Move to Jagran APP

SC Verdict: 'पत्नी की आत्महत्या के लिए पति तब तक जिम्मेदार नहीं...', वाइफ के सुसाइड को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने की टिप्पणी

SC Verdict सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी पति को 30 साल बाद बरी करने का फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुनाते हुए कहा कि अपनी पत्नी को सुसाइड के लिए उकसाने पर किसी व्यक्ति को तबतक दोषी नहीं ठहराया जा सकता जब तक कि उसके खिलाफ उत्पीड़न या क्रूरता के ठोस सबूत न हों।

By Agency Edited By: Babli Kumari Updated: Thu, 29 Feb 2024 02:03 PM (IST)
Hero Image
सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी की आत्महत्या को लेकर सुनाया फैसला (फाइल फोटो)
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 1993 के एक केस में अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में दर्ज एक पति की सजा को रद्द करते हुए व्यक्ति को बरी कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने तीन दशक पहले अपनी पत्नी को सुसाइड के लिए उकसाने के आरोप से एक व्यक्ति को बरी करते हुए कहा है कि शादी के सात साल के भीतर अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने पर किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि उसके खिलाफ उत्पीड़न या क्रूरता के ठोस सबूत न हों।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113A उन मामलों में पति और ससुराल वालों द्वारा उकसाने की धारणा स्थापित करती है, जहां शादी के सात साल के भीतर एक महिला की आत्महत्या होती है और वह क्रूरता का शिकार हुई है।इस मामले में, आदमी की शादी 1992 में हुई थी। अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि शादी के तुरंत बाद, आदमी और उसके माता-पिता ने पैसे की मांग करना शुरू कर दिया क्योंकि वह राशन की दुकान शुरू करना चाहता था।

साल 1993 में महिला ने किया था आत्महत्या 

रिकॉर्ड के अनुसार, 19 नवंबर 1993 को महिला ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार, उसने अपने पति के लगातार उत्पीड़न के कारण आत्महत्या कर ली।

न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि केवल उत्पीड़न किसी आरोपी को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है और इसके लिए सक्रिय कार्य या प्रत्यक्ष कार्य की भी आवश्यकता होती है जिसके कारण व्यक्ति आत्महत्या करने के लिए विवश हो जाता है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों को शादी के सात साल के भीतर किसी महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने के विषय पर कानून के सही सिद्धांतों को लागू करने में बहुत सावधान और सतर्क रहना चाहिए, अन्यथा यह धारणा बन सकती है कि दोषसिद्धि कानूनी नहीं बल्कि नैतिकता है।

'ठोस सबूत के अभाव में न ठहराया जाए दोषी'

पीठ ने कहा, "इस अदालत ने माना है कि शादी के सात साल के भीतर आत्महत्या के तथ्य से, किसी को तब तक उकसाने के नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए जब तक कि क्रूरता साबित न हो जाए। उत्पीड़न या क्रूरता के किसी ठोस सबूत के अभाव में, किसी आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। पीठ ने आगे कहा, "अगर लगातार उत्पीड़न का कोई ठोस सबूत होता जिसके कारण पत्नी के पास अपने जीवन को समाप्त करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा होता, तो यह कहा जा सकता था कि आरोपी ने आत्महत्या का इरादा किया था।" 

यह भी पढ़ें- Supreme Court का बड़ा फैसला, अब कोर्ट का स्टे ऑर्डर छह महीने बाद स्वत: खत्म नहीं होगा