Move to Jagran APP

'बिना रस्मों के हिंदू विवाह मान्य नहीं, ये नाचने-गाने और खाने-पीने का इवेंट नहीं है', शादी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाह नाचने-गाने खाने-पीने या वाणिज्यिक लेनदेन का अवसर नहीं है। वैध रस्मों को पूरा किए बिना किसी शादी को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत मान्यता नहीं दी जा सकती है। जहां विवाह सप्तपदी (दूल्हा एवं दुल्हन द्वारा पवित्र अग्नि के समक्ष सात फेरे लेना) जैसे रस्मों के अनुसार नहीं किया गया हो उस विवाह को हिंदू विवाह नहीं माना जाएगा।

By Jagran News Edited By: Siddharth Chaurasiya Updated: Thu, 02 May 2024 12:04 AM (IST)
Hero Image
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाह 'नाचने-गाने, खाने-पीने या वाणिज्यिक लेनदेन' का अवसर नहीं है।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाह 'नाचने-गाने, खाने-पीने या वाणिज्यिक लेनदेन' का अवसर नहीं है। वैध रस्मों को पूरा किए बिना किसी शादी को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत मान्यता नहीं दी जा सकती है। जहां विवाह सप्तपदी (दूल्हा एवं दुल्हन द्वारा पवित्र अग्नि के समक्ष सात फेरे लेना) जैसे रस्मों के अनुसार नहीं किया गया हो, उस विवाह को हिंदू विवाह नहीं माना जाएगा।

जस्टिस बीवी नागरत्ना और आगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह एक संस्कार और पवित्र बंधन है, जिसे भारतीय समाज में काफी महत्व दिया जाता है। हाल ही में पारित अपने आदेश में पीठ ने युवक-युवतियों से आग्रह किया कि वे विवाह की संस्था में प्रवेश करने से पहले ही इसके बारे में गहराई से विचार करें, क्योंकि भारतीय समाज में विवाह एक पवित्र बंधन है।

यह भी पढ़ें: Covishield Side Effects: कोविशील्ड के साइड इफेक्ट का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, जांच के लिए पैनल गठित की मांग

पीठ ने दो प्रशिक्षित वाणिज्यिक पायलटों के मामले में अपने आदेश में यह टिप्पणी की। दोनों पायलटों ने वैध रस्मों से विवाह किए बिना ही तलाक के लिए मंजूरी मांगी थी। पीठ ने कहा, शादी नाचने-गाने और खाने-पीने का आयोजन या अनुचित दबाव डालकर दहेज और उपहारों की मांग करने का अवसर नहीं है, जिसके बाद आपराधिक कार्यवाही शुरू हो सकती है। शादी कोई वाणिज्यिक लेनदेन नहीं है। यह एक पवित्र बंधन है, जो एक पुरुष और एक महिला के बीच संबंध स्थापित करने के लिए होता है। इसके जरिये एक पुरुष और महिला पति-पत्नी का दर्जा प्राप्त करते हैं, जो भारतीय समाज की एक बुनियादी इकाई है।

पीठ ने शादी को पवित्र बताया, क्योंकि यह दो लोगों को आजीवन, गरिमापूर्ण, समान, सहमतिपूर्ण और स्वस्थ मिलन प्रदान करती है। हिंदू विवाह परिवार की इकाई को मजबूत करता है और विभिन्न समुदायों के भीतर भाईचारे की भावना को मजबूत करता है।

यह भी पढ़ें: 'हस्तक्षेप का मतलब चुनाव प्रक्रिया को रोकना होगा', SC का पूर्व भाजपा उम्मीदवार की याचिका पर विचार करने से इनकार

पीठ ने कहा, हम उन युवा पुरुषों और महिलाओं के चलन की निंदा करते हैं जो (हिंदू विवाह) अधिनियम के प्रविधानों के तहत वैध विवाह समारोह के अभाव में एक-दूसरे के लिए पति और पत्नी होने का दर्जा हासिल करना चाहते हैं और इसलिए कथित तौर पर शादी कर रहे हैं।