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हरियाणा के 'दशरथ मांझी' ने एक कुएं को दिया जीवनदान, 30 साल में कर दिया परदादा की विरासत का कायाकल्प

पुरखों द्वारा बनवाए गए कुएं को जर्जर हाल में देख तिलकराज ने 20 वर्ष की आयु में इसके सुधार का संकल्प लिया। पाई-पाई जोड़ी चंदा मांगा और अब 50 साल की उम्र में कुएं की तस्वीर ऐसी बदली कि देखने के लिए आसपास के गांवों से लोग आने लगे हैं।

By Sanjeev TiwariEdited By: Updated: Fri, 27 Aug 2021 07:19 PM (IST)
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पुरखों द्वारा बनवाए गए कुएं को जर्जर देख तिलकराज ने किया मरम्मत (फोटो जागरण)
सुनील मान, नारनौंद। बिहार में गया जिले के गांव गहलौर के दशरथ मांझी तो आपको याद ही होंगे। जिन्होंने 22 साल तक छेनी और हथौड़ा चलाया और पहाड़ों का सीना चीरकर 360 फीट लंबी सड़क बनाई। ऐसी ही जिद और संघर्ष की कहानी लिखी है हरियाणा के हिसार जिले के नारनौंद कस्बे के गांव मिलकपुर के रहने वाले तिलकराज उर्फ पप्पू सुनार ने। पुरखों द्वारा बनवाए गए कुएं को जर्जर हाल में देख तिलकराज ने 20 वर्ष की आयु में इसके सुधार का संकल्प लिया। पाई-पाई जोड़ी, चंदा मांगा और अब 50 साल की उम्र में कुएं की तस्वीर ऐसी बदली कि देखने के लिए आसपास के गांवों से भी लोग आने लगे हैं।

150 साल पुराना है कुआं

तिलकराज के परदादा मोनूराम ने तकरीबन 150 वर्ष पहले गांव में एक कुएं का निर्माण कराया था। वक्त के साथ और देखरेख के अभाव में कुआं जर्जर होता गया। जब तिलकराज 20 वर्ष के हुए तो पुरखों की धरोहर को बदहाल देख इसके सुधार का प्रण ले लिया। सुधार की राह आसान नहीं थी, क्योंकि वह खुद बेरोजगार थे। हालांकि उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। पहले परिवार व रिश्तेदारों से मदद हासिल की और खुद ही मरम्मत का काम शुरू कर दिया, मगर यह काफी नहीं था।

आटो की कमाई, कुएं में लगाई

तिलकराज ने पढ़ाई पूरी कर नौकरी की तलाश शुरू की। नौकरी नहीं मिली तो घर चलाने और कुएं की मरम्मत के लिए पैसा जुटाने के लिए आटो चलाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे आटो से होने वाली कमाई का कुछ हिस्सा सहेजकर रखा और उसी से कुएं की मरम्मत का काम चलता रहा। तकरीबन 10 साल उन्होंने इसी प्रकार से कुएं की मरम्मत कराई।

अब भी जुनून नहीं हुआ कम

तिलकराज की उम्र अब 50 वर्ष की है और वह जींद शहर में जेवर बनाने के कारीगर हैैं। पुरखों की धरोहर के प्रति उनके प्रेम का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह हर वर्ष खुद अपने हाथों से कुएं की साफ सफाई के साथ-साथ रंग रोगन का काम भी करते हैैं।

स्वजन ने गांव छोड़ा, तिलकराज का नहीं छूटा मोह

तिलकराज बताते हैं कि वक्त के साथ रोजी रोटी की तलाश में परिवार के तमाम लोग दूसरे शहरों, राज्यों यहां तक कि विदेश तक चले गए, मगर उन्होंने पुरखों की धरोहर को बचाने के लिए कभी गांव नहीं छोड़ा। उनकी इच्छा मात्र इतनी ही है कि आने वाली पीढ़ी इस धरोहर से प्रेरणा ले और पुरखों की अमानत को बचाकर रखे।

हो रहा अतिक्रमण का प्रयास

तिलकराज का कहना है कि कुछ लोग कुएं पर अतिक्रमण की कोशिश कर रहे हैं, उनके साथ कई बार विवाद भी हो चुका है। प्रशासन से भी मदद मांगी, मगर समाधान नहीं हो पाया। हालांकि वह अपनी आखिरी सांस तक इस कुएं देखरेख अपने खर्च पर करते रहेंगे।

बुजुर्गों की धरोहर अब तक बचाई:

दुबई में रह रहे तिलकराज के चचेरे भाई रामअवतार के मुताबिक उन्होंने यह सराहनीय कार्य किया है। बुजुर्गों की धरोहर को अब तक बचा कर रखा है। जब भी गांव में आते हैं तो कुएं को देखकर खुशी होती है। ग्रामीण बताते हैं कि इस कुएं को देखने के लिए अब आसपास क्षेत्र के लोग भी आने लगे हैं।