खनिजों पर टैक्स के मामले में SC का ऐतिहासिक फैसला, बंगाल, झारखंड और एमपी समेत 6 राज्यों को होगा फायदा
सर्वोच्च न्यायालय ने 25 जुलाई को बहुमत से फैसला सुनाया कि उसके सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ का 1989 का निर्णय गलत है जिसमें कहा गया था कि खनिजों पर रॉयल्टी एक कर है। वहीं सर्वोच्च न्यायालय ने पुष्टि की है कि राज्यों को खनिज अधिकारों पर कर लगाने का अधिकार है और यह खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 1957 (एमएमडीआर अधिनियम) द्वारा सीमित नहीं होगा।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने खदान, खनिज संपन्न राज्यों को भारी राजस्व के प्रोत्साहन वाला ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आठ-एक के बहुमत से दिये फैसले में कहा है कि राज्यों को खदानों और खनिज वाली भूमि व खनिज अधिकारों पर कर लगाने का अधिकार है। राज्यों के पास ऐसा करने की विधायी क्षमता और शक्ति है।
शीर्ष अदालत ने खनिज, खदानों के मामले में कर व्यवस्था पर व्यापक प्रभाव वाले फैसल में कहा है कि रॉयल्टी को कर नहीं माना जा सकता। इस फैसले से खनिज, खदान संपन्न राज्य ओडीशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान को फायदा होगा। हालांकि फैसले को पूर्व प्रभाव से लागू माना जाएगा या फैसले की तारीख से लागू माना जाएगा इस पर कोर्ट बुधवार को सुनवाई करेगा।
'रॉयल्टी कर की प्रकृति में नहीं आती'
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने स्वयं और सात अन्य न्यायाधीशों की ओर से बहुमत का फैसला पढ़ते हुए कहा कि रॉयल्टी कर की प्रकृति में नहीं आती क्योंकि यह खनन पट्टे के लिए पट्टेदार द्वारा भुगतान किया गया एक संविदात्मक प्रतिफल है। यानी खनन का पट्टा या ठेका लेने के बदले दिया जाने वाला भुगतान होता है। कोर्ट ने कहा कि रॉयल्टी और डेड रेंट ( खनिज भूमि की तय न्यूनतम राशि जिसका भुगतान खनन पट्टा लेने वाला सरकार या भूस्वामी को करता है) दोनों ही टैक्स की विशेषताओं को पूरा नहीं करते। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिये बहुमत के फैसले में 1989 के इंडिया सीमेंट मामले में रायल्टी को टैक्स मानने की व्यवस्था देने वाले फैसले को खारिज कर दिया है।राज्यों को खनिज अधिकारों पर टैक्स लगाने का अधिकार
बहुमत के इस फैसले को अगर बहुत साधारण शब्दों में समझा जाए तो अर्थ निकलता है कि राज्यों को खनिज अधिकारों और खदानों की भूमि पर कर लगाने का अधिकार है। खदान एवं खनिज (विकास एवं नियमन) कानून 1957 की धारा 9 के तहत लगने वाली रॉयल्टी टैक्स नहीं है उसकी प्रकृति टैक्स की नहीं होती। यानी इससे राज्य सरकार का टैक्स लगाने का अधिकार प्रभावित नहीं होता न ही सीमित होता है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सुनाया फैसला
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और सात अन्य न्यायाधीशों ऋषिकेश राय, अभय एस ओका, जेबी पार्डीवाला, मनोज मिश्रा, उज्जवल भुइयां, सतीश चंद्र शर्मा और अस्टीन जार्ज मसीह ने बहुमत का फैसला दिया है जबकि न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने बहुमत के फैसले से असहमति जताते हुए अलग से फैसला दिया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के दो विभिन्न मतों के फैसले होने के कारण नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मामले पर विचार किया था।80 से ज्यादा याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में थीं लंबित
सात न्यायाधीशों की पीठ ने 1989 में इंडिया सीमेंट के मामले में कहा था कि रॉयल्टी एक टैक्स है और खदान और खनिज एक्ट में केंद्र सरकार को प्राथमिक अधिकार है और राज्य इस एक्ट में रॉयल्टी एकत्र कर सकते हैं लेकिन खदान और खनिज पर अलग से कर या उप कर नहीं लगा सकते। जबकि 2004 में पांच जजों की पीठ ने पश्चिम बंगाल बनाम केसोराम इंडस्ट्री के मामले में दिए फैसले में कहा था कि रॉयल्टी टैक्स नहीं है। दो विरोधी फैसलों के बाद इस मामले में 80 से ज्यादा याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित थीं। आठ दिन चली लंबी सुनवाई में केंद्र सरकार, खदान कंपनियों और सार्वजनिक उपक्रमों की दलील थी कि खदान और खनिज एक्ट के तहत सिर्फ संसद को टैक्स लगाने का अधिकार है। जबकि राज्यों विशेषकर झारखंड, उड़ीसा और असम राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी की दलील थी कि राज्यों को भी खनिज और खदान भूमि पर कर लगाने का अधिकार है।