दरअसल, अंग्रेजों की कूटनीति का फायदा उठाते हुए कई रियासतों ने अकेले और स्वतंत्र रहने का फैसला किया। हालांकि, भारत में विलय के लिए रियासतों को चालीस दिन का समय दिया गया था। इसके बाद भी कुछ रियासतों को विलय के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की राजनीतिक कूटनीति का इस्तेमाल करना पड़ा था। उसके बाद भी तीन रियासतें अपनी जिद पर थी कि वह आजाद और स्वतंत्र देश बनाने की बात कह रहे थे।
तीन रियासतों ने विलय से किया इनकार
इन तीन रियासतों में जम्मू-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद शामिल था। ऐसी प्रतिकूल स्थिति में राष्ट्र की एकता और अखंडता को हर तरह से खतरा था। कई प्रयासों के बाद जम्मू-कश्मीर का 26 अक्टूबर, 1947 और जूनागढ़ का 20 फरवरी, 1948 को भारत में विलय हो गया। इसके बाद भी हैदराबाद रियासत के निजाम ने किसी भी कीमत पर भारत में विलय होने के प्रस्ताव को नामंजूर करते हुए खुद को स्वतंत्र रखने का एलान किया। आजाद भारत के लिए हैदराबाद का अपनी जिद पर अड़े रहने सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक रूप से बिल्कुल ठीक नहीं था।
क्या है हैदराबाद के आजादी की कहानी?
जब 3 जून, 1947 को वायसराय माउंटबेटन ने घोषणा की कि अंग्रेज जल्द ही भारत को छोड़ देंगे, तो निजाम ने भी 12 जून को घोषणा कर दी कि अंग्रेजी हुकूमत खत्म होने के बाद हैदराबाद रियासत पूरी तरह स्वाधीन हो जाएगी और वह पूरी तरह स्वाधीन शासक बन जाएंगे। लंबी कोशिशों के बाद भी 15 अगस्त, 1947 के बाद भी जब हैदराबाद का भारत में विलय होने पर कोई सहमति नहीं बन पाई, तब तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन के कहने पर भारत सरकार और निजाम के बीच नवंबर, 1947 में एक स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट हुआ।
इस एग्रीमेंट में तय किया गया कि 15 अगस्त, 1947 के पहले तक हैदराबाद से जो पारस्परिक संबंध की व्यवस्था थी, वह बनी रहेगी। इस समझौते के तहत निजाम को हैदराबाद में एक प्रतिनिधि सरकार का गठन करना था। इसमें भारत सरकार और हैदराबाद रियासत को एक दूसरे के यहां अपने-अपने एजेंट नियुक्त करने थे, जिसके लिए भारत की तरफ से हैदराबाद में के.एम मुंशी और निजाम ने नवंबर में लायक अली को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया था।
निजाम ने किया संधि का उल्लंघन
हालांकि, उस दौरान निजाम में इस संधि का उल्लंघन करते हुए पाकिस्तान को करोड़ों रुपये का ऋण दे दिया। उन्होंने भारत को सूचित किए बिना पाकिस्तान में अपना एक जन सम्पर्क अधिकारी भी नियुक्त कर दिया। इसके साथ ही विदेशों से हथियार खरीदने की कोशिश भी करने लगे।अब हैदराबाद, भारत की एकता और अखंडता के लिए खतरा बनते जा रहा था। रजाकारों के जरिए सीमाओं पर गड़बड़ी की जा रही थी और रेलगाड़ियों को लूटा जा रहा था। इन सभी बातों को देखते हुए लोगों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया और रियासत में एक जिम्मेदार सरकार की मांग करने लगे। हालांकि, इसके बाद निजाम सरकार ने विरोध करने वाले हजारों लोगों को जेल में डाल दिया और कांग्रेस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया।
मई 1948 के बाद से बिगड़े हालात
इसके बाद देश में हालात बेकाबू होने लगे और 22 मई, 1948 को रजाकारों ने हैदराबाद के पास गंगापुर स्टेशन पर एक ट्रेन पर हमला कर दिया। उस स्थिति की गंभीरता को देखते हुए भारत सरकार ने 26 जुलाई, 1948 को हैदराबाद की स्थिति पर एक 'श्वेत पत्र' जारी किया।
सरदार पटेल ने हैदराबाद में कार्रवाई को माना अनिवार्य
इस समय भारत को समझ आने लगा था कि किसी भी हालत में हैदराबाद का भारत में विलय होना जरूरी हो गया है। सरदार पटेल ने संविधान सभा में कहा कि हैदराबाद को भारत में मिलाने के लिए कार्रवाई करनी जरूरी हो गई है। हालांकि, तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख जनरल फ्रांसिस रॉबर्ट बूचर ने हैदराबाद पर किसी भी तरह के आक्रमण का विरोध किया था। उन्हें डर था कि इसके बदले में पाकिस्तान अहमदाबाद और बॉम्बे पर हवाई हमला कर सकता है, लेकिन सरदार पटेल अपने निर्णय पर अडिग रहे।
हैदराबाद को 'भारत के पेट का कैंसर' बताया
सरदार पटेल ने हैदराबाद को 'भारत के पेट में कैंसर' कहा था और राज्य में शांति व्यवस्था और सुरक्षा बनाए रखने के लिए पुलिस कार्रवाई करने की बात कही। हालांकि, उस दौरान राजनीतिक अनिश्चितता की वजह से पटेल को दो बार हैदराबाद पर कार्रवाई टालनी पड़ी थी, लेकिन तीसरी बार वह बिलकुल दृढ़ थे।
हैदराबाद पर तीन दिशाओं से हमला
ऑपरेशन की योजना बहुत सावधानी से बनाई गई थी, और भारतीय सेना के पास निजाम की सेना की तुलना में बेहतर मारक क्षमता और तकनीक थी। भारतीय सेना को स्थानीय आबादी का भी समर्थन प्राप्त था, जो निजाम के शासन के अंत को देखने के लिए उत्सुक थे।निजाम उस्मान अली खान आसफजाह सातवें की सेना का भारतीय सेना के लिए कोई मुकाबला नहीं था और उन्होंने थोड़ा प्रतिरोध पेश किया। सरदार पटेल ने घोषणा की कि 13 सितंबर, 1948 की सुबह 4 बजे भारतीय सेना मेजर जनरल जे एन चौधरी के नेतृत्व में हैदराबाद अभियान शुरू कर चुकी थी। महज पांच दिन के अंदर 17 सितंबर, 1948 की शाम 5 बजे निजाम उस्मान अली ने रेडियो पर संघर्ष विराम और रजाकारों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की। इसके साथ ही, हैदराबाद में भारत का पुलिस एक्शन समाप्त हो गया।
17 सितंबर को कर दिया आत्मसमर्पण
17 सितंबर की शाम 4 बजे हैदराबाद रियासत के सेना प्रमुख मेजर जनरल एल ईद्रूस ने अपने सैनिकों के साथ भारतीय मेजर जनरल जे एन चौधरी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। भारतीय सेना की इस कार्रवाई को 'ऑपरेशन पोलो' का नाम दिया था।17 सितंबर को आत्मसमर्पण के बाद हैदराबाद रियासत के प्रधानमंत्री लायक अली और रजाकार मिलिशिया के प्रमुख कासीम रिजवी को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद हैदराबाद रियासत की भारत संघ में विलय की घोषणा की।
1950 को हैदराबाद बन गया भारत का हिस्सा
मेजर जनरल जे एन चौधरी को हैदराबाद का सैन्य गवर्नर नियुक्त किया गया। 1949 तक वह इस पद पर बने रहे। 24 नवंबर, 1949 को निजाम ने घोषणा की कि भारत का संविधान ही हैदराबाद का संविधान होगा और 26 जनवरी, 1950 को हैदराबाद राज्य नियमित तौर पर भारत का हिस्सा बन गया। जनवरी 1950 में एम के वेलोडी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया और निजाम को राज्य प्रमुख।
ऑपरेशन पोलो' क्या था?
'ऑपरेशन पोलो' हैदराबाद रियासत को एकीकृत करने के लिए 13 सितंबर, 1948 को भारतीय सेना द्वारा शुरू की गई एक सैन्य कार्रवाई का कोड नेम था। आजादी के करीब एक साल बाद तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने हैदराबाद को भारत में शामिल कराने के लिए निजाम की रियासत पर एक सैन्य हमला करवाया था, जिसे 'पुलिस कार्रवाई' कहा गया था। इस हमले के पांच दिनों बाद ही 17 सितंबर तक निजाम की सेना ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।
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ऑपरेशन का नाम कैसे पड़ा 'ऑपरेशन पोलो'?
तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस हमले को पुलिस कार्रवाई कहा था, क्योंकि अगर इसे सैन्य कार्रवाई का नाम दिया जाता, तो इसमें दूसरे देश भी हस्तक्षेप कर सकते थे। वहीं, अगर यह पुलिस कार्रवाई रही, तो कोई बाहरी देश प्रतिक्रिया नहीं दे सकते था।वहीं, इस ऑपरेशन का नाम 'ऑपरेशन पोलो' इसलिए रखा गया था, क्योंकि तब हैदराबाद में विश्व के सबसे ज्यादा पोलो मैदान थे। उस समय पर सिर्फ हैदराबाद में 17 पोलो के मैदान थे।
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