Jagran Trending: आखिर मां की ममता से कब तक वंचित रहेंगे ये नौनिहाल? रजिस्ट्रार जनरल की रिपोर्ट से जगी उम्मीद
Maternal Mortality Ratio in India 2022 आज हम आपको सरल भाषा में बताते हैं कि एमएमआर क्या होता है। दुनियाभर में मातृ मृत्यु अनुपात कैसे तय होता है। आधुनिक समाज के लिए एक स्वस्थ मां और स्वस्थ शिशु कितना जरूरी है। इन सभी मुद्दों पर जानेंगे विशेषज्ञों की राय।
By Ramesh MishraEdited By: Updated: Tue, 19 Apr 2022 11:09 AM (IST)
नई दिल्ली, रमेश मिश्र। Maternal Mortality Ratio in India 2022: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के हाल के आंकड़ों के अनुसार मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) में 10 अंक की गिरावट आई है। देश के लिए यह एक बेहद सकारात्मक संदेश है। यह आंकड़े निश्चित रूप से उत्साहित करने वाले हैं, लेकिन अभी स्वस्थ मां और स्वस्थ शिशु की संकल्पना का लक्ष्य काफी दूर है। आजादी के बाद भारत में मातृ मृत्यु अनुपात और शिशु मृत्यु दर चिंता का विषय रहा है। इसे कम करने के लिए सरकारी स्तर पर तमाम प्रयास भी किए जा रहे हैं। इसी का नतीजा है कि एमएमआर में 10 अंक की गिरावट आई है। इतना ही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन भी मातृ मृत्यु दर को कम करने के भारत के प्रयासों की सराहना कर चुका है। हालांकि, इस दिशा में अभी भी एक और बड़ी पहल की जरूरत है। विकसित मुल्कों की तुलना में हम अभी बहुत पीछे हैं। खासकर भारत को उच्च एमएमआर वाले राज्यों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। आज हम आपको सरल भाषा में बताते हैं कि एमएमआर क्या होता है। दुनियाभर में मातृ मृत्यु अनुपात कैसे तय होता है। आधुनिक समाज के लिए एक स्वस्थ मां और स्वस्थ शिशु कितना जरूरी है। इन सभी मुद्दों पर जानेंगे विशेषज्ञों की राय।
1- दरअसल, प्रति एक लाख जीवित बच्चों के जन्म पर होने वाली माताओं की मृत्यु को मातृत्व मृत्यु दर (एमएमआर) कहते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार गर्भवती होने पर या गर्भावस्था की समाप्ति के 42 दिनों के भीतर गर्भावस्था या उसके प्रबंधन से संबंधित किसी भी कारण से हुई किसी महिला की मृत्यु को मातृ मृत्यु में शामिल किया जाता है। विकसित देशों की तुलना में भारत में मातृत्व मृत्यु दर अभी भी चिंता का विषय है।
2- हालांकि, पिछले एक दशक में किए गए सुधारों की वजह से एमएमआर में लगातार कमी आई है। यानी बच्चों के जन्म पर होने वाली माताओं की मृत्यु दर कम हुई है। इसके अंतर्गत देश के सबसे पिछड़े तथा सीमान्त क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता तथा उसकी व्यापक पहुंच में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसी सरकारी योजनाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इसके अंतर्गत लक्ष्य, पोषण अभियान, प्रधान मंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान, जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम, जननी सुरक्षा योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना तथा हाल ही में लांच सुरक्षित मातृत्व आश्वासन इनिशिएटिव (SUMAN) योजना आदि शामिल है।
आखिर चर्चा में क्यों हैं एमएमआर
