Vinayak Damodar Savarkar: बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी वीर सावरकर के विचार भारतीयों को करते हैं प्रेरित
Vinayak Damodar Savarkar Birth Anniversary महाराष्ट्र के नाशिक जिले में 28 मई 1883 को सावरकर का जन्म हुआ था। सावरकर भारतीय इतिहास के मशहूर और विवादास्पद व्यक्तित्वों में से एक हैं। उनके पिता का नाम दामोदर पंत सावरकर और मां का नाम राधाबाई था।
पूर्व प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में सावकर को लेकर कहा था,''सावरकर माने तेज, सावरकर माने त्याग, सावरकर माने तप, सावरकर माने तत्व, सावरकर माने तर्क, सावरकर माने तारुण्य, सावरकर माने तीर, सावरकर माने तलवार, सावरकार माने तिलमिलाहट, सागरा प्राण तड़मड़ला, तड़मड़ाती हुई आत्मा, सावरकर माने तितीक्षा, सावरकर माने तीखापन, सावरकर माने तिखट। कैसा बहुरंगी व्यक्तित्व, कविता और क्रांति।''
कविता और भ्रांति तो साथ-साथ चल सकती है, लेकिन कविता और क्रांति का साथ चलना बहुत मुश्किल है। कविता माने कल्पना, शब्दों के संसार का सृजन, ऊंची उड़ान। कभी-कभी ऊंची उड़ान में अगर धरातल से पांव उठ जाएं, वास्तविकता से नाता टूट जाए तो कवि को शिकायत नहीं होगी। उसके आलोचक भी इस बात के लिए टीका नहीं करेंगे, मगर सावरकर जी का कवि ऊंची से ऊंची उड़ान भरता था। सावरकर में ऊंचाई भी थी और गहराई भी थी।
कब हुआ था सावरकर का जन्म?
- 1901 में नासिक के शिवाजी हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। यह वही साल था जब उनका विवाह यमुनाबाई के साथ हुआ। पढ़ाई के साथ ही साहित्य के प्रति रुझान के चलते उन्होंने कविताएं भी लिखी।
- आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे सावरकर ने कभी भी पढ़ाई से मुंह नहीं मोड़ा और पुणे के फर्ग्युसन कालेज से बीए किया। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए लंदन चले गए।
- पढ़ाई के साथ-साथ सावरकर कविताएं तो लिख ही रहे थे। साथ ही उनका झुकाव राजनीतिक गतिविधियों की तरफ भी बढ़ने लगा था। ऐसे में उन्होंने 1904 में उन्होंने 'अभिनव भारत' नामक संगठन का गठन किया। इस संगठन के माध्यम से उन्होंने युवाओं को स्वदेशी, राष्ट्रीय एकता और धर्मनिरपेक्षता के महत्व के बारे में जागरूक किया।
- 1905 में हुए बंगाल विभाजन का उन्होंने प्रमुखता से विरोध किया। साथ ही पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली भी जलाई थी। इस दौरान कई पत्रिकाओं में उनके लेख भी छपे थे, जो काफी चर्चित हुए थे।
- रूसी क्रांतिकारियों से प्रभावित रहे सावरकर ने 1907 में लंदन के इंडिया हाउस में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयंती मनाई थी। उस वक्त इंडिया हाउस की देखरेख का जिम्मा लाला हरदयाल के पास था। यह वही दौर था जब सावरकर गदर आंदोलन के नेताओं के संपर्क में आए और भारत लौटकर आजादी की लड़ाई में खुद को झोंक दिया।
- सावरकर की सबसे ज्यादा चर्चा 1911 और 1948 में हुई थी। दरअसल, 1911 में उन्हें काला पानी की सजा सुनाई गई थी, जबकि 1948 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के छठे दिन उनको मुंबई से गिरफ्तार किया गया था, उन पर हत्या की साजिश रचने का आरोप था। हालांकि, संदेह का लाभ मिलने पर वो बरी हो गए थे।
- 1909 में मदन लाल ढींगरा ने इंग्लैंड के कर्जन वायली को गोली मार दी थी। इसके बाद सावरकर ने लंदन टाइम्स में एक लेख लिखा था। जिसके बाद 13 मई, 1910 को उनको गिरफ्तार किया गया था। हालांकि, 8 जुलाई, 1910 को वो फरार हो गए थे। जिसके बाद उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
- 1857 को पहले स्वतंत्रता संग्राम को लेकर सावरकर ने विस्तृत प्रमाण जुटाए थे और उन्होंने इस पर '1857- इंडिपेंडेंस समर' किताब लिखी थी। सावरकर ही वो पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 1857 के विद्रोह को आजादी की पहली लड़ाई करार दिया था।
जब सावरकर को हुई थी काला पानी की सजा
अंग्रेजी हुकूमत ने सावरकर को दोहरे आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए सेलुलर जेल में रखा था। सावरकर को 50 साल की काला पानी की सजा मिली थी, लेकिन 10 साल बाद ही वो रिहा हो गए थे। बता दें कि 7 अप्रैल, 1911 को सावरकर को काला पानी की सजा पर पोर्ट ब्लेयर सेलुलर जेल लाया गया था और वो 4 जुलाई, 1911 से 21 मई, 1921 तक जेल में रहे, जहां पर अंग्रेजों द्वारा बेपनाह यातनाएं दी जाती थी। हालांकि, अंग्रेजों ने उनकी याचिका पर विचार करते हुए रिहा कर दिया था। सावरकर ने 'मेरा आजीवन कारावास' नामक आत्मकथा में तमाम पहलुओं के बारे में जानकारी दी है। सेलुलर जेल की यातनाओं को लेकर बटुकेश्वर दत्त ने 1933 और 1937 में भूख हड़ताल की थी। बटुकेश्वर दत्त शहीद-ए-आजम भगत सिंह के साथी और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के सदस्य थे। जिन्हें सेंट्रल एसेंबली में बम फेंकने के लिए गिरफ्तार किया गया था और फिर उन्हें आजीवन कैद की सजा सुनाई गई थी। इसके बाद बटुकेश्वर दत्त को सेलुलर जेल भेजा गया था।सावरकर की प्रेरणादायक बातें:
- हमारे देश और समाज के माथे पर अस्पृश्यता नामक एक कलंक है। हिन्दू समाज के, धर्म के, राष्ट्र के करोड़ों हिन्दू बंधु इससे अभिशप्त हैं। जब तक हम ऐसे बनाए हुए हैं, तब तक हमारे शत्रु हमें परस्पर लड़वाकर, विभाजित करके सफल होते रहेंगे। इस घातक बुराई को हमें त्यागना ही होगा।
- कर्तव्य की निष्ठा संकटों को झेलने में, दुःख उठाने में और जीवनभर संघर्ष करने में ही समाविष्ट है। यश अपयश तो मात्र योगायोग की बातें हैं।
- इतिहास, समाज और राष्ट्र को पुष्ट करने वाला हमारा दैनिक व्यवहार ही हमारा धर्म है। धर्म की यह परिभाषा स्पष्ट करती है कि कोई भी मनुष्य धर्मातीत रह ही नहीं सकता। देश इतिहास, समाज के प्रति विशुद्ध प्रेम एवं न्यायपूर्ण व्यवहार ही सच्चा धर्म है।
- मनुष्य की सम्पूर्ण शक्ति का मूल उसके खुद की अनुभूति में ही विद्यमान है।