Move to Jagran APP

मानवता है सबसे बड़ा धर्म, संपूर्ण मानव जाति का उत्थान ही एकमात्र लक्ष्य

इस धर्म के रास्ते पर चलने वालों के लिए ‘संपूर्ण मानव जाति का उत्थान’ ही एकमात्र लक्ष्य होता है। न ही हम गरीब और अमीर के असमानता से प्रभावित होते हैं। हम दूसरों को अपनी ही तरह सर्वशक्तिमान की रचना के रूप में देखते और स्वीकारते हैं।

By Shashank PandeyEdited By: Updated: Wed, 23 Dec 2020 09:01 AM (IST)
मानवता है सबसे बड़ा धर्म, संपूर्ण मानव जाति का उत्थान ही एकमात्र लक्ष्य
हम सभी में केवल मानव को ही देखते हैं। (फोटो: दैनिक जागरण)

कीर्तिदेव कारपेंटर। प्रत्येक मनुष्य की अपनी एक धार्मिक पहचान होती है। कोई हिंदू, मुस्लिम, सिख या ईसाई धर्म को मानने वाले के यहां जन्म ले सकता है, परंतु हमारा संविधान उसे अधिकार देता है कि यदि उसकी आस्था में परिवर्तन हो जाए एवं यदि वह किसी अन्य धर्म में विश्वास करने लगे तो अपना धर्म बदल सकता है। आजकल ‘लव जिहाद’ शब्द रोज सुनने को मिल रहा है, जिसका अर्थ है कि किसी एक धर्म का पुरुष अपने को किसी और धर्म का बताकर किसी महिला या लड़की से रिश्ता कायम करता है एवं बाद में असलियत सामने आने पर उस लड़की को जबरन अपने धर्म का अनुयायी बनाने की कोशिश करता है या बनाता है।

औपचारिक रूप से किसी व्यक्ति के द्वारा किसी धर्म को अपना लेने मात्र से वह किसी अन्य धर्म का अनुयायी नहीं बन सकता है। धर्म तो मनुष्य की अंतरात्मा में गहराई से अंतर्निहित होता है। धर्म का संबंध मनुष्य के विश्वास से होता है। उसकी विचारधारा, पसंद-नापसंद, सही-गलत, उचित-अनुचित, न्याय-अन्याय को परखने की अंतर्दृष्टि में धर्म बसा हुआ होता है। दुनिया का कोई भी धर्म ऐसा नहीं है जो अपने अनुयायी को झूठ बोलने, धोखा देने, दूसरों के अधिकारों को छीनने एवं हिंसा करने की सीख देता हो। वास्तव में ये कृत्य धाíमक मतांधता के परिणाम हैं। यह परमेश्वर के फैसलों से असहमति व्यक्त करना है।

ऐसे हर व्यक्ति को जो छल-कपट से किसी का धर्म परिवर्तन कराकर उसे अपने धर्म में शामिल करना चाहता है, उसे यह समझना चाहिए कि इस प्रकार से यदि किसी महिला या पुरुष का धर्म परिवर्तन भी हो जाएगा तो भी यदि वह हंिदूू है तो अपने ईश्वर पर एवं यदि मुस्लिम है तो अपने अल्लाह पर विश्वास करना नहीं त्याग सकता है। मजबूरी में धर्म बदलने से भी उसके विश्वास, अनुराग एवं तौर-तरीकों में कोई बदलाव नहीं होने वाला है। एक पहलू यह भी है कि हर व्यक्ति का मात्र मनुष्य होने के नाते ही एक धर्म होता है। और वह है मानवता का धर्म।

इस धर्म के रास्ते पर चलने वालों के लिए ‘संपूर्ण मानव जाति का उत्थान’ ही एकमात्र लक्ष्य होता है। यह धर्म किसी देश की सरहदों को नहीं जानता। किसी को कमजोर नहीं समझता है। जिस दिन मनुष्य अपने इस धर्म को पहचान लेगा, उसी दिन कई समस्याओं का स्वत: ही नाश हो जाएगा, क्योंकि जब हम किसी को मनुष्यता के चश्मे से देखते हैं तो हमारा मन पूर्वाग्रहों से पूर्णरूपेण रहित होता है। 

हम सभी में केवल मानव को ही देखते हैं। हमें श्वेत-अश्वेत का भेद दिखाई नहीं देता है, न ही हमें स्त्री-पुरुष होने का अंतर पता चलता है। कभी किसी के हिंदू या मुस्लिम होने की पहचान हमारी राय को प्रभावित नहीं करती है। न ही हम गरीब और अमीर के असमानता से प्रभावित होते हैं। हम दूसरों को अपनी ही तरह सर्वशक्तिमान की रचना के रूप में देखते और स्वीकारते हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)