17 साल के रिसर्च के बाद कपास के हाइब्रिड बीज तैयार, किसानों के पास पहुंचने में लगेगा इतना समय
17 वर्ष शोध के बाद कपास के हाइब्रिड बीज तैयार हो गए है।यह अपने गुणों की वजह से किसानों की आय को बढ़ा सकती है। इसे किसानों के बीच आने में अभी एक वर्ष का समय और लग सकता है क्योंकि मातृ बीज को अंतिम परीक्षण के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद भेजा गया है। हरी झंडी मिलते ही किसानों के लिए बीज उत्पादन का कार्य शुरू कर दिया जाएगा।
अजय उपाध्याय, ग्वालियर। राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर से संबद्ध खंडवा कृषि महाविद्यालय एवं शोध संस्थान में कपास के हाइब्रिड बीज की नई किस्म तैयार की गई है। यह अपने गुणों की वजह से किसानों की आय को बढ़ा सकती है।
इस किस्म को तैयार करने में कृषि विज्ञानियों को 17 साल का समय लगा। इसे किसानों के बीच आने में अभी एक वर्ष का समय और लग सकता है, क्योंकि मातृ बीज को अंतिम परीक्षण के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद भेजा गया है। वहां से हरी झंडी मिलते ही किसानों के लिए बीज उत्पादन का कार्य शुरू कर दिया जाएगा।
रेशे की लंबाई और पैदावार अधिक होगी
खंडवा कृषि महाविद्यालय के विज्ञानी और शोधकर्ता डा. देवेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि इस हाइब्रिड बीज से पैदावार 20 क्विटंल प्रति हेक्टेयर तक होगी और इसके रेशे की लंबाई सामान्य से 32 प्रतिशत तक अधिक होगी। इसके पहले वर्ष 2006 में एक किस्म जेकेएचवाय-1 आई थी, उसके रेशे की लंबाई 28 प्रतिशत तक अधिक थी और उससे पैदावार 12 से 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इन फायदों के अलावा भी अच्छी बात यह है कि बाजार में निजी कंपनियों का एकाधिकार समाप्त होगा, क्योंकि कपास का बीटी हाइब्रिड बीज निजी कंपनियां महंगे दामों पर बेच रही हैं।हाइब्रिड बीज का नाम- केएचएच-वीएस-1318-1
बीटी मतलब कई किस्म की मिलावट कर एक नई किस्म बनाना होता है। यह नान बीटी (शुद्ध किस्म) हाइब्रिड बीज है। अब सब कुछ ठीक रहा तो अगले साल सस्ते दाम पर कपास का यह हाइब्रिड बीज किसानों के लिए उपलब्ध हो जाएगा। केएचएच-वीएस-1318-1 रखा है मातृ बीज का नाम 17 साल के शोध के बाद तैयार हुए इस हाइब्रिड बीज का नाम विज्ञानियों ने केएचएच-वीएस-1318-1 रखा है। पहले यह मध्य प्रदेश में खंडवा, खरगोन, बडवानी, धार आदि के किसानों को उपलब्ध कराया जाएगा। देश के सभी हिस्सों में इसका उपयोग किया जा सकेगा।
नई किस्म पर कीट का प्रभाव होगा कम
डा. देवेंद्र श्रीवास्तव ने यह शोध खंडवा कृषि महाविद्यालय के डीन डा. दीपक हरि रनाडे के निर्देशन में किया है। कीट का प्रभाव कम होगाकृषि विज्ञानियों के अनुसार, नई किस्म पर कीट का प्रभाव कम होगा, जिससे फसल को मौसमी रोगों से मुक्ति मिल जाएगी। अभी कपास की फसल पर कीटनाशकों का अधिक मात्रा में छिड़काव करना पड़ता है, जिससे उसकी लागत बढ़ती है। नई किस्म से किसानों की लागत कम होगी।राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अरविंद शुक्ला ने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में कपास की नई किस्म की गुणवत्ता और उसकी पैदावार की जांच होगी। यदि सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही किसानों को हाइब्रिड बीज मिलेगा।यह भी पढ़ें: जम्मू-कश्मीर में विकास देख सचिन तेंदुलकर हुए गदगद, पीएम मोदी ने युवाओं के लिए कही ये बातें...
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