Hindi Diwas 2022: राष्ट्र को जोड़ने की एक महत्वपूर्ण कड़ी है हिंदी
Hindi Diwas 2022 बुधवार को हिंदी दिवस है। इस दिन हिंदी को सभी क्षेत्रों में प्रोत्साहित करने पर जोर दिया जाएगा। हिंदी को लेकर लोगों के विचार भले ही अलग-अलग हों परंतु इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि भारत में सबसे अधिक हिंदी ही बोली जाती है।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 12 Sep 2022 01:49 PM (IST)
के. श्रीनिवासराव। Hindi Diwas 2022 हम जानते हैं कि संस्कृति किसी भी समाज और राष्ट्र की धरोहर तथा पहचान होती है। हमें गर्व है कि हम एक ऐसे भारत के नागरिक हैं, जिसमें बहुत सारी संस्कृतियां एक साथ हैं। हमारी एक सामासिक संस्कृति है। सभी संस्कृतियां एक सूत्र में बंध कर ‘भारतीय संस्कृति’ का निर्माण करती हैं। संस्कृति ही जन सामान्य में संस्कार और परंपराओं का संवहन करती है। हमें सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान करते हुए यह भी प्रसन्नता के साथ स्वीकार करना चाहिए कि आज पूरे देश की सांस्कृतिक भाषा के रूप में हिंदी का प्रचलन है। एक भाषा के रूप में हिंदी न केवल भारत की पहचान है, बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति और संस्कारों की संवाहक, संप्रेषक तथा परिचायक भी है।
यह भाषा हमारे पारंपरिक ज्ञान, प्राचीन सभ्यता और आधुनिक प्रगति के बीच सेतु की तरह है। बहुत सरल, सहज और सुगम भाषा होने के साथ ही हिंदी विश्व की संभवतः सबसे वैज्ञानिक भाषा है। ऐसा अनेक भाषा विज्ञानियों का मत है। हिंदी भले ही अब तक राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई हो, लेकिन सदियों पहले से ही यह देश की संपर्क भाषा के रूप में प्रतिष्ठित है। भले ही राजकीय प्रशासन के स्तर पर कभी संस्कृत, कभी फारसी और अंग्रेजी की मान्यता रही, लेकिन पूरे राष्ट्र के जन-समुदाय के आपसी संपर्क, संवाद-संचार, विचार-विमर्श, सांस्कृतिक सोच और जीवन-व्यवहार का माध्यम हिंदी ही बनी रही। भारतीय जनमानस से जुड़ने और अपनेपन का भाव प्रदर्शित करने के लिए इस्लामी शासकों ने भी हिंदी और उर्दू की मिलीजुली भाषा की जरूरत महसूस की। तब एक ऐसी भाषा विकसित हुई, जिसे हिंदुस्तानी कहा गया।
जनभाषा बनी हिंदी हम सभी जानते हैं कि मध्यकाल में हुए भक्ति आंदोलन ने राष्ट्रव्यापी असर डाला, जिसके प्रभाव से हिंदी भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक जनभाषा बन गई। कुछ समय बाद जब अंग्रेजों ने भारत पर अधिकार कर लिया, तब उनको आधुनिक काल में समूचे भारत में जिस भाषा का सबसे ज्यादा प्रचार, प्रसार और प्रभाव दिखाई दिया, वह हिंदी ही थी, जिसे वे लोग भी हिंदुस्तानी कहते थे। हिंदी को जानने, समझने और बोलने वाले भारत के कोने-कोने में फैले हुए हैं। ये लोग चाहे हिंदी न जानते हों, व्याकरण की भूल करते हों, अशुद्ध हिंदी बोलते हों, लेकिन बोलते हिंदी ही हैं। वे हिंदी को अपनी भाषा मानते हैं। वास्तव में हिंदी की यह समावेशी और सर्वग्राही प्रकृति ही देश की एकता की परिचायक है और इस प्रकृति ने ही उसे अखिल भारतीय रूप दिया है।
भाषा जब हम एक भाषा के बारे में बात कर रहे हैं तो हमें यह भी जानना चाहिए कि भाषा होती क्या है। और इसकी आवश्यकता व महत्त्व क्या है। भाषा एक निरंतर चलती रहने वाली सामाजिक क्रिया है। इसीलिए भाषा को बहता नीर कहा गया है। इसे किसी व्यक्ति ने नहीं बनाया, बल्कि इसका सृजन सामूहिक चेतना द्वारा समाज करता है। वह समाज सापेक्ष होती है। उसकी धारा निरंतर बहती चलती रहती है। भाषा के माध्यम से ही साहित्य अभिव्यक्ति पाता है। किसी भी भाषा के बोलनेवालों, जन समुदाय के रहन-सहन, आचार-विचार आदि का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करने वाला उस भाषा का साहित्य ही होता है। भाषा न केवल साहित्य सृजन के लिए होती है, बल्कि अन्य विषयों की जानकारी के लिए भी माध्यम का काम करती है। इसीलिए भाषा मनुष्य के लिए एक अनोखा वरदान है। भाषा के बिना मनुष्य के समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। सभ्यता-संस्कृति के विकास के लिए भाषा की भूमिका महत्वपूर्ण है।
