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Nizam Mukarram Jah Bahadur: सादगी व रहस्यमय कहानियों से भरा था अंतिम निजाम का जीवन, आज भारत आएगा पार्थिव शव

Hyderabad Last Nizam Mukarram Jah Bahadur Passes Away हैदराबाद के आखिरी निजाम नवाब मीर बरकत अली खान वालाशन मुकर्रम जाह बहादुर अब नहीं रहे। उनके पार्थिव शरीर को हैदराबाद लाया जाएगा। उनके जीवन विरासत में मिली दौलत और भारत से दूर उनकी लाइफ के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं।

By AgencyEdited By: Mohd FaisalUpdated: Tue, 17 Jan 2023 11:44 AM (IST)
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Hyderabad Last Nizam Mukarram Jah Bahadur Passes Away हैदराबा के अंतिम निजाम (फाइल फोटो)
हैदराबाद, एजेंसी। हैदराबाद के आखिरी निजाम नवाब मीर बरकत अली खान वालाशन मुकर्रम जाह बहादुर अब नहीं रहे। उन्होंने शनिवार को तुर्की में अपनी आखिरी सांस ली। आज उनके पार्थिव शरीर को हैदराबाद लाया जाएगा। नवाब के निधन के साथ ही हैदराबाद में निजाम रियासत का अंत हो गया है। इस बीच, उनके जीवन, विरासत में मिली दौलत और भारत से दूर उनकी लाइफ के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। आइये, उनपर एक नजर डालें।

दादा ने दिया प्रिंस का दर्जा

नवाब मीर बरकत अली खान को प्रिंस का दर्जा 1954 में उनके दादा व तत्कालीन हैदराबाद रियासत के सातवें निजाम मीर उस्मान अली खान दिया था। तब से उन्हें हैदराबाद के आठवें और आखिरी निजाम के रूप में पहचाना जाता है। द लास्ट निजाम: द राइज एंड फॉल ऑफ इंडियाज ग्रेटेस्ट प्रिंसली स्टेट के लेखक जॉन जुब्रजीकी ने मुकर्रम जाह का वर्णन करते हुए लिखा कि सालों से उन्होंने एक मुस्लिम राज्य के सनकी शासक की कहानियां पढ़ी थीं, जो अपने हीरों को किलोग्राम के हिसाब से मोतियों को एकड़ के हिसाब से और अपनी सोने की छड़ों को टन के हिसाब से गिनता था। इतना अमीर होने के बावजूद वह नहाकर अपने कपड़े खुद धोते थे।

तुर्की के सुल्तान की बेटी थीं मुकर्रम जाह की मां

मुकर्रम जाह का जन्म 1933 में फ्रांस में हुआ था। उनकी मां राजकुमारी दुर्रू शेवर तुर्की के अंतिम सुल्तान (ओटोमन साम्राज्य) सुल्तान अब्दुल मजीद द्वितीय की बेटी थीं। वरिष्ठ पत्रकार और हैदराबाद की संस्कृति व विरासत के गहन पर्यवेक्षक मीर अयूब अली खान बताते हैं कि प्रिंस मुकर्रम जाह को आधिकारिक तौर पर 1971 तक हैदराबाद का राजकुमार कहा जाता था, उसके बाद सरकार द्वारा खिताब और प्रिवी पर्स को समाप्त कर दिया गया था। खान ने बताया कि सातवें निजाम ने अपने पहले बेटे प्रिंस आजम जहां बहादुर के बजाय अपने पोते को गद्दी का उत्तराधिकारी बनाया। इसलिए, 1967 में हैदराबाद के अंतिम पूर्व शासक के निधन पर मुकर्रम जाह आठवें निजाम बने।

सादगी के साथ अपना जीवन जीते थे अंतिम निजाम

बता दें कि जाह भारत से पहले ऑस्ट्रेलिया गए थे, उसके बाद तुर्की में जाकर रहने लगे। लेखक जॉन जुब्रजीकी ने अपनी कहानी में यह भी बताया है कि तुर्की में उनकी मुलाकात राजकुमार से एक दो-बेडरूम के फ्लैट में हुई थी। वह बहुत ही सादगी के साथ अपना जीवन जीते थे। लेखक ने बताया कि उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के रेगिस्तान में एक दरबार की अविश्वसनीय कहानियां सुनी थीं, जहां एक भारतीय राजकुमार ने एक सुंदर ढंग से सजे हाथी के हावड़ा में सवारी करने की बजाय डीजल-बेलिंग बुलडोजर चलाना पसंद किया था। इसके अलावा वह तुर्की केवल दो सूटकेस लेकर पहुंचे थे।

हैदराबाद के लोगों को थी काफी उम्मीदें

वहीं, पत्रकार अयूब अली खान ने कहा कि हैदराबाद के लोगों ने उम्मीद की थी कि राजकुमार मुकर्रम जाह बहुत कुछ करेंगे, खासकर गरीबों के लिए क्योंकि उन्हें अपने दादा से अपार संपत्ति विरासत में मिली थी। जो एक समय में दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति थे। हालांकि, ऐसा नहीं हुआ।

राजकुमारी इसरा से हुई थी पहली शादी

मुकर्रम जाह ने पहली शादी 1959 में तुर्की की राजकुमारी इसरा से की थी। एक इंटरव्यू में राजकुमारी इसरा ने हैदराबाद में अपने शुरुआती विवाहित जीवन के बारे में बात की। उन्होंने बताया कि वह हमेशा शहर के लिए कुछ करना चाहती थी, लेकिन जब उनकी शादी हुई तो थोड़ा मुश्किल था, क्योंकि उनके पति के दादाजी जीवित थे और उनका जीवन बहुत प्रतिबंधित था। व्यवहार करने का एक निश्चित तरीका था, कहीं जाना और कुछ देखना बहुत मुश्किल था। हालांकि, उनकी मृत्यु के बाद चीजों को अपने तरीके से करने की संभावना थी, लेकिन तब भी भारी समस्याएं थीं। फिर उनके विशेषाधिकार ले लिए गए और जमीन ले ली गई, किसी के सपनों को बनाए रखना असंभव था।

नादिर शाह के हमले से की हैदराबाद की तुलना

राजकुमारी ने आगे कहा कि बाद में उनका तलाक हो गया और 20 साल बाद मुकर्रम जाह ने उन्हें वापस आने व हैदराबाद में मदद करने के लिए कहा, क्योंकि सब कुछ गड़बड़ था और बड़ी समस्याएं थीं। जब वह वापस आईं तो पूरी जगह ऐसी लग रहा था मानो नादिर शाह द्वारा दिल्ली को लूट लिया गया हो। कुछ भी नहीं बचा था, सब कुछ ले लिया गया था।

अंतिम दर्शन के लिए खिलवत पैलेस में रखा जाएगा पार्थिव शरीर

बता दें कि मुकर्रम जाह के पार्थिव शरीर को चार्टर्ड विमान से पहुंचने के बाद सबसे पहले चौमहल्ला पैलेस ले जाया जाएगा। इसके बाद 18 जनवरी को सुबह 8 बजे से दोपहर 1 बजे तक खिलवत पैलेस में रखा जाएगा, ताकि लोग अंतिम दर्शन कर सकें। राजकुमार मुकर्रम जाह के कार्यालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि उन्हें यहां आसफ जाही परिवार के मकबरे पर दफनाया जाएगा। वहीं, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि निजाम के उत्तराधिकारी के रूप में गरीबों के लिए शिक्षा व चिकित्सा के क्षेत्र में उनकी सामाजिक सेवाओं के लिए सर्वोच्च राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाए।

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