हाल ही में रजिस्ट्रार जनरल के सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (Office of the Registrar General’s Sample Registration System-SRS) के कार्यालय से जारी एक बुलेटिन से यह मामला सुर्खियों में है। रजिस्ट्रार जनरल के सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम ने भारत में वर्ष 2017-19 में मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Ratio-MMR) पर एक विशेष बुलेटिन जारी किया है। दरअसल, रजिस्ट्रार जनरल का यह कार्यालय जनसंख्या की गणना करने और देश में मृत्यु और जन्म के पंजीकरण के अलावा यह नमूना पंजीकरण प्रणाली का उपयोग करके प्रजनन व मृत्यु दर के संबंध में अनुमान प्रस्तुत करता है। एसआरएस देश का सबसे बड़ा जनसांख्यिकीय नमूना सर्वेक्षण है, जिसमें अन्य संकेतक राष्ट्रीय प्रतिनिधि नमूने के माध्यम से मातृ मृत्यु दर का प्रत्यक्ष अनुमान प्रदान करते हैं। वर्बल आटोप्सी (Verbal Autopsy-VA) उपकरणों को नियमित आधार पर एसआरएस के तहत दर्ज मौतों के लिए प्रबंधित किया जाता है, ताकि देश में एक विशिष्ट कारण से होने वाली मृत्यु दर का पता लगाया जा सके।
क्या है विशेषज्ञ की राय1- डा दीपा, एमडी (यशोदा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल में प्रसूति विज्ञानी एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञ) का मानना है कि किसी भी मुल्क के लिए मातृ मृत्यु दर उस क्षेत्र में महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य का एक पैमाना है। उन्होंने कहा कि रजिस्ट्रार जनरल की ताजा बुलेटिन के आंकड़े एक सकारात्मक संकेत दे रहे हैं। भारत में मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर किसी भी देश की सेहत की ओर इशारा करती है। यह मृत्यु दर जितनी कम होगी देश उतना अधिक सेहतमंद कहलाएगा।
2- ये सारे आंकड़े भारत के लिए सकारात्मक संकेत दे रहे हैं क्योंकि शिशु मृत्यु दर किसी भी देश की सेहत को दर्शाती है. मृत्यु दर जितनी कम होगी, देश उतना अधिक सेहतमंद कहलाएगा। डा दीपा ने कहा कि देश के अधिकतर अस्पतालों में प्रसव के दौरान शिशुओं की देखभाल के लिए सुविधाओं का विकास और टीकाकरण बेहतर होने से शिशु मृत्यु दर में कमी आई है। देश में पहली बार दस लाख से कम बच्चों की मौत हुई है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2017 में यह आंकड़ा साढ़े नौ लाख के ऊपर था। उन्होंने कहा कि यह संख्या ज्यादा लग सकती है, लेकिन देश की आबादी का भी ध्यान रखना पड़ेगा। मृत्यु दर 1000 बच्चों पर तय की जाती है।
3- उन्होंने कहा कि मातृ मृत्य दर या शिशु मृत्यु दर में कमी के पीछे शिक्षा एक बड़ा आधार है। उन्होंने कहा शिक्षा स्तर ज्यादा होने के कारण तमिलनाडु और केरल में शिशु मृत्यु दर सबसे कम है। इस पहलू को समझना होगा। डा दीपा ने कहा कि मध्य प्रदेश, असम और उत्तर प्रदेश में ज्यादा शिशुओं की मौत होती है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का स्तर और आधारभूत स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर करके इस दर को कम किया जा सकता है। उन्होंने कहा यदि मां शिक्षित है तो बच्चे की मौत की आशंका 2.7 गुना तक कम हो सकती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि मृत्यु दर कम या ज्यादा होने की तीन बड़ी वजहें हो सकती है। अमीर-गरीबी इसका बड़ा आधार है। इसके अलावा मां की शिक्षा और अंत में शिशु का जन्म गांव या शहर में हो रहा है।
4- कोरोना महामारी के दौरान दुनिया भर में लंबे समय तक स्वास्थ्य आपातकाल रहा। इस विकट स्थिति में देश में हर गर्भवती महिलाओं का अतिरिक्त ख्याल सुनिश्चित करना जरूरी है। इस माहौल में गर्भवती से पहले और बाद में महिलाओं की सुरक्षित स्वास्थ्य के लिए सरकार ने खास तरह की व्यवस्था की है। महामारी के समय जिन महिलाओं को गर्भवती होने के दौरान कोरोना हुआ है, उनका अधिकार है कि उन्हें उच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा सेवा मुहैया हो। कोरोना महामारी को देखते हुए गर्भवती महिलाओं को बिना किसी कारण घर से बाहर नहीं निकलने की सलाह दी गई है।