India-Russia Ties: रूसी हथियारों का खरीदार से भागीदार कैसे बना भारत, 60 साल पुराने संबंधों की अटूट कहानी
भारत और रूस ने सैन्य उपकरणों का संयुक्त उत्पादन करने की योजना में प्रगति की है। रूस के विदेश मंत्री सर्गेइ लावरोव ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ बातचीत के बाद यह जानकारी दी है। बता दें कि 1962 में चीन से युद्ध में हार के बाद जब भारत ने अपनी रक्षा तैयारियों को मजबूत करना शुरू किया तो पश्चिमी देशों ने बहुत मदद नहीं की।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत और रूस ने सैन्य उपकरणों का संयुक्त उत्पादन करने की योजना में प्रगति की है। रूस के विदेश मंत्री सर्गेइ लावरोव ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ बातचीत के बाद यह जानकारी दी है। ऐसे समय में जब भारत अपनी रक्षा जरूरतें पूरी करने के लिए स्वदेशीकरण और आयात में विविधता लाने पर जोर दे रहा है, भारत और रूस के बीच सैन्य उपकरणों के संयुक्त उत्पादन के लिए समझौता दोनों देशों के रक्षा संबंधों में नया आयाम जोड़ सकता है।
आइये जानते हैं कि रूस भारत की रक्षा जरूरतों के लिए क्यों अहम है और दोनों देशों ने खरीदार-विक्रेता से रक्षा उपकरणों के संयुक्त उत्पादन तक का सफर कैसे तय किया।
रूस ने पूरी की भारतीय सेना की जरूरतें
भारत और रूस के बीच रक्षा संबंध लगभग 60 वर्ष पुराने हैं। 1962 में चीन से युद्ध में हार के बाद जब भारत ने अपनी रक्षा तैयारियों को मजबूत करना शुरू किया तो पश्चिमी देशों ने बहुत मदद नहीं की। ऐसे समय में रूस आगे आया और मिग 21 लड़ाकू विमान से लेकर टैंक और तोप तक की आपूर्ति की। रूस ने भारत को न सिर्फ हथियार बेचे, बल्कि लड़ाकू विमान से लेकर टैंक तक का उत्पादन लाइसेंस के तहत करने की अनुमति भी दी।
रक्षा जरूरतों के लिए रूस महत्वपूर्ण
पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत ने रक्षा जरूरतों के लिए रूस से आयात पर निर्भरता कम करने पर जोर दिया है। भारत अमेरिका, फ्रांस, इजरायल से भी रक्षा उपकरण खरीद रहा है। इसके बावजूद रूस आज भी भारत की रक्षा जरूरतों के लिए महत्वपूर्ण है। भारतीय सेनाओं के अधिकतर रक्षा उपकरण रूसी मूल के हैं। दोनों देशों के बीच दशकों पुराने मजबूत रक्षा संबंधों का भरोसा है। इसके अलावा रूस आज भी भारत को सबसे ज्यादा रक्षा उपकरणों की आपूर्ति करने वाला देश है। भारत के रक्षा आयात में रूस की हिस्सेदारी लगभग 45 प्रतिशत है।
ब्रह्मोस का संयुक्त उत्पादन
सुपर सोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस को भारत और रूस ने मिलकर बनाया है। ब्रह्मोस दोनों देशों के बीच सफल संयुक्त उत्पादन का शानदार उदाहरण है। ब्रह्मोस भारत की रक्षा तैयारियों के लिहाज से सबसे घातक मिसाइलों में से एक है। देश की तीनों सेनाएं इस मिसाइल को अहम रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं। ब्रह्मोस की क्षमताओं की वजह से दूसरे देश भी इसे खरीदने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
अमेरिका की परवाह किए बिना खरीदा S400
भारत सरकार ने सीमा पर चीन और पाकिस्तान के खतरों से निपटने के लिए रूस से अत्याधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम एस 400 खरीदा है। एस 400 की पांच यूनिट के लिए सौदा लगभग 40,000 करोड़ रुपये में हुआ था। इसकी दो यूनिट भारत आ चुकी हैं। एस 400 विश्व के सबसे कारगर एयर डिफेंस सिस्टम में से एक है। भारत ने अमेरिका के विरोध के बावजूद रूसी एयर डिफेंस सिस्टम का सौदा किया और विश्व के सामने स्पष्ट कर दिया कि रक्षा जरूरतों के मामले में वह किसी के दबाव में नहीं आएगा।