Rajiv Gandhi assassination case: मद्रास हाई कोर्ट ने खारिज की नलिनी और रविचंद्रन की याचिका
सुप्रीम कोर्ट आगे कहा कि प्रतिवादियों द्वारा अभ्यावेदन पर विचार नहीं किया गया। बाद में 09.09.2018 को तमिलनाडु के मंत्रिपरिषद ने राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत याचिकाकर्ता को रिहा करने की सलाह दी थी ।
By Monika MinalEdited By: Updated: Fri, 17 Jun 2022 02:31 PM (IST)
चेन्नई, प्रेट्र। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड मामले में दोषी नलिनी श्रीहरन और रविचंद्रन की याचिका को मद्रास हाई कोर्ट ने शुक्रवार को खारिज कर दिया। चीफ जस्टिस मुनीश्वर नाथ भंडारी और जस्टिस एन माला की बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट के पास संविधान के आर्टिकल 142 के तहत स्पेशल पावर हैं। इस प्रकार, यह उनकी रिहाई का आदेश नहीं दे सकता, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में एक अन्य दोषी पेरारिवलन के लिए किया था। इसलिए याचिका सुनवाई योग्य नहीं होने के कारण खारिज कर दी गई।
बता दें कि नलिनी और रविचंद्रन ने समय से पहले रिहाई के लिए मद्रास हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इन्होंने याचिका में मांग की गई थी कि मंत्रिपरिषद की सिफारिशों के अनुसार कार्य करने में विफल रहने वाले राज्यपाल की कार्रवाई असंवैधानिक है। याचिका में तमिलनाडु के राज्यपाल की मंजूरी के बिना याचिकाकर्ता को तुरंत जेल से रिहा करने के लिए राज्य को निर्देश देने की भी मांग की गई है। याचिकाकर्ता ने कहा कि भले ही वह 2001 में ही समयपूर्व रिहाई के लिए योग्य हो गई थी, फिर भी उसे रिहा नहीं किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट आगे कहा कि प्रतिवादियों द्वारा अभ्यावेदन पर विचार नहीं किया गया। बाद में 09.09.2018 को, तमिलनाडु के मंत्रिपरिषद ने राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत याचिकाकर्ता को रिहा करने की सलाह दी थी। हालांकि, राज्यपाल ने अभी भी इस सलाह पर कार्रवाई नहीं की है, भले ही वह राज्य सरकार की सलाह से बाध्य है, जैसा कि मारू राम बनाम भारत संघ AIR 1980 SC 2147 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित किया गया था। अदालत ने पहले देखा कि अनुच्छेद 161 मंत्रिपरिषद के निर्णय को बाध्य करने का प्रावधान नहीं करता है। पीठ ने आगे कहा कि मंत्रियों को कोई शक्ति नहीं दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से उचित प्रक्रिया और कानून का पालन करने को कहा अदालत ने यह भी देखा कि अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों की तुलना अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट की शक्तियों से नहीं की जा सकती है और सुझाव दिया कि यदि याचिकाकर्ता पेरारीवलन को रिहा करने के सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के आधार पर रिहाई की मांग कर रहा है तो वह याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट जा सकता है।