राजभाषा भारत की संविधान सभा द्वारा 14 सितंबर, 1949 को हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार कर लेने से उसके प्रयोग का रास्ता विस्तृत हो गया। कोई भी भाषा जितने विषयों में प्रयोग में लाई जाती है, उसके उतने ही अलग-अलग रूप भी विकसित होते जाते हैं। हिंदी के साथ भी यही हुआ। हमारे संविधान में हिंदी को राजभाषा स्वीकार किए जाने के साथ हिंदी का परंपरागत अर्थ, स्वरूप, व्यवहार व्यापक हो गया। हिंदी के जिस रूप को राजभाषा स्वीकार किया गया है, वह असल में खड़ी बोली हिंदी का परिनिष्ठित रूप है। देश को स्वतंत्रता मिलने से लेकर अब तक हिंदी ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं।
तकनीक और भाषा भाषा का विकास उसके साहित्य पर निर्भर करता है। आज के तकनीकी युग में विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी हिंदी में काम को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि देश की प्रगति में ग्रामीण जनसंख्या सहित सबकी भागीदारी सुनिश्चित हो सके। इसके लिए अनिवार्य है कि हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में तकनीकी ज्ञान से संबंधित साहित्य का सरल अनुवाद किया जाए। इसके लिए राजभाषा विभाग और तकनीकी शब्दावली आयोग ने सरल हिंदी शब्दावली तैयार की है। राष्ट्रीय ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन योजना द्वारा हिंदी में ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकों के लेखन को बढ़ावा दिया जा रहा है। शैक्षणिक हिंदी का वास्तविक अंतरराष्ट्रीय प्रसार यूरोप, अमेरिका और एशिया के अनेक देशों में भी हो रहा है। पश्चिमी और पूर्वी यूरोप में मिलाकर कम से कम एक दर्जन देशों में तीन दर्जन विश्वविद्यालय और संस्थानों में हिंदी शिक्षण की व्यवस्था है। कनाडा और अमेरिका के अनेक विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है। अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन और रूसी में हिंदी की अनेक कृतियों के अनुवाद हुए हैं। भारत में हिंदी को लेकर भले ही लोगों के अलग-अलग विचार हों, लेकिन इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि भारत में सबसे अधिक हिंदी भाषा बोली जाती है।
आज दुनिया के कई देश हैं, जहां हिंदी को प्रतिष्ठा प्राप्त है। फिजी में हिंदी को सरकारी भाषा का दर्जा दिया गया है। इसे फिजियन हिंदी कहते हैं। इसी तरह मारीशस की यह प्रमुख भाषा है। त्रिनिदाद-टोबैगो में भी हिंदी चलती है। नेपाल की सरकारी भाषा तो नेपाली है, पर वहां मैथिली, भोजपुरी और हिंदी भी बोली जाती है। त्रिनिदाद और टोबैगो में अंग्रेजी आधिकारिक भाषा है, लेकिन वहां पर स्पेनिश, फ्रेंच, हिंदी और भोजपुरी भी बोली जाती है। इसी तरह सिंगापुर में मलय और अंग्रेजी वहां की आधिकारिक भाषाएं हैं, लेकिन वहां तमिल और मंडारिन के साथ हिंदी भी बोली जाती है। दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजी और अफ्रीकी वहां की सरकारी भाषाएं हैं, लेकिन वहां भी अन्य कई क्षेत्रीय भाषाओं के साथ हिंदी भी बोली जाती है। इंटरनेट मीडिया के आने से हिंदी को नई पहचान मिली है। अब युवा भी हिंदी में अपनी बात रखने लगे हैं। नई शिक्षा नीति में हिंदी को मूल्यवान अधिमान मिलने में आने वाली अड़चनों को दूर करने के लिए केंद्र सरकार कुछ ठोस संकल्पों एवं अनूठे प्रयोगों द्वारा प्रतिबद्ध दिख रही है। यह एक अच्छी बात है। भाषा वही जीवित रहती है जिसमें संभावनाएं होती हैं और जिसका प्रयोग जनता व्यापक स्तर पर करती है। सौभाग्य से हिंदी में ऐसे सभी आवश्यक और अपेक्षित गुण मौजूद हैं।[सचिव, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली]