hartalika Teej 2020: ऋतु-उत्सव की समग्रता के साथ अविरल प्रेम का प्रतीक, ऐसे समझें महत्व

Hartalika Teej 2020 प्रेम शृंगार शिवभक्ति लोकगीत गीतात्मकता रस की फुहार से जुड़ी है हरितालिका तीज जो भारतीय मन को मुग्ध कर देती है। हरितालिका तीज पर विशेष...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 21 Aug 2020 09:56 AM (IST)
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Hartalika Teej 2020: ऋतु-उत्सव की समग्रता के साथ अविरल प्रेम का प्रतीक, ऐसे समझें महत्व
परिचय दास। हरतालिका तीज वस्तुत: तपस्या का छंद है, जिससे संस्कृति की कविता गुंथी हुई है। एक तरह की ध्यानमग्नता। इसका अमृत फल है - संबंधों का संचयन। राग भरे संबंधों की प्राप्ति का संवेदनशील शिल्प। इसमें निर्जला होने का अर्थ है एक ऐसी उपासना, जिसमें स्वयं में ही तरलता खोज ली जाए। साधना के पश्चात सघन ऐंद्रिकता व सौभाग्य के समग्र प्रतीकों, यथा-हरी चूड़ियां, हरे कपड़े, लाल कपड़े, काजल, सिंदूर, सुनहरी बिंदी से शृंगार।

हरितालिका तीज ऋतु-उत्सव की समग्रता है। हरियाली धरती, अलंकृत पृथ्वी, अस्तिवाचकता और अपने प्रिय की आंखों का काजल बन जाना। स्त्री-पुरुष के बीच की सघन रंजकता। ऐंद्रिकता में अतींद्रियता। अमोघ, अटूट व अविरल प्रेम अर्थात एक ऐसी पारस्परिक समझ, जो जीवन-साथी के व्यक्तित्व से सुगंधित है।

‘पार्वती कवन गुन कइलू कि भोला के पवलू।’ (पार्वती तुमने कौन-सी तपस्या की कि भोला को पा लिया?) पार्वती ने प्रेम तो किया ही था शिव से। प्रेम की भाषा किसे आकुल नहीं करती? आंखों से अधिक मौन की अपलक भाषा। एक सपना था पार्वती के मन में। शिव के प्रति अनुराग से मानो पृथ्वी पर एक उजाला-सा छा गया। जीवन की अनुरागिनी स्वप्नशीलता झरने के रूप में उतर आई पर्वत शृंखलाओं से। पार्वती इसीलिए तो कहते हैं उनको! यही आंतरिकता, यही स्मृति, यही हार्दिकता इस पर्व की लय है। यदि प्रेम न हो तो व्यक्ति कितना एकाकी है। पूर्ण निविड़ भाव के बिना कोई प्रेमयुति नहीं, चाहे लोक हो या लोकोत्तर जीवन।

हरितालिका तीज एक बार आरंभ करते हैं तो वह आजीवन व्रत बन जाती है। जीवन भर का संकल्प। एक आलोकमाला का प्रपात। अगणित आशा, अनुभूति व आकांक्षा की सघन रूप-आकृति। भादों की धूप में चमकता प्रेम। इसकी मांगलिकता के कितने मंगल रूप हैं, यह देखिए-केले का पत्ता, गीली काली मिट्टी, अक्षत, मौली, बेलपत्र, फूल, रोली, दीपक, पान के पत्तों का गुच्छा, कलश-दीप, कपूर, कुमकुम, पंचामृत आदि। इसे पूजा के ही नहीं, प्रेम के संधि-लग्न के रूप में ग्रहण कर सकते हैं। ये प्रकारांतर से अनुराग के ‘प्रसन्न बिंब’ हैं, केवल सामग्री नहीं। हरितालिका भादों का मन दर्शाती है।

अपने प्रिय के लिए अघ्र्य, जहां साथी का अर्थ ही है: साहचर्य में प्रेम और प्रेम में साहचर्य। यही प्रेम का साहचर्य आंखों के कज्जल (कज्जल से काजल, काजल से कजरी) से कजरी सृजित कर देता है। संयोग और वियोग दोनों भावों में। यही पृथ्वी का क्षेत्र हरियाला बना देता है। यदि पृथ्वी हरी भरी है तो इसलिए भी कि हमारे अंतस में हरापन है। कजरी अधिकतर अपने प्रियतम के लिए सांयोगिक और मायके की लालसा के वर्णन के लिए गाई जाती है। आकाश के मेघदूत विविध वर्णों में छाए होते हैं, अपनी पूरी स्नेहशीलता के साथ बरसने को, उसमें कजरी की लहरियां निकलती हैं। हरितालिका का सघन भाव शिव और पार्वती के प्रति प्रेम व समादर के साथ। इस तीज पर पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़ में अलग ही रंग खिल जाता है! स्थानिकता के उपभेद से हरियाली, हरितालिका, कजरी तीज होती हैं। तीनों मिलकर एक वृत्त बनाती हैं। कजरी न हो, तो तीज का महत्व न हो, हरितालिका तीज का भी।

उत्तर प्रदेश के मीरजापुर में कजरी का केंद्र होने का एक कारण वहां माता विंध्यवासिनी देवी की उपस्थिति है। कजरी शक्ति, उपासना, शृंगार, अलंकार, वियोग आदि को कनेर के फूल की माला की तरह एक में पिरो देती है। भोजपुरी में कजरी गाई नहीं, खेली जाती है। एक क्रीड़ा भाव मन का। ‘कैसे खेले जइबू सावन में कजरिया, बदरिया घिर आई ननदी।’ हरितालिका तीज भी क्रीड़ा भाव ही है जीवन की विविधताओं का। पार्वती व शिव के मिलन का। मिलन हो और वर्षा की फुहार न हो, यह कैसे संभव है? वर्षा के रिमझिम महाराग में परिचय और अपरिचय सभी घुल जाते हैं। फिर यह तो विस्तार ले लेता है ननद-भौजाई, सास-बहू, राधा-कृष्ण, पार्वती-शंकर, सीता-राम, और प्रिय-प्रियतमा की प्रेम भरी बातों और नोकझोंक में। इन सब से हरितालिका तीज का महत्व शास्त्र से उतरकर लोक में प्रवेश कर जाता है।

सौभाग्य की वस्तुएं हरितालिका तीज के ‘पारण’ के बाद सप्रेम दी जाती हैं किसी स्त्री को या मंदिर में। यह प्रेम भाद्रपद के आसमान को उजाले से भर देता है। इस पर्व पर झूले रस की फुहार के साक्षी होते हैं। पेड़ों की डालों पर डाले गए झूलों में केवल देह नहीं झूलती, मन झूलता है। बगीचों, मंदिरों, खलिहानों में पेड़ों पर डाले गए झूले तीज को अलौकिक आभा देते हैं। हरितालिका तीज प्रेम, भाव, शृंगार, लगाव, लोकगीत, गीतात्मकता, रस की फुहार से जुड़ी है, जो भारतीय मन को मुग्ध कर देती है।

(ललित निबंधकार व संस्कृतिकर्मी)