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Hindu Succession Act: 'हिंदू महिला संपत्ति के पूर्ण स्वामित्व का दावा कर सकती है, लेकिन..', सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले के तथ्यों को देखने से स्पष्ट है कि नंदकुवरबाई (हिन्दू विधवा) का विवादित संपत्ति पर कभी कब्जा नहीं रहा। उसका संपत्ति पर मालिकाना हक और कब्जे की मांग करने वाला दीवानी मुकदमा अदालत से पहले ही खारिज हो चुका था और दीवानी अदालत के उस फैसले को नंदकुंवरबाई ने कभी चुनौती नहीं दी।

By Jagran News Edited By: Siddharth Chaurasiya Updated: Sun, 19 May 2024 08:14 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने मुकटलाल की याचिका स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया है।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि हिन्दू महिला का हिन्दू अविभाजित परिवार की संपत्ति में पूर्ण स्वामित्व का दावा करने के लिए संपत्ति पर उसका कब्जा होना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा है कि हिन्दू महिला के हिन्दू उत्तराधिकार कानून की धारा 14 (1) में हिन्दू अविभाजित परिवार की संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व का दावा करने के लिए न सिर्फ संपत्ति पर महिला का कब्जा होना जरूरी है बल्कि उसने वह संपत्ति अर्जित भी की हो।

अदालत ने कहा कि संपत्ति का अर्जन या अधिग्रहण या तो विरासत से हुआ हो या विभाजन के जरिए अथवा भरण पोषण के लिए मिली हो या भरण पोषण की बकाया राशि, या उपहार या अपने कौशल व मेहनत से अर्जित की हो या खरीदी हो अथवा किसी और तरीके से हुआ हो। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने हिन्दू विधवा के हिन्दू अविभाजित परिवार की संपत्ति पर कभी भी कब्जा न रहने के तथ्य को देखते हुए हिन्दू विधवा के दत्तक पुत्र का संपत्ति पर पूर्ण अधिकार का दावा स्वीकार करने वाला राजस्थान हाईकोर्ट का आदेश रद कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले के तथ्यों को देखने से स्पष्ट है कि नंदकुवरबाई (हिन्दू विधवा) का विवादित संपत्ति पर कभी कब्जा नहीं रहा। उसका संपत्ति पर मालिकाना हक और कब्जे की मांग करने वाला दीवानी मुकदमा अदालत से पहले ही खारिज हो चुका था और दीवानी अदालत के उस फैसले को नंदकुंवरबाई ने कभी चुनौती नहीं दी।

शीर्ष अदालत ने कहा कि हिन्दू उत्तराधिकार कानून की धारा 14(1) के तहत संपत्ति पर कब्जा होने की जरूरी शर्त पूरी नहीं होती। ऐसे में नंदकुंवरबाई के दत्तक पुत्र कैलाश चंद का विरासत के तौर पर संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व का दावा करते हुए विभाजन की मांग वाला रेवेन्यू वाद (दाखिल मुकदमा) सुनवाई योग्य नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने कुछ पूर्व फैसलों में तय की गई कानूनी व्यवस्था और विधायी प्रविधानों का हवाला देते हुए कहा कि हाईकोर्ट की एकल पीठ और खंडपीठ के फैसलों में इस बात पर विचार नहीं किया गया है कि उस संपत्ति पर न तो कैलाश चंद (दत्तक पुत्र) और न ही उनके पहले वालों (कैलाश चंद्र को गोद लेने वाली हिन्दू विधवा नंदकुंवरबाई) का उस संपत्ति पर कभी कोई कब्जा रहा। न ही संपत्ति तय तरीकों से अर्जित की गई थी। इन तथ्यों को देखते हुए हाई कोर्ट का आदेश बना रहने लायक नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने मुकटलाल की याचिका स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया है। चचेरे भाई मुकटलाल ने कैलाशचंद के संपत्ति पर पूर्ण अधिकार के दावे का यह कहते हुए विरोध किया था कि उन्हें गोद लेने वाली मां का संपत्ति पर कभी भी कब्जा नहीं रहा जो कि धारा 14(1) के तहत पूर्ण स्वामित्व का दावा करने के लिए पहली जरूरी शर्त है और इसलिए हाईकोर्ट का फैसला गलत है।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के सामने नंदकुंवर बाई के कानूनी वारिस कैलाश चंद के संपत्ति पर अधिकार के दावे का मुद्दा विचारणींय था। जिसमें कैलाश चंद ने हिन्दू अविभाजित परिवार की संपत्ति पर धारा 14(1) के तहत नंदकुंवरबाई के उत्तराधिकार को लागू कराने के लिए रेवेन्यू कोर्ट में मुकदमा दाखिल किया था।

मामले के मुताबिक, किशन लाल के दो बच्चे थे मंगीलाल और माधोलाल। मंगीलाल की 1912 में मृत्यु हो गई उसका एक बेटा था कुंवरलाल जबकि माधोलाल का कोई बच्चा नहीं था और माधोलाल की 1929 में मृत्यु हो गई। माधोलाल की पत्नी नंदकुंवरबाई थी। नंदकुंबरबाई ने पति की मृत्यु के तीस साल बाद 1959 में कैलाश चंद को गोद लिया था। कुंवरलाल ने 1949 में वसीयत के जरिये परिवार की संपत्ति अपने बेटे मुकट लाल को दे दी थी।

इस बीच, 1958 में नंदकुंवरबाई ने अदालत में दीवानी वाद दाखिल कर संपत्ति पर मालिकाना हक और कब्जे का दावा किया। नंदकुंवरबाई का कहना था कि संपत्ति हिन्दू अविभाजित परिवार की है इसलिए मुकट लाल का वसीयत के जरिए संपत्ति पर हक नहीं बनता। दीवानी अदालत ने यह मुकदमा खारिज कर दिया। हालांकि, यह माना कि उस संपत्ति से नंदकुंवरबाई को भरण पोषण पाने का अधिकार है। इस बीच कैलाशचंद ने 1979 में रेवेन्यू सूट दाखिल कर उत्तराधिकार के तहत धारा 14(1) में संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व का दावा करते हुए संपत्ति का विभाजन मांगा। यही मामला हाई कोर्ट से होते हुए सुप्रीम कोर्ट आया